राज्यों से/पैसे का क्या होगा जब खर्च की योजना ही नहीं है!!
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राज्यों सेपैसे का क्या होगा
जब खर्च की योजना ही नहीं है!!
ममता बनर्जी यूं तो केन्द्र सरकार के क्रियाकलापों पर बहुत मुखर रहती हैं, उसे दबाव में रखती हैं और उसके आधार पर प. बंगाल के लिए 'विशेष पैकेज' की मांग करती रहती हैं, पर जब बात केन्द्र सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के लिए आवंटित धन के समुचित उपयोग की आती है तो उनकी बोलती बंद-सी हो जाती है। अन्य योजनाओं की बात छोड़िए, देश की सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण सीमावर्ती क्षेत्र के विकास के लिए आवंटित धनराशि का भी प. बंगाल में समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। गत 31 अगस्त को केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा सीमान्त प्रांतों की सचिव स्तर की बैठक में प. बंगाल सरकार को कड़ी फटकार लगाई गई और कहा गया कि 'सीमान्त क्षेत्र विकास योजना' के अन्तर्गत जारी केन्द्रीय अनुदान का शीघ्र व समुचित उपयोग किया जाए। गृह मंत्रालय के अन्तर्गत सीमान्त क्षेत्र रक्षा विभाग के सचिव की अध्यक्षता में सम्पन्न इस 13वीं बैठक में 17 सीमान्त प्रान्तों के सचिव स्तर के अधिकारी शामिल हुए। प. बंगाल की ओर से राज्य के संयुक्त सचिव (गृह) अमल कुमार दास ने भाग लिया। इस बैठक में उन्हें बताया गया कि वित्तीय वर्ष 2007-08 में सीमान्त क्षेत्र विकास योजना के अन्तर्गत केन्द्र सरकार द्वारा आवंटित 6 करोड़ रुपया अभी तक जैसे का तैसा पड़ा है। वित्तीय वर्ष 2008-09 में आवंटित लगभग 50 लाख रुपए का आज तक उपयोग नहीं किया गया। पांच साल बीत जाने के बाद भी व्यय प्रमाणपत्र तक जमा नहीं किया गया। 2010-11 वित्तीय वर्ष तक सीमान्त क्षेत्र विकास योजना का 16 से 18 करोड़ रुपया खर्चं नहीं किया गया है। यानी राज्य सरकार इस ओर से उदासीन है और उस क्षेत्र के विकास के लिए कोई योजना नहीं बना रही है, जबकि केन्द्र की ओर से पहले ही धन आवंटित किया जा चुका है। बैठक में झिड़की मिलने के बाद अमल कुमार दास अक्तूबर तक धन के उपयोग का हिसाब- किताब भेजने की बात कहकर कोलकाता लौट आए। पश्चिम बंगाल को छोड़कर शेष 16 राज्यों ने इस मद में मिला आवंटित धन शत प्रतिशत खर्च किया है।
केन्द्र सरकार प. बंगाल राज्य सरकार के इस बर्ताव को गंभीरता से ले रही है। चालू वित्त वर्ष में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इन 17 राज्यों के लिए 990 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। इसमें से पं. बंगाल के लिए 160 करोड़ रुपए का प्रावधान है। अब तक केन्द्र से राज्य को 100 करोड़ रुपया मिल भी चुका है। लेकिन भूमि अधिग्रहण नहीं हुआ है इसलिए पश्चिम बंगाल की भारत – बंगलादेश सीमा पर कंटीले तार लगवाने का काम ठप पड़ा हुआ है। भारत-बंगलादेश सीमा की 2217 कि.मी. सीमा पश्चिम बंगाल से लगती है। 2005 में इसमें से 1528 कि.मी. तक कंटीले तार लगाने की बात कही गई थी तथा 2010 तक वह काम पूरा करने की समय सीमा भी तय की गई थी। पर अब, 7 साल बाद तक भी केवल 1219 कि.मी. सीमा पर तारबंदी हुई है। 309 कि.मी. सीमान्त क्षेत्र असुरक्षित एवं खुला पड़ा है। यह जानकारी सीमा प्रबंधन विभाग से मिली है। इस खुली सीमा से तस्करी, घुसपैठ, अवैध व्यापार एवं आपराधिक गतिविधियां धड़ल्ले से चल रही हैं। राज्य गृह विभाग के ही एक अधिकारी ने बताया कि राज्य सरकार भू-अधिग्रहण संबंधी स्पष्ट नीति न होने के कारण अनेक प्रस्तावित योजनाएं शुरू नहीं हो पा रही हैं। राज्य के 9 जिलों के 65 प्रखण्डों के 4400 गांव बंगलादेश सीमा से सटे हुए हैं। कुछ सीमान्त क्षेत्र दुर्गम हैं। उन क्षेत्रों में सीमान्त क्षेत्र विकास प्रकल्प का काम होना है। सीमान्त क्षेत्रों में विकास के काम न होने से इलाकों में आतंकी और राष्ट्रविरोधी गतिवधियां तेजी से बढ़ रही हैं। केन्द्र सरकार का गृह विभाग चिंतित है। उसका मंत्रालय इसे लेकर चिंतित है। पर ममता हैं कि दबाव की राजनीति कर पैसा तो मांग रहीं हैं, पर खर्च की कोई योजना है ही नहीं।
जम्मू–कश्मीर/ विशेष प्रतिनिधि
अगर अविवाहित बढ़े तो जनसंख्या कैसे बढ़ी?पिछले
कुछ विश्लेषक अविवाहित युवक–युवतियों की बढ़ती संख्या के पीछे आतंकवादियों–जिहादियों का हाथ भी देख रहे हैं। संभवत: आतंकवाद के प्रति झुकाव के कारण घाटी के युवक विवाह न कर रहे हों– ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं।
दिनों जम्मू-कश्मीर के सामाजिक तथा अन्य क्षेत्रों में यह समाचार खासी चर्चा का विषय बना कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में कश्मीर घाटी में अविवाहित युवाओं की संख्या सर्वाधिक है। कश्मीर विश्वविद्यालय के समाज शास्त्र विभाग के प्रमुख प्रो. बशीर अहमद के नेतृत्व में एक दल द्वारा किए गए सर्वेक्षण से यह तथ्य उभरकर सामने आया है। इस सर्वेक्षण के अनुसार कश्मीर घाटी में 20 से 35 वर्ष आयु वर्ग के 55 प्रतिशत युवक अविवाहित हैं। इनमें 57.7 प्रतिशत युवक तथा 45.17 प्रतिशत युवतियां हैं, जबकि देशभर में यह अनुपात दर 49 प्रतिशत से भी कम है। कुल मिलाकर घाटी में अविवाहित युवाओं व युवतियों की संख्या 8,97,289 बताई गई है। इस सर्वेक्षण में अविवाहितों की इस संख्या में आने वाले वर्षों में और भी वृद्धि की संभावना व्यक्त की गई है। इसके लिए अनेक कारणों में एक कारण राज्य की अनिश्चित स्थिति तथा तनाव को बताया गया है।
किन्तु इस सर्वेक्षण का विश्लेषण करने वालों का कहना है कि अगर यह आंकडे सच हैं तो 30 वर्षों के अन्तराल में राज्य की जनसंख्या में असामान्य रूप से वृद्धि कैसे हो गई है। सन् 2001 की जनगणना में जनसंख्या वृद्धि दर 75 प्रतिशत अंकित की गई, जबकि शेष देश की यह वृद्धि दर 46 प्रतिशत ही थी। 2001-2011 के बीच घाटी की जनसंख्या वृद्धि दर 35 प्रतिशत रही जबकि शेष देश में यह दर 22 प्रतिशत से भी कम अंकित हुई है। घाटी के कुछ जिले ऐसे भी हैं जिनकी जनसंख्या गत तीस वर्षों के भीतर ढाई से तीन गुणा तक बढ़ गई है। इनमें सीमावर्ती जिला कुपवाडा और बारामूला उल्लेखनीय हैं। 1981 में कुपवाड़ा की जनसंख्या 3,28,943 थी जबकि 2001 में इस जिले की जनसंख्या 6,40,013 दर्ज की गई। उल्लेखनीय है कि आतंकवादी गतिविधियों के कारण 1991 में राज्य में जनगणना का कार्य नहीं हो पाया था। अनुपात की दृष्टि से जिला कुपवाड़ा में यह वृद्धि 94 प्रतिशत तक होती है और अब 2011 की जनगणना में कुपवाड़ा जिले की जनसंख्या 8,75,564 अंकित की गई है। इसी प्रकार बारामूला तथा कुछ अन्य जिलों के आंकड़े भी कम चौंकाने वाले नहीं हें। जनसंख्या में यह वृद्धि इसलिए भी आश्चर्यजनक दिखाई देती है क्योंकि आतंकवाद तथा मजहबी कट्टरवाद के कारण कश्मीर घाटी से अल्पसंख्यक हिन्दुओं तथा कुछ मुसलमान परिवारों का बड़े स्तर पर पलायन हुआ है।
कई और भी पक्ष ऐसे हैं जिन्हें साधारण व्यक्ति तो क्या विशेषज्ञ भी समझ नहीं पा रहे हैं। जैसे- 2005 में देश की एक बड़ी प्रतिष्ठित पत्रिका ने सरकारी तथा अन्य साधनों के सर्वेक्षण में यह बताया कि जम्मू-कश्मीर में गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालों का प्रतिशत 5 से भी कम रह गया है जबकि शेष देश में यह अनुपात 30 प्रतिशत के लगभग है। इस सर्वेक्षण के आधार पर इस बड़ी उपलब्धि के लिए 15 अगस्त, 2005 को एक समारोह में जम्मू-कश्मीर को प्रथम पुरस्कार दिया गया। तत्कालीन उपराष्ट्रति श्री भैरोंसिंह शेखावत द्वारा वितरित किए गए पुरस्कार को जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री प्रो. मुजफ्फर हुसैन बेग ने प्राप्त किया। किन्तु उसके कुछ महीनों बाद जब राज्य विधानसभा ने 2005-06 का आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया तो उसमें राज्य में गरीबी की रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करने वालों की संख्या 42 लाख से भी अधिक बताई गई, जो कुल जनसंख्या का 39 प्रतिशत से अधिक थी और देश के सभी राज्यों से सबसे अधिक निर्धन जम्मू-कश्मीर को दिखाया गया था। इसी रपट के आधार पर केन्द्र सरकार के संस्थान भारतीय खाद्य निगम से भारी मात्रा में राशन का अनुदान प्राप्त किया गया तथा समाज कल्याण विभाग से अन्य सुविधाएं प्राप्त की गईं। पता नहीं अब कुंवारों की संख्या अधिक बताकर यह राज्य केन्द्र से क्या सुविधाएं प्राप्त करना चाहता है? कुछ विश्लेषक अविवाहित युवक-युवतियों की बढ़ती संख्या के पीछे आतंकवादियों-जिहादियों का हाथ भी देख रहे हैं। संभवत: आतंकवाद के प्रति झुकाव के कारण घाटी के युवक विवाह न कर रहे हों- ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं।
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