रोहिंगिया मुसलमान और इस्लामी दुनिया
|
मुजफ्फर हुसैन
रोहिंगिया मुसलमान और इस्लामी दुनिया
क्या म्यांमार में घटने वाली हिंसक घटनाएं तालिबानों द्वारा कुछ साल पहले बामियान में बुद्ध की दो मूर्तियों को तोड़ देने का परिणाम है? यह प्रश्न पाकिस्तान के दैनिक जसारत ने उठाया है। जसारत पाकिस्तान की जमाते इस्लामी का मुख पत्र माना जाता है। मोहम्मद इब्राहीम अजमी ने अपने लेख में यह सवाल उठाया है। यद्यपि अब तक ऐसा कोई विश्लेषण अथवा समाचार म्यांमार से नहीं मिला है। म्यांमार कुछ वर्ष पहले तक बर्मा के नाम से जाना जाता था। यह सम्पूर्ण क्षेत्र भारतीय उपखण्ड का भाग सदियों से रहा है। लेकिन अंग्रेजों ने अखंड भारत के टुकड़े-टुकड़े करके अनेक देश बना दिए। म्यांमार में बौद्ध जनता का बहुमत है इसलिए बौद्ध धर्म यहां का राष्ट्रीय धर्म माना जाता है।
रक्तरंजित संघर्ष
इन दिनों वहां के मुस्लिमों और बौद्धों में रक्तरंजित संघर्ष चल रहा है। म्यांमार के मुसलमानों को रोहिंगिया के नाम से पुकारा जाता है। वास्तविकता तो यह है कि रोहिंगिया एक समय तक अराकान प्रदेश में रहने वाले मुसलमानों को ही कहा जाता था, क्योंकि अराकान का पुराना नाम रोहिंग था। इसलिए वहां के रहने वालों को रोहिंगिया शब्द से सम्बोधित किया जाता है। अराकान प्रदेश बंगलादेश की सीमाओं से मिलता है। पिछले कुछ समय से म्यांमार के रोहिंगिया मुस्लिमों के बारे में एक विवाद पैदा हो गया है। म्यांमार और बंगलादेश दोनों ही उन्हें अपना नागरिक स्वीकार नहीं कर रहे हैं। बंगलादेशी जिस प्रकार भारत में लगातार घुसपैठ करते हैं वही स्थिति म्यांमार की भी है। इसलिए म्यांमार सरकार अब इस सम्बंध में कठोर हो गई है। वह इन घुसपैठियों को अपने यहां आने नहीं देती है। बल्कि जो आ चुके हैं उन्हें निकालना चाहती है। रोहिंगियाओं की संख्या 9 लाख बताई जाती है। इसलिए उन्हें अपने यहां स्थान देने का अर्थ है अपनी जनता के साथ अन्याय करना। इसलिए म्यांमार के स्थायी नागरिक उन्हें किसी भी मूल्य पर अपने यहां स्थान नहीं देना चाहते हैं। स्थानीय बौद्धों का कहना है कि उनके देश में रोहिंगयाओं की घुसपैठ ने यहां की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को खतरे में डाल दिया है। जबकि रोहिंगियाओं का कहना है कि वे तो यहां नवीं शताब्दी से रहते हैं। इसलिए उनकी नागरिकता का सवाल ही नहीं उठता। यदि म्यांमार सरकार किसी कारणवश उन्हें अपना नागरिक नहीं मान रही है तो यह उन पर खुला अत्याचार है। लेकिन म्यांमार सरकार और स्थानीय जनता का कहना है कि ये सब घुसपैठिये हैं। इसलिए वे अपने यहां इनको स्थान नहीं दे सकते हैं। बंगलादेश जब तक नहीं बना था रोहिंगिया पूर्वी पाकिस्तान में आते-जाते थे। लेकिन बंगलादेश के अस्तित्व में आते ही वहां की सरकार ने उन्हें अपना नागरिक मानने से नकार दिया है।
ये घुसपैठिए हैं
म्यांमार सरकार उस समय से इस मामले में अत्यंत गम्भीर हो गई है जब से मुस्लिम जगत में यह मांग उठने लगी है कि जब इंडोनेशिया में ईसाइयों के लिए तिमूर और अफ्रीका के सूडान में दक्षिणी सूडान अलग देश बन सकता है तो 9 लाख रोहिंगियाओं के लिए म्यांमार में अलग देश क्यों नहीं बनाया जा सकता है? इसके लिए पाकिस्तान सहित अनेक मुस्लिम राष्ट्र सक्रिय हैं। इसलिए जब म्यांमार को यह लगने लगा कि रोहिंगियाओं के नाम पर उनके देश को तोड़ने की शरारत चल रही है तब से वे इन्हें अपने यहां से निकालने के मामले में कटिबद्ध हो चुके हैं। कोई देश कैसे चाहेगा कि बाहर के घुसपैठिए उनके देश को तोड़कर अपने लिए कोई नया देश बना लें? विश्व स्तर पर मुस्लिमों की इस सोच से सभी परिचित हैं। इसलिए रोहिंगियाई मुस्लिमों को म्यांमार सरकार और जनता एक क्षण के लिए भी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। म्यांमार की बौद्ध जनता को अब यह अहसास होने लगा है कि मुस्लिम आतंकवादी बामियान में बनी बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ सकते हैं तो उनके देश को भी तोड़ने में कसर शेष नहीं रखेंगे। इसलिए बामियान में बुद्ध की मूर्ति को तोड़ने वालों से म्यांमार के बौद्ध कोई समझौताकरने को तैयार नहीं हैं। सम्पूर्ण म्यांमार में एक ही आवाज सुनाई पड़ रही है कि जिन आतंकवादियों ने बामियान में हमारे भगवान बुद्ध की मूर्तियों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए हैं, उनसे न कोई बातचीत होगी और न ही समझौता। इसलिए जसारत ने लिखा है कि आतंकवादियों ने जो कुछ बामियान में किया है अब उसकी प्रतिक्रिया म्यांमार में देखने को मिल रही है।
बड़ा गुनाह
लेखक मोहम्मद इब्राहीम अजमी ने लिखा है, 'उन्होंने उसे तोड़ दिया, उन्हें यह नहीं करना चाहिए था। यह बहुत बुरा हुआ। पूरी दुनिया उनके विरुद्ध हो गई। तोड़ने वालों को वहशी और जंगली कहा जाने लगा। यह कहा गया कि उनमें इनसानियत नहीं है। दूसरों की भावना का उन्हें कोई ख्याल नहीं है। वहां उनकी सरकार बने कई साल हो गए हैं। उन्हें अब तो अंतरराष्ट्रीय कानून की समझ होनी चाहिए। आपके लिए नि:संदेह वे केवल पत्थर हों, लेकिन दूसरों के लिए यह पत्थर ही सब कुछ हैं। और पत्थर भी वह जो दुनिया में मूल्यवान कला के प्रतीक बन गए हों। वे किसी की धार्मिक भावना के प्रतीक न हों तब भी वे मानव सभ्यता में कला के अनुपम नमूने थे। इस हरकत पर जापान और म्यांमार ने जबरदस्त विरोध किया। दुनिया भर के मीडिया ने उनकी निंदा की। बामियान में बनी मूतियां कला की दुनिया में अपनी निराली पहचान रखती थीं। अफगानिस्तान में तालिबानों का शासन आए हुए कुछ ही समय हुआ था। उस समय तक 11/9 की घटना भी नहीं घटी थी। तालिबान ने बुद्ध की दोनों मूर्तियों को एक-एक कर के तोड़ दिया। जब वे तोड़ रहे थे तब अनेक देशों ने उनसे आग्रह किया कि वे चाहें तो उन्हें किसी अन्य देश में स्थानान्तरित कर दें। तालिबान नहीं माने क्योंकि यह मूल्यवान मूर्तियां उनके लिए केवल पत्थर थीं।…. लेकिन आज तो म्यांमार में चलते-फिरते और सांस लेते इनसानों के साथ तालिबान जैसा ही व्यवहार किया जा रहा है? मूर्तियां तो पत्थरों की थीं, लेकिन जीते-जागते रोहिंगयाई तो हाड़-मांस के इनसान हैं। पर म्यांमार के लोग कह रहे हैं, आस्था को घायल करना इनसान को मारने से भी बड़ा गुनाह है। आज रोहिंगयाओं के साथ जो व्यवहार किया जा रहा है उस पर कुछ लोग चीखो-पुकार कर रहे हैं, लेकिन उस दिन मुस्लिम देशों को क्या हो गया था जब बुद्ध की हत्या हमारे सामने की जा रही थी। मुस्लिम अब हमें शिक्षा दे रहे हैं लेकिन तालिबानों के सम्मुख तो उनके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला। किसी मुस्लिम राष्ट्र ने उस पर अफसोस नहीं जताया। वे तो बाहर की दुनिया में बामियान से कोसों दूर थे। तालिबान उनका क्या बिगाड़ लेते?'
अखबारों में जो कुछ लिखा जा रहा है उससे लगता है कि म्यांमार के बौद्ध किसी कीमत पर रोहिंगयाई लोगों को बर्दाश्त करने के पक्ष में नहीं हैं। पाकिस्तान के मीडिया में पिछले दो सप्ताह से रोहिंगयाई मुसलमानों के कष्टों का उफान आया हुआ है। लेकिन इस मामले में म्यांमार सरकार और वहां के लोग कोई समझौता करने को तैयार नहीं हैं।
टिप्पणियाँ