मुद्दों से भटकाने की कांग्रेसी रीत
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राजनाथ सिंह 'सूर्य'
अफजल को फांसी देने के बाद जो चर्चा शुरू हुई है उसे देश के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है। टीवी चैनलों पर पहली प्रतिक्रिया यह सुनने को मिली कि केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने जयपुर के कांग्रेस चिंतन शिविर में हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों पर जो सेकुलर टिप्पणी की उस पर देश में जैसी तीखी प्रतिक्रिया हुई, उससे घबराकर सरकार ने अफजल की लंबित फांसी को त्वरित गति से अंजाम दिया है, ताकि संसद की कार्यवाही ठीक से चल सके। इस प्रकार की प्रतिक्रियाओं ने संसद पर हमले की गंभीरता को कम किया। क्या देश की सुरक्षा और स्वाभिमान को राजनीतिक दृष्टि से देखना या दिखाने का प्रयास करना उचित है? यह एक गंभीर विषय है जिस पर हमें सही परिप्रेक्ष्य में विचार करना चाहिए।
संसद के शीतकालीन सत्र के पूर्व कसाब को फांसी दी गई थी और अब बजट सत्र के पूर्व अफजल को। क्या कसाब को दी गई फांसी से देश के सामने जो समस्याएं हैं उनका समाधान हो गया था और संसद में हंगामा नहीं हुआ था? और क्या अफजल को फांसी पर लटकाए जाने से बजट सत्र में हंगामा नहीं होगा? भ्रष्टाचार, महंगाई आदि की समस्याएं पहले भी हंगामे का कारण बनती रही हैं। उसमें शिंदे की बेसिरपैर की टिप्पणियों ने उनके लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। गृहमंत्री के स्थान पर वित्तमंत्री और सूचना प्रसारण मंत्री को दिल्ली में सामूहिक बलात्कार काण्ड से उत्पन्न ऐतिहासिक आंदोलन में आगे कर सरकार ने स्वयं भी गृहमंत्री की क्षमता पर जो प्रश्न लगा दिया है उससे तो यही स्पष्ट होता है कि आंतरिक सुरक्षा के दायित्व का निर्वाह करने में शिंदे पूरी तरह विफल हैं। इसलिए अन्य मामलों के साथ गृहमंत्री की नाकामी और बड़बोलेपन का विरोध संसद में झेल पाना सरकार के लिए कठिन होगा।
कांग्रेस अपने विरोध में उभरने वाले किसी भी दल, नेता यहां तक कि संवैधानिक संस्थाओं के बारे में अनर्गल प्रलाप करने की 'अर्जुन सिंह परम्परा' पर कायम है। उनके सबसे बड़े अनुयायी उन्हीं के संबंधी दिग्विजय सिंह हैं। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के इस कथन पर कि, 'मैं केवल एकाउंटेंट नहीं हूं', 'तो क्या उन्हें पीएम समझना चाहिए' कहकर दिग्विजय सिंह ने सीएजी के प्रति सभी दुर्भावनापूर्ण अभिव्यक्तियों को पीछे छोड़ दिया। आगामी वर्ष के लिए विकास दर में गिरावट का अनुमान लगाने वाली संवैधानिक संस्था सांख्यिकी विभाग के खिलाफ तो वित्तमंत्री चिदंबरम भी बोल बैठे। हमें आश्चर्य है कि राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की इस अभिव्यक्ति पर कांग्रेस कैसे मौन रह गई कि केंद्र में न नेता है, न नीति। कांग्रेस में लोग विरुदावलि से महिमा-गान बनाने में मगन हैं। ऐसे ही हैं उसके नेता शकील अहमद।
एक टीवी चैनल पर मोदी बनाम राहुल गांधी की चर्चा में भाग लेते हुए मणिशंकर अय्यर ने राहुल की 'सर्वव्यापकता' और मोदी की 'क्षेत्रीयता' की चर्चा करते हुए कहा कि वे (राहुल) जिस परिवार से हैं उसमें प्रधानमंत्री बनने वालों को दायित्व संभालने से पूर्व कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था, लेकिन सभी ने देश को आगे बढ़ाया। ये वही मणिशंकर अय्यर हैं जिन्होंने मंत्री रहते हुए अंदमान की सेलुलर जेल के मुख्य द्वार के पास वीर सावरकर द्वारा अंग्रेज जेलर को दिए गए जवाब की देशभक्तिपूर्ण व रोमांचित करने वाली अभिव्यक्ति के शिलापट्ट को हटवा दिया था।
अब तो कांग्रेस सरकार को थामे रहने वाले मुलायम सिंह और मायावती भी कहने लगे हैं कि कांग्रेस 'सीबीआई' का उनके खिलाफ इस्तेमाल कर रही है। हालांकि यह बात करुणानिधि मुखरित होकर नहीं कह रहे हैं, लेकिन घटनाक्रम तो इसी बात का संकेत देता है। कांग्रेस का साथ ममता बनर्जी छोड़ गईं और साथ रहते हुए भी शरद पवार खुलेआम केन्द्र सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलने में संकोच नहीं करते। अपने आचरण से कांग्रेस यह सिद्ध कर रही है कि उसकी सहायक केवल एक संस्था है- सीबीआई, जिसे 'कांग्रेस ब्यूरो आफ इंवेस्टिगेशन' का खिताब मिल चुका है। कांग्रेस इस समय उस डूबते हुए व्यक्ति की तरह आचरण कर रही है जिसे तैरना नहीं आता। देश के सामने मौजूद चुनौतियों को वह 'सेक्युलरिज्म' बनाम 'सांप्रदायिकता' में उलझाने का जितना प्रयास कर रही है उतना ही उसमें और उलझती जा रही है तथा देश की जनता उसकी साम्प्रदायिक और जातीयतावादी नीति व आचरण से सजग होती जा रही है। चाहे फांसी कसाब की हो या अफजल की, दोनों अवसरों पर इस अति महत्वपूर्ण मुद्दे को कांग्रेसी आचरण ने जिस प्रकार राजनीतिक दाव-पेंच में उलझाने का काम किया है उससे देश का भला तो होगा नहीं, कांग्रेस का भी भला नहीं होगा, क्योंकि वह नेता और नीति दोनों से विहीन है। भारतीय समाज, जिसमें 65 प्रतिशत युवा पीढ़ी है, उसे महज एक परिवार के वंदन और 'सेक्युलरिज्म बनाम सांप्रदायिकता' के जाल में अब और उलझाकर रखना संभव नहीं है। जिन समस्याओं से देश जूझ रहा है उसके समाधान के लिए ठोस कार्यक्रम चाहिए।
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