स्वामी विवेकानन्द औरनारी-सशक्तिकरण
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भारत माता के एकनिष्ठ सेवक स्वामी विवेकानन्द ने भारत के पुनरुत्थान पर विचार प्रकट करते समय नारी के उत्थान को महत्त्वपूर्ण माना है। उनके वे विचार आज और अधिक प्रासंगिक हैं। भारतीय समाज में आधुनिकता के आग्रह ने खतरनाक स्थिति पैदा कर दी है। आज भारत की परम्परागत परिवार-व्यवस्था और उसके मूल्यों को पिछड़ापन कहा जा रहा है। मां, बहन को आदरणीय और पवित्र मानने की परम्परा को दकियानूसी बताया जाता है। मर्यादा, शील, सदाचार को छोड़ देने का नाम ही आधुनिकता है। अब शालीनता लुप्त हो रही है। नग्नता ही आधुनिकता का मापदण्ड बन गया है। हम पश्चिम को कहते थे कि वे नारी को भोग की वस्तु मानते हैं, पर अब हमारा देश इस राह पर उनसे भी आगे बढ़ रहा है। अब स्त्री मां और बहन नहीं रही, बाजार में बिकने वाली वस्तु है। हमारी परम्परा ने मां को त्याग और ममता की मूर्ति माना है। मातृत्व ही समाज के रिश्तों को परस्पर जोड़ने वाला पवित्र सूत्र है। लेकिन वह सूत्र भी टूट रहा है। दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की घटना के पश्चात एक बड़ी बहस चल रही है कि ऐसी घटना क्यो होती है? इस पर मौलिक चिन्तन नहीं हुआ है। हमारी त्रासदी यह है कि हमारा सांस्कृतिक पतन हो गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंद्यचालक श्री मोहनराव भागवत ने सही वक्तव्य दिया कि भारत में बलात्कार नहीं होते हैं, इंडिया में होते हैं। उन्होंने यह मौलिक बात कही, पर मीडिया ने उनके वक्तव्य को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया। वस्तुत: भारत वह है जो नारी को देवी-स्वरूप मानता है। इंडिया में यह बात नहीं है। जो विचार श्री भागवत ने व्यक्त किये वे स्वामीजी के विचार हैं।स्वामी विवेकानन्द के भारतीय नारी के सन्दर्भ में विचार उल्लेखनीय ही नहीं वरन् प्रेरणा देने वाले भी हैं। स्वामीजी का कहना कि हम प्राचीन भारत की नारियों को आदर्श मानकर ही नारी का उत्थान और सशक्तीकरण कर सकते हैं। अमरीका-प्रवास में स्वामीजी ने भारतीय-नारी पर अनेक व्याख्यान दिए। स्वामीजी ने कहा कि नारी-शक्ति के बिना भारत का उद्धार नहीं हो सकता। भारत में सात्विक शक्ति को जगाने के लिए दुर्गा, लक्ष्मी और मां शारदा का अविर्भाव हुआ है। इनको केन्द्र मानकर हम देश को गार्गी, मैत्रेयी, दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई जैसी नारियां दे सकते हैं। देवियों का निरादर भारत का अपमान है। नारी का उत्थान भारत का उत्थान है। स्वामीजी ने भारत के पतन का कारण मातृशक्ति का अपमान और उपेक्षा बताया है। अमेरिका मे दिए गये उनके भाषण का अंश नीचे उद्धृत है- अमरीका के पुरुष अपनी स्त्रियों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, इसीलिए ये सुखी, विद्वान, उद्योगी और प्रगतिशील हैं। दूसरी ओर, हम भारत के लोग स्त्री-जाति को अधम, हेय तथा अपवित्र कहते हैं। अत: हम लोग पशु, दास, अधम, हीन और दरद्रि हो गए। स्वामीजी ने 19 वीं शताब्दी में नारी की दशा का जो उल्लेख किया है, वर्तमान में उससे भी अधिक दुर्दशा व्याप्त है। उस समय हम पराधीन और रूढ़ियों से जकड़े हुए थे, अब हम आधुनिकता व आरोपित प्रगतिशीलता से जकड़े हुए हैं। स्वामीजी ने सत्य कहा कि हम भारत के मूल आदर्शों को न छोड़ें। इन आदर्शों की नींव पर ही भारत का सुन्दर भविष्य सम्भव हैं।शिक्षा के द्वारा समुन्नति के पथ पर अग्रसर करना ही स्वामीजी के नारी विषयक चिन्तन का सार है। स्वामीजी ने भारत आने पर भगिनी निवेदिता को कन्या-शिक्षा की व्यवस्था का दायित्व सौंपा था। भगिनी निवेदिता द्वारा स्थापित कन्या-विद्यालय अब भी कोलकाता में विद्यमान है। साधारण स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार हुए बिना देश की उन्नति नहीं हो सकेगी। स्त्रियों को शिक्षा देकर उन्हीं की स्वेच्छा पर छोड़ देना होगा। इसके बाद वे स्वयं ही सोच-समझकर, जो उचित होगा करेंगी। लड़कियां विवाह करके गृहस्थी में लग जाने पर अपने पति को उच्च भाव की प्रेरणा और वीर पुत्रों को जन्म देंगी। शिक्षा देने पर स्त्रियां स्वयं बतायेंगी कि उनके लिये क्या सुधार जरूरी हैं। भारत की नारी अपनी समस्या का समाधान करने में सक्षम है।स्वामीजी ने नारी को भारतीय परम्परा की मूल प्रकृति माना है। ऋग्वेद के सूक्तों की दृष्टा विदूषी स्त्रियां हैं। आत्मिक दिव्यता के कारण स्त्री को देवी माना गया है। पुराण-काल में दुर्गा-सप्तशती रची गयी। विश्व की सभी स्त्रियों को शक्तिरूपा में दुर्गा-देवी का रूप माना गया है। अब भी गांवों-नगरों में मांगलिक अवसरों पर कन्या-भोज की परम्परा है। नवरात्रों में कन्या-पूजन होता है। भोजन कराने के पहले छोटी-छोटी बेटियों के पैर धोने, प्रणाम करने के अनुष्ठान में बड़े लोग भी शामिल होते हैं। लेकिन यह सारी परम्परा अब पाखण्ड मानी जाती है। अब वह सिर्फ लड़की है, भोग की वस्तु है। संस्कार के बन्धन टूट गये। समाज की चेतना लुप्त है। पीड़ित लड़की चिल्लाती है, लोग देखकर आगे बढ़ जाते हैं। ऐसी स्थिति में, भारतीय नारी के उत्थान के लिए स्वामीजी सामाजिक सजगता और दायित्व -बोध को विशेष महत्त्वपूर्ण मानते हैं। समाज को भेद-भाव और रूढ़ियों से मुक्त होकर नारी की स्वतन्त्र सत्ता और महत्ता को मुक्त हृदय से स्वीकार करना होगा। तभी समतामूलक, समुन्नत समाज की स्थापना सम्भव होगी। उनका कहना है कि नारी ही परिवार, समाज की केन्द्र-बिन्दु है। अपनी प्राचीन परम्परा और मूल चिंतन को जानकर नारी की महिमा को पहचानने की आवश्यकता है। शिक्षा, शील, संस्कार से युक्त नारी जब सशक्त होंगी, तब भारत हर क्षेत्र में उन्नत होगा। अब शक्ति और भक्ति का युग आने वाला है, जो विश्व को अखण्ड ऊर्जा प्रदान करेगा। यह नारी ही शक्ति, भक्ति और प्रगति की वाहक बनेगी। ममता-मूर्ति यही शक्ति सब दुराचारों को समाप्त करेगी और हमारे पापों का प्रक्षालन करेगी। स्वामीजी का यह नारी चिन्तन ही भारत के भावी समुत्थान की मूल आधारशिला है।
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