कश्मीर पर पाकिस्तान कोमुंहतोड़ जवाब दे सरकार
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अफजल की फांसी के संदर्भ में एक बड़ा सवाल पैदा हुआ है कि क्या अफजल जैसे देश के लोकतंत्र की प्रतीक संसद पर हमला करने वाले एक आतंकवादी को फांसी सिर्फ इसलिए नहीं देनी चाहिए थी कि वह मुस्लिम था और फांसी देने से मुस्लिम आहत हो जाते? क्या सरकार यह नहीं जानती कि देश का कानून सबके लिए बराबर है? दुख की बात है कि आजादी के सड़सठ साल बाद भी भारत सरकार देश के नागरिकों को भारतवासी मानने से पहले सिख, मुसलमान, तमिल, तेलुगू वगैरह के खांचों में रखती है। ऐसा है तो सरकार के लिए फिर भारतवासी कौन है, इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है।
अफजल की फांसी के बाद जो भी प्रतिक्रियाएं आईं वे अपेक्षित ही थीं। अलगाववादी सोच रखने वाले कश्मीरी सोचते हैं कि उनका 'भाई' भले आतंकवादी था, उसे फांसी नहीं देनी चाहिए थी। पर अफसोस इस बात का है कि राज्य के मुख्यमंत्री भी ऐसे ही विचार व्यक्त कर रहे हैं। इसके दीर्घकालिक दुष्परिणाम दिख सकते हैं। वे देशद्रोह की भाषा बोल रहे हैं।
उधर जे.के.एल.एफ. का नेता यासीन मलिक पाकिस्तान की यात्रा के दौरान हाफिज सईद के साथ एक मंच पर देखा गया। मंच भी अफजल की फांसी के खिलाफ भूख हड़ताल का। देखना है कि अब सरकार यासीन मलिक के खिलाफ क्या कार्रवाई करती है। हमने कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को बहुत छूट दे रखी है। वे भारत के खिलाफ जहर उगलते हैं, पर भारत के ही पैसों पर, तमाम सरकारी सुविधाओं पर ऐश कर रहे हैं। जब भी पाकिस्तान का कोई नेता यहां आता है तो वे उससे मिलने दिल्ली पहुंच जाते हैं। और यह सब भारत सरकार की अनुमति से हो रहा है। दुनिया में ऐसा दूसरा उदाहरण मिलना मुश्किल है।
फौज में हमें हर हालात का एक विश्लेषण करना सिखाया जाता है, जिसे एस.डब्ल्यू.ओ.टी.('स्वॉट') विश्लेषण कहते हैं- यानी मजबूती, कमजोरी, मौका और धमकी। इस हालात का इस आधार पर विश्लेषण करें तो विचार के कुछ मुद्दे मिलेंगे, जिन पर अमल करने से देश को लाभ होगा।
अगर कश्मीर के तमाम अलगाववादी नेताओं को पाकिस्तान इतना अच्छा लगता है तो वे वहां जाकर रहें। यहां भारत सरकार की नाक के नीचे वे जहर फैला रहे हैं, जो बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। वे सब देशद्रोही हैं।
दूसरा, कश्मीर को लेकर हमें अपना नजरिया बदलने की जरूरत है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। हमारा एक प्रांत है इसलिए उससे अन्य प्रांतों की तरह ही व्यवहार करना चाहिए। धारा 370 के तहत उससे अलग बर्ताव करके हमने वहां अलगाववाद को हवा ही दी हुई है। इसको तुरंत समाप्त करने की आवश्यकता है।
जब भी पाकिस्तान किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर का मुद्दा उठाता है तो हम बजाय उसका जवाब देने के सिर्फ एक ही चीज बोलते हैं कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। हमें संयुक्त राष्ट्र संघ के 13 अगस्त, 1948 के प्रस्ताव पर भी दुनिया का ध्यान आकर्षित करने की आवश्यकता है। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि पाकिस्तान को पाक अधिकृत कश्मीर से अपनी सेनाएं हटानी चाहिए। अफसोस यह है कि हम कुछ नहीं बोलते, दुनिया इसका गलत अर्थ निकालती है।
जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, पिछले दिनों हमारे एक सैनिक का सर काटकर ले जाने के बाद उसके साथ किसी तरह की बात करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। वैसे भी आज तक बातचीत से कुछ हासिल भी नहीं हुआ है। पाकिस्तान की क्रिकेट टीम, हाकी टीम और कलाकारों को यहां आने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए। भारतीय सेना को पूरी स्वतंत्रता दी जानी चाहिए कि अगर पाकिस्तान युद्ध विराम का उल्लंघन करता है तो उसे सबक सिखाया जाए।
पाकिस्तान भारत को लेकर जो भी दुष्प्रचार करता है, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में झूठ प्रचारित करता है उसका भारत की कूटनीति को मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए।
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