आजउत्तर प्रदेश में सवाल उठने लगा है कि यहां मुलायम सिंह की सरकार है या उनके पुत्र अखिलेश यादव की? इस सवाल का जवाब सामान्य तौर पर यही दिया जा रहा है कि सरकार तो अखिलेश की है, लेकिन उसकी नकेल मुलायम सिंह यादव के हाथों में है। तभी तो कभी खुलेआम एक पूर्व मुख्यमंत्री की मूर्ति तोड़ी जा रही है, दूसरी ओर तीन शहरों में खुला उपद्रव होता है। मूर्ति तोड़ने का मामला राजनीतिक होता है इसीलिए लीपापोती करते हुए नई मूर्ति लगवा दी जाती है और आरोपी को 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार कर लिया जाता है। लेकिन असम और म्यांमार में मुस्लिमों पर कथित ज्यादती के बाद प्रदेश के तीन बड़े शहरों-राजधानी लखनऊ, कानपुर और इलाहाबाद- में हजारों उपद्रवियों द्वारा घंटों उत्पात किया जाता है, पत्रकारों को पीटा जाता है, छायाकारों के कैमरे तोड़ दिए जाते हैं, इसके बावजूद कुछ अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज करने के अलावा कोई कार्रवाई नहीं होती।
पताथा, पररोकानहीं
उत्तर प्रदेश में 17 अगस्त को अलविदा की नमाज का दिन उपद्रव के नाम रहा। राजधानी लखनऊ, कानपुर के साथ ही इलाहाबाद को भी हिंसा की भेंट चढ़ा दिया गया। राजधानी में जमीयत उलेमाए हिंद ने चार दिन पहले से ही घोषणा कर रखी थी कि वह अलविदा की नमाज (17 अगस्त-शुक्रवार) के बाद असम और म्यांमार की घटनाओं के विरोध में प्रदर्शन करेगी। जिला प्रशासन ने पहले तो उसे अनुमित दे दी थी, लेकिन ऐन मौके पर उसे निरस्त कर दिया। इसका साफ मतलब था कि उसे किसी गड़बड़ी का अंदेशा था। लेकिन तब भी उसकी रोकथाम के लिए किसी तरह का इंतजाम नहीं किया गया। नतीजा, पूरा शहर हिंसा की भेंट चढ़ गया। पहले से तैयार अराजक तत्व टीले वाली मस्जिद से लेकर विधानभवन तक (करीब चार किलोमीटर के दायरे में) तीन घंटे तक उपद्रव मचाते रहे। तैयारी पहले से थी। उन्हें बताया गया था कि 'असम और म्यामांर में मुसलमानों पर घोर अत्याचार किया गया है। उनका बदला लेना है।' लाठी, डंडे और घातक हथियारों समेत वे पहले से ही तैयार थे।
महावीरस्वामीकीप्रतिमातोड़ी
टीले वाली मस्जिद में नमाज खत्म होने के थोड़ी ही देर बाद हजारों की संख्या में भीड़ एकत्रित हो गई। हिंसा पर उतारू ये मजहबी कट्टरवादी वहां से उत्पात मचाते हुए विधानसभा की ओर चल पड़े। रास्ते में जो जहां मिला, उसको पीटते और तोड़-फोड़ करते रहे। उत्पाती भीड़ गोमती नदी के किनारे बुद्ध पार्क, कारगिल शहीद पार्क और हाथी पार्क में घुस गई और जमकर तोड़-फोड़ की। महावीर स्वामी की प्रतिमा तोड़ी गई। स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में लगी झालरों को छिन्न-भिन्न कर दिया। रास्ते में एक दर्जन से अधिक आम लोग इनकी हिंसा के शिकार हुए। पूरी घटना को अपने कैमरे में उतार रहे छायाकार भी इनका निशाना बने। उनकी जमकर धुनाई की गई और कैमरे तोड़ डाले गए। रील निकाल ली गई ताकि उनकी हिंसा को दिखाया न जा सके। दोपहर करीब दो बजे से शुरू हुआ इनका उपद्रव शाम पांच बजे तक जारी रहा। उपद्रवियों ने रास्ते में जिलाधिकारी आवास में भी घुसने की कोशिश की। फिर आगे बढ़ते हुए हजरतगंज स्थित मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय को निशाना बनाया। उसमें घुसने की कोशिश की। बहरहाल वहां तैनात रेलवे सुरक्षा बल के जवानों ने उन्हें खदेड़ दिया।
हिंसाकाउफान
पुलिस ने उन्हें रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। वे साथ-साथ चल रहे थे, मानो उनकी मूक सहमति हो। एक दो पुलिसवाले भी उनका निशाना बने। एक पुलिसवाले की मोटरसाइकिल में ही आग लगा दी। बताया जा रहा है कि उन्हें उपद्रवियों को कड़ाई से रोकने का कोई आदेश नहीं मिला था। भीड़ हजरतगंज होते हुए विधानसभा मार्ग पर धरनास्थल की ओर बढ़ी तो भी उसे रोकने का इंतजाम नहीं किया गया। उधर प्रदर्शन पर रोक के बावजूद धरनास्थल पर जमीयत उलेमाए हिंद का विरोध जारी रहा। वहां जुटे लोगों ने देशविरोधी और सरकार विरोधी नारे लगाए। हिंसक भीड़ धरनास्थल पर आई तो वहां धरने पर बैठे अन्य विभिन्न संगठनों के लोगों को मारकर भगा दिया गया। शाम को स्थिति अत्यंत विस्फोटक होने पर बड़ी संख्या में पुलिस बल आया तो हिंसक भीड़ तितर-बितर हो गई। अपने ऊपर हुए अन्याय के खिलाफ जब पत्रकार एकजुट हुए तो सरकार ने घटना की जांच राजधानी के मंडलायुक्त को सौंपकर मामले को थामने की कोशिश की। बाद में 15 हजार अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया। कई दिन बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
कानपुरमेंउत्पात
उधर कट्टर मजहबी तत्वों द्वारा कानपुर में भी व्यापक हिंसा की गई। यहां यतीमखाना स्थित नानपारा मस्जिद में काली पट्टी बांधकर नमाज अदा की गई। नमाज के बाद वहीं असम मामले पर भड़काऊ भाषण शुरू कर दिया गया। सभी लोग नारेबाजी करते हुए नवीन मार्केट की ओर बढ़ने लगे। यहां पुलिस ने उन्हें रोकने की थोड़ी कोशिश की तो उपद्रवी भारी पड़े। सैकड़ों लोगों की भीड़ साइकिल मार्केट की ओर बढ़ी और हिंसा का नंगा नाच शुरू हो गया। इनके आने से इस व्यस्त मार्केट में भगदड़ मच गई। उपद्रवियों ने वाहनों को अपना निशाना बनाया। दुकानों में तोड़-फोड़ का सिलसिला काफी देर तक जारी रहा। इसके बाद नई सड़क का इलाका उनके निशाने पर रहा। वहां भी व्यापक उत्पात किया गया। यहां पुलिस और उत्पातियों के बीच लुकाछिपी का खेल काफी देर तक चला। कानपुर में भी हिंसा के बाद अभी तक किसी कार्रवाई की खबर नहीं है।
लखनऊ, कानपुरऔरइलाहाबादमेंतोड़–फोड़
राजधानीमेंभगवानमहावीरकीमूर्तितोड़ी
कारगिलशहीदपार्ककोभीबनायानिशाना
पत्रकारऔरछायाकारभीहिंसाकेशिकार
पूरे राज्य में दहशत का माहौल, सरकार ने साधी चुप्पी
यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
टिप्पणियाँ