नन्हे-मुन्ने को न हो पेट दर्द
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नन्हे–मुन्ने को न हो पेट दर्द
डा. हर्ष वर्धन
एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)
नवजात शिशु और छोटे बच्चों में अक्सर पेट में दर्द की परेशानी हो जाती है। तत्काल में तो दर्द के कारणों का पता नहीं चलता है लेकिन ऐसी संभावना होती है कि अचानक आंत में संकुचन के कारण पेट दर्द होता है। आंतों में संक्रमण के कारण भी पेट दर्द हो सकता है। कई बार शिशुओं का पाचन तंत्र विकास अवस्था में होने के कारण कुछ भी पिलाने यहां तक कि मां के दूध के सेवन से भी शिशु के पेट में दर्द होने लगता है। कुछ शिशुओं में पेट का दर्द हमेशा बना रहता है अत: ऐसे बच्चों की चिकित्सा के लिए गंभीर हो जाना चाहिए। बच्चों में मुख्य तौर पर तीन प्रकार का पेट दर्द पाया जाता है :
तेज दर्द
बार-बार होने वाला मरोड़ जैसा पेट दर्द
बार-बार अथवा लगातार हल्का दर्द
निम्नलिखित संकेतों के साथ पेट दर्द की गंभीरता शिशु के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होती है तथा ऐसे में माता-पिता को शिशु का विशेष ध्यान रखना चाहिए-
ोट में दर्द हो रहा हो तथा दस्त बिना बलगम और खून अथवा बलगम और खून के साथ आ रहा हो तो आंत्रशोथ अथवा वृहद आन्त्रशोथ की संभावना हो सकती है।
पेट में दर्द के साथ उल्टी हो रही हो (बहुधा पित्त आती हो) और मल का त्याग न हो पा रहा हो अथवा अधोवायु न हो रही हो तो यह आंत में गंभीर परेशानी का संकेत है जो क्षय रोग, राउंड वार्म के संक्रमण तथा आंतों में असामान्य ऐंठन के कारण हो सकता है।
खासतौर पर रक्त और बलगम के साथ दस्त हो रहा हो तथा रुक-रुक कर तेज दर्द और उल्टी हो रही हो तो आंतों में उलझन हो सकती है। शिशु का रुक-रुक कर अधिक रोना इस रोग की संभावना को दर्शाता है।
पेशाब में जलन, पेशाब का बार-बार आना, पेशाब में रक्त का आना अथवा मूत्र मार्ग में दर्द का लक्षण गुर्दे के शूल की संभावना को प्रकट करता है। पेशाब की थैली के ऊपर के हिस्से में दर्द के साथ पेशाब की तीव्र इच्छा होने के बावजूद पेशाब न आने की परेशानी मूत्राशय शोथ होने की संभावना हो सकती है।
खराब गले व बुखार के साथ पेट के नीचे दाहिनी तरफ के हिस्से में अथवा नाभि के पास में दर्द का कारण पेट की गिल्टियों का संक्रमण हो सकता है।
जोड़ों में दर्द, मूत्र में रक्त तथा त्वचा पर चित्तियां हेनोक शोनलीन बीमारी के होने की संभावना प्रकट करता है।
बुखार तथा सांस में तकलीफ के साथ पेट में दर्द-बेसल निमोनिया हो सकता है।
पेट के ऊपर के दाहिने भाग अथवा नाभि रज्जु क्षेत्र में दर्द के साथ अरुचि, उल्टी अथवा गाढ़े रंग के पेशाब का आना यकृत शोथ हेपटाइटिस हो सकता है।
पेशाब गाढ़े रंग का होने के साथ पेट में तेज दर्द हो सकता है।
पेट के ऊपरी हिस्से के मध्य भाग में दर्द जो पीछे की ओर जा रहा हो तो अग्नाशयकोप की संभावना हो सकती है।
पीलिया और बुखार के साथ पेट के ऊपरी भाग में दर्द कोलेनजाइटिस अथवा कोलेनजाइटिस का लक्षण हो सकता है।
उपरोक्त लक्षणों में अनेक लक्षण ऐसे हैं जिसे माता-पिता समझ नहीं पाते हैं लेकिन यदि इससे मिलता-जुलता कोई भी लक्षण परिलक्षित हो तो शिशु को शिशु रोग विशेषज्ञ को दिखाने में विलंब नहीं करना चाहिए।
कुछ शिशुओं के पेट में कब्ज (दर्द अथवा दर्दरहित) की शिकायत होती है, ऐसे में माता-पिता को विशेष ध्यान देना चाहिए।
शिशु के पेट में कब्ज अथवा कम से कम दिन में एक बार मल त्याग न होने की शिकायत अक्सर होती है। यह शिकायत उनको ज्यादा होती है जो मां के दूध के स्थान पर बाहरी पोषण अथवा 'फार्मूला फीड' पर निर्भर होते हैं। बच्चों के भोजन में अन्न को पर्याप्त मात्रा में शामिल न करने पर भी कब्ज की शिकायत हो सकती है। कब्ज की शिकायत रहने पर बच्चों की गुदा की त्वचा में दरार की परेशानी उत्पन्न हो सकती है। जो शिशु मां का दूध पीते हैं, उनके लिए ज्यादा चिन्ता की जरूरत नहीं होती है लेकिन जो बच्चे इसके स्थान पर दूध के अन्य विकल्पों पर निर्भर होते हैं, उन्हें कब्ज की शिकायत होने पर प्राथमिक तौर पर एक चम्मच शहद अथवा दूध में थोड़ी सी अधिक चीनी (4 औंस तक दूध में एक चम्मच चीनी) मिलाकर देने पर कब्ज की शिकायत आमतौर पर खत्म हो जाती है। फल के रस अथवा सब्जी के सूप (लगगभ आधा से 1 औंस प्रतिदिन) को पिलाने से भी कब्ज में राहत मिल जाती है। बड़े बच्चों में भोजन की आदत में परिवर्तन किया जा सकता है। दूध के स्थान पर मिश्रित भोजन देने पर भी कब्ज निवारण में सहायता मिलती है। कब्ज लम्बे समय से बनी हुई है अथवा कब्ज के कारण यदि शिशु मल त्याग के समय अधिक रोता है अथवा मल में रक्त मिला आ रहा है तो शिशु रोग विशेषज्ञ से अविलंब परामर्श लेना चाहिए।
पेट में कीड़े होना
बच्चों के पेट में कीड़ों का होना एक आम बात है। इसमें प्रमुख रूप से दो प्रकार के कीड़े पाये जाते हैं : 1. राउंड वार्म तथा 2. पिन वार्म किसी एक वयस्क कीड़े का मल से निकलना ही पहला लक्षण हो सकता है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित लक्षण होने पर भी कीड़े होने की संभावना हो सकती है-
पेट में
अचानक अथवा धीरे-धीरे आंतो में रुकावट
ब्रोंकाइटिस का बार-बार होना
शिशु की गुदा पर खुजली होना तथा कन्या शिशु के मूत्र द्वार पर खुजली होना
लम्बे समय से दस्त की शिकायत
अस्पष्ट रक्तअल्पता
यकृत और तिल्ली का बढ़ना
शरीर में चकत्ते एवं खुजली का होना
खून में इसनोफिल की संख्या बढ़ने पर खांसी का होना
सी.टी. स्कैन में कीड़ों की उपस्थिति दिखना एवं बच्चे को दौरा पड़ना
इन लक्षणों के आधार पर माता-पिता यह अनुमान लगा सकते हैं कि बच्चे के पेट एवं शरीर में कीड़े हो गये हैं। बच्चे की किस उम्र में और कैसे कीड़े के होने की संभावना हो सकती है, यह बात ध्यान रखने योग्य है। अधिकांश कीड़े दूषित पेय जल के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं। कीड़ा 10-12 दिन में वयस्क हो जाता है। यद्यपि 15 दिन के नवजात शिशु से दो माह के बच्चे के शरीर में भी राउंड वार्म देखा गया है लेकिन साधारणत: एक साल से कम उम्र के बच्चे में कीड़े का होना असामान्य है। इसके अलावा हुकवार्म के फैलाव का माध्यम भिन्न है। यह कीड़ा संक्रमित मिट्टी पर नंगे पांव चलने से फैलता है। 1-2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में इस कीड़े के फैलने की संभावना नहीं होती है। स्कूल जाने वाले बच्चों तथा वयस्कों में इस प्रकार के कीड़े देखे गये हैं।
निम्नलिखित परिस्थितियों में राउंड वार्म बच्चों के लिए खतरनाक हो सकता है।
उल्टी के दौरान राउंड वार्म पेट के रास्ते ऊपर की तरफ आकर श्वांस नली को बंद कर सकते हैं। उल्टी के समय कीड़ा दिखाई देने पर बच्चे के प्रति सावधान हो जाना चाहिए तथा अस्पताल ले जाना चाहिए।
राउंड वार्म आंतों में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं जो बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है। आंतें फट सकती हैं तथा पूरे पेट में संक्रमण फैलकर पेरिटोनाइटिस रोग के होने की संभावना हो सकती है।
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