'चीन के सामने भारत की तैयारी ढीली'
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भारत की तैयारी ढीली'
'चीन के साथ संघर्ष से बचना है तो भारत को चीन की रणनीतिक चाल-ढाल की गहरी समझ विकसित करनी होगी। चीन एक ऐसी ताकत है जो भारत की भूराजनीति पर सीधे-सीधे असर डाल सकती है। चीन के सामने फौजी दबदबा बनाए रखकर उससे सीधी टक्कर से बचना है तो भारत को अपनी रणनीति ऐसी बनानी होगी जो लगातार चीनी रणनीति के हिसाब-किताब के मुताबिक शक्ल लेती जाए।' यह कहना है भारत के पूर्व विदेश सचिव और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के परमाणु मामलों पर दूत श्याम सरन का। सरन ने चीन पर नजर रखते हुए भारत की रक्षा तैयारियों में खामी बताई है। सरन ने चीनी रवैए की एक मिसाल बताई कि 2005 में जब चीन को लगा कि भारत के अमरीका और यूरोप के साथ रिश्ते गहराते जा रहे हैं तो उसने मौका ताड़कर भारत के साथ सीमा विवादों को सुलझाने के लिए नियमों का एक अहम समझौता कर लिया, लेकिन कुछ समय बाद जब भारत के उभार के स्थायी रहने को लेकर शंकाएं पैदा हुईं तो वह शर्तों से पीछे हट गया। पूर्व विदेश सचिव ने साफ कहा कि दक्षिण चीन सागर, प्रशांत महासागर में अमरीकी फौजी दखल बढ़ने के आसार और सिक्यांग व तिब्बत में उथल-पुथल के चलते अपने विरुद्ध बहती बयार को भांपकर चीन ने अब एक बार फिर भारत के प्रति पैंतरा बदला है।
तालिबान के गढ़ में
दावत मनाओ, सिर कटवाओ
27 अगस्त को अफगानिस्तान के हेलमंड सूबे में तालिबानी बर्बरता ने अपनी एक और मिसाल पेश की। इसने सूबे के एक गांव में दावत मनाते हुए संगीत-नृत्य का आनंद ले रहे 17 लोगों के सिर धड़ से अलग कर दिए। इनमें दो महिलाएं भी थीं। 1996 से 2001 के बीच अफगानिस्तान में इन्हीं तालिबानियों का राज था जब उन्होंने अपने कट्टरवादी फरमानों के तहत पार्टियों, दावतों, संगीत और नृत्य पर कड़ी पाबंदी लगा दी थी। दक्षिण अफगानिस्तान में हेलमंड का इलाका तालिबानियों का गढ़ माना जाता है, जहां उनकी इस तरह की हैवानियत देखने में आती रही है।
स्थानीय मूसा कला जिले के मुखिया नेमतुल्ला खान ने बताया कि गांव वालों ने पार्टी की थी और उसमें नाचना-गाना भी चला था। अपने राज में तालिबानियों ने ऐसे पुरुषों और महिलाओं के आपस में मिलने-बतियाने पर भी पाबंदी लगा रखी थी जिनका आपस में कोई रिश्ता नहीं होता था। कजाकी और मूसा कला के बीच सरहद पर स्थित जमींदावर गांव के पास घटी सिर काट डालने की उक्त घटना ने इलाके में दहशत फैला दी है। अफगानी और 'नाटो' फौज के मुखबिर होने के शक पर पहले भी तालिबानी न जाने कितनों का सिर कलम कर चुके हैं।
तेजी से पिघल रहा है उत्तरी ध्रुव
नासा की चेतावनी-
10 साल में गायब हो सकती है उत्तरी ध्रुव की बर्फ
अमरीका के नेशनल स्नो एंड आइस डाटा सेन्टर और नासा अंतरिक्ष संस्थान ने मिलकर एक अध्ययन किया है जिसके चौंकाने वाले नतीजे आए हैं। बताया गया है कि उत्तरी ध्रुव सागर की बर्फ इस बार इतनी तेजी से पिघल रही है जितनी तेजी से पहले कभी नहीं पिघली। इसने मौसमी बदलाव के संभावित खतरों की दस्तक सुनानी शुरू कर दी है। अभी 26 अगस्त को वहां जितनी बर्फ देखी गई थी उसने 2007 में सबसे कम बर्फ दिखने के रिकार्ड को भी पीछे छोड़ दिया। उस इलाके में अभी गर्मियों के कई हफ्ते बचे होने के चलते बर्फ के और ज्यादा पिघलने के आसार हैं। कोलाराडो विश्वविद्यालय स्थित आइस सेंटर के बयान में कहा गया है कि उत्तरी ध्रुव सागर में गर्मियों के दौरान दिखने वाली बर्फ का स्तर इतना कम होना एक गंभीर मौसमी चेतावनी मानी जा रही है।
उत्तरी ध्रुव सागर में हिमखण्डों के इतनी तेजी से घटने का यह समाचार इतना चिंताजनक है कि दुनियाभर के तमाम अखबारों ने इसे बड़े-बड़े कालमों में छापा है। सागर में बर्फ की मोटी चादर 41 लाख वर्ग किलोमीटर तक सिमट गयी है जो 18 सितम्बर 2007 को दर्ज आंकड़े से 70 हजार वर्ग किलोमीटर कम है।
उत्तरी ध्रुव की बर्फ धरती के लिए बेहद अहम मानी जाता है, क्योंकि यह सूरज के ताप को अंतरिक्ष में वापस परावर्तित करती है, जिससे धरती का तापमान नीचे रहता है। अब हर साल बर्फ का करीब 1,55,000 वर्ग किलोमीटर आवरण घटता जा रहा है। पहले बर्फ की उत्तर ध्रुवीय परत बेहद मोटी और बहुत बड़े खण्ड के रूप में हुआ करती थी और बस किनारों से ही पिघला करती थी। लेकिन आज वह पूरी परत ठोस नहीं, भुरभुरी हो गई है जो बहुत तेजी से पिघल रही है। एक दशक पहले जहां कनाडा के उत्तर और ग्रीनलैंड में बर्फ की 5-6 मीटर मोटी परत रहती थी, वहीं अब वह मोटाई घटकर 1-3 मीटर रह गई है। खतरा यह है कि उत्तरी ध्रुव की बर्फानी परत पूरी पिघल गई तो महासागर का तापमान बढ़ जाएगा और समुद्रतल पर जमी मीथेन पिघलकर भाप बनकर हवा में उड़ जाएगी। मीथेन एक ग्रीनहाउस गैस है, वायुमण्डल में जिसका बढ़ता स्तर वैश्विक ताप में तेजी लाएगा। यह मानव जाति के लिए बेहद खतरनाक होगा।
कादिर की तहफ्फुज सिखाएगी 'ईमानदारी'!
उत्तरी कोरिया और लीबिया को चोरी-छुपे अपने कुख्यात संजाल के जरिए परमाणु बम की तकनीक और पुर्जे भेजने वाले पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान की याद है न आपको? वही जिन्हें पाकिस्तान की हुकूमत ने 2004 में उनके घर में नजरबंद कर दिया था, जब उन्होंने अपने कुख्यात संजाल के जरिए परमाणु बम तकनीक की जानकारी गुपचुप बाहर भेजने की बात कबूली थी? मौजूदा हुकूमत ने उन पर लगी पाबंदियों में जरा ढील क्या दी, उन्होंने अपनी ही नई सियासी पार्टी खड़ी कर ली-'तहरीक-ए-तहफ्फुज-ए-पाकिस्तान'। कादिर का कहना है कि आने वाले चुनाव से पहले वे पूरे मुल्क के नौजवानों को जगाएंगे कि 'भई, ईमानदारी की राह पर चलने वाले को वोट दो, बेईमान को चोट दो। इसी से मुल्क बचेगा।' कादिर कहते हैं, आज की सियासी पार्टियां अपने वायदों से मुकर गई हैं लिहाजा वे नौजवानों को कहेंगे कि ऐसी पार्टियों को वोट मत दो। दिलचस्प बात यह है कि मुल्क का जो वैज्ञानिक चोरी-छुपे अपनी परमाणु तकनीकी मोटी रकम की एवज में दूसरे देश को पहुंचा दे, वही 'ईमानदारी' का पाठ पढ़ाए तो उस मुल्क का अंजाम क्या होगा, यह समझना मुश्किल नहीं है।
आलोक गोस्वामी
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