बार-बार यह तथ्य सामने लाए जाने के बावजूद सरकार अपनी जिद पर अड़ी है और अमरीका व कई अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्थानों के दबाव में प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह राष्ट्रीय हितों के साथ यह खिलवाड़ करने को आतुर हैं। संसद के पिछले दो सत्र भी सरकार की ऐसी ही जिद व अहमन्यता की भेंट चढ़ गए थे जब 2 जी स्पेक्ट्रम व कोयला खदान आवंटन में हुए महाघोटालों पर विपक्ष की मांगों से भाग रही सरकार ने संसद की कार्यवाही चलने देने में कोई रुचि नहीं दिखाई। संसद के सुचारू संचालन की बड़ी जिम्मेदारी सरकार की होती है कि वह राष्ट्रहित के मुद्दों पर विपक्ष की शंकाओं और जनहित की मांगों की अनदेखी न करते हुए उनके समाधान का रुख प्रकट करे व देश को आश्वस्त करे कि जो होगा सही होगा, गलत कुछ भी नहीं होने दिया जाएगा। लेकिन यह सरकार तो काले को सफेद बताने पर तुली रहती है। सरकार का अहंकार तो यहां तक बढ़ा हुआ है कि यह जनविरोध व तथ्यों को दरकिनार कर काले को सफेद मनवाने की जिद पर अड़ जाती है। एफडीआई पर यही हो रहा है। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय हितों से जुड़े तकर्ों को नकार कर सरकार उसके विरोध में उठ रहे स्वरों को नरम करने या अपने पक्ष में मोड़ने के लिए साम-दाम-दंड-भेद, सब प्रकार के हथकंडे अपनाती है। सपा व बसपा के साथ भोज राजनीति और सीबीआई के इस्तेमाल का तरीका यही दर्शाता है। इससे इन दलों को भी राजनीतिक सौदेबाजी का अवसर मिलता है और राजनीति राष्ट्रोत्थान का उपकरण बनने की बजाय सत्तालिप्सा का केन्द्र बन जाती है। संप्रग की सहयोगी द्रमुक का रवैया भी सौदेबाजी वाला है। द्रमुक प्रमुख करुणानिधि का फिल्म से तुलना करते हुए यह कहना कि एफडीआई पर उन्होंने रहस्य बनाकर रखा है, यही संकेत देता है कि देखें, सौदा किन शर्तों पर पटता है। इससे यह तय है कि संप्रग सरकार की भूमिका देश व देशवासियों के हित में तो कतई नहीं है। वह विदेशी ताकतों के सामने राष्ट्रहित का सौदा कर रही है, लेकिन सजग विपक्ष उसकी इन मंशाओं को पूरा नहीं होने देगा।
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