'ना-पाक' पाकिस्तान?
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नरेन्द्र सहगल
आखिर कब तक बर्दाश्त किया जाता रहेगा
चार परोक्ष युद्ध, सशस्त्र घुसपैठ, आईएसआई एजेंटों का फैलाव, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद, सीमाओं पर गोलाबारी और सैनिक हस्तक्षेप के बाद अब साइबर हस्तक्षेप। पिछले 65 वर्षों से भारत को दारुल इस्लाम में तब्दील करने में जुटा है पाकिस्तान। उसके सुधर जाने का इंतजार करना राजनीतिक नासमझी ही होगी।
भारत में 'साइबर जिहाद' की शुरुआत करके पाकिस्तान के एजेंटों ने हमारी मुख्य राष्ट्रीय धारा, भावनात्मक एकता और सामाजिक सौहार्द को सीधी चुनौती दी है।
सारा देश भुगत रहा है
मुस्लिम–तुष्टीकरण का नतीजा
यह पहला अवसर नहीं है जब आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर भारत सरकार की जग हंसाई हुई हो। सरकार के निकम्मेपन की वजह से असम में फैली हिंसा के बाद पाकिस्तान द्वारा सोशल साइट्स के जरिए फैलाई गई अफवाहों ने भारत विरोधी मुस्लिम संगठनों को सड़कों पर उतरकर हिंसक उत्पात करने का मौका दे दिया। गृह मंत्रालय की ताजा रपट के अनुसार वेबसाइटों पर फर्जी फोटो और वीडियो अपलोड करने का सिलसिला 13 जुलाई से ही शुरू हो गया था। फिर क्यों सरकार एक महीने तक मौन साधे रही? असम सरकार की नाकामियों को छुपाकर हिंसा की आग अन्य प्रांतों में क्यों फैलने दी गई? शायद इन दिनों कोयले की दलाली में मुंह काला करवा रही सरकार को अभी भी समझ में नहीं आया कि यह उत्पात पाकिस्तान, बंगलादेशी घुसपैठियों और भारत स्थित पाकिस्तान के एजेंटों की सोची-समझी जिहादी शरारत है।
वैसे असम और केन्द्र की सरकारों ने अपने परंपरागत तरीके से देश की जनता की आंखों में धूल झोंक दी है। प्रधानमंत्री ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया है कि 'देश की एकता, सम्प्रभुता और सद्भाव दांव पर लगे हैं। लिहाजा फसाद करने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा'। इसी तरह गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक से सोशल साइट्स का गलत इस्तेमाल करने वालों पर कार्रवाई करने का निवेदन कर दिया हे। उधर असम के मुख्यमंत्री ने कह दिया है कि हालात ठीक होने में दो-तीन महीने का समय लग जाएगा। इन बयानों से ही साफ हो गया है कि प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह यह तो जानते हैं कि देश की एकता, सम्प्रभुता और सद्भाव पर खतरा है परंतु यह खतरा पाकिस्तान के एजेंट पैदा कर रहे हैं इसका खुलासा वे नहीं करेंगे। गृहमंत्री पाकिस्तान को परिणाम भुगतने की चेतावनी नहीं देंगे और असम के मुख्यमंत्री तीन महीने से पहले इस समस्या का निपटारा करने का रास्ता नहीं खोजेंगे। यही तो है तुष्टीकरण की राजनीति का नतीजा जिसे सारा देश भुगत रहा है।
कट्टरवादियों ने बनाया
हिन्दू विरोध का माहौल
यह सच्चाई तो सामने आ गई कि अफवाहें फैलाकर पूर्वोत्तर भारत में हिंसा फैलाने की साजिश पाकिस्तान में रची गई। परंतु जिन मजहबी संगठनों ने इसका विस्तार मुम्बई, हैदराबाद इत्यादि शहरों में किया और गैर मुस्लिमों को भाग जाने की धमकियां दीं, उन संगठनों पर सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार 'स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया' ( सिमी) के सरगना सकाब नाचान और उसके साथियों की इन दंगों और दुष्प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका है। जहां अनेक राष्ट्रवादी एवं देशभक्त मुसलमानों और उनके नेताओं ने अफवाहों पर यकीन न करने की अपीलें जारी कीं, वहीं कई कट्टरवादी नेताओं ने इस हालात को 'इस्लाम खतरे में' कहकर फिरकापरस्त माहौल बनाने की कोशिश की। बंगलादेशी घुसपैठियों को भारतीय मुसलमान मानकर ऐसे नेताओं ने, हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया। असम और म्यांमार में मुसलमानों को मारा, उजाड़ा और भगाया जा रहा है, यह दुष्प्रचार होने लगा।
हैदराबाद के सांसद ओवैसी ने तो सारी हदें पार कर दीं। वे बोले, 'हम बोडो आदिवासियों (हिन्दुओं) जैसे नहीं हैं, जिन्होंने चार लाख अल्पसंख्यकों को बेघर कर दिया…।' पाकिस्तान और उसके एजेंटों को बेगुनाह साबित करते हुए ओवैसी ने झूठ बोलते हुए कहा 'अफवाहें फैलाने का काम संघ कर रहा है।' यह कहकर ओवैसी ने हिन्दुओं के विरुद्ध मुसलमानों को भड़काने की कोशिश की। हैरानी की बात तो यह है कि कश्मीर से चार लाख से ज्यादा हिन्दुओं को हिंसा के जोर से अपने घरों से उजाड़न वाले संगठन भी इन बंगलादेशी घुसपैठियों को शरण देने की बातें कर रहे हैं। कश्मीर में सक्रिय महिला आतंकी संगठन दुख्तराने मिल्लत की नेता आयशा अन्द्राबी ने भी गत शुक्रवार को एक जलसे में कहा कि असम और म्यांमार के मुसलमान कश्मीर में शरण ले सकते हैं। मीरवायज ने तो यहां तक कह दिया कि भारत सहित सारी दुनिया में मुसलमानों को मारा जा रहा है।
पाकिस्तानी एजेंटों ने दी
राष्ट्रीय एकता को चुनौती
भारत में सक्रिय पाकिस्तान के एजेंटों द्वारा असम और म्यांमार में मुस्लिम समाज पर होने वाले कथित जुल्मों की भयावह तस्वीर पेश किए जाने के परिणामस्वरूप बंगलूरु, पुणे, हैदराबाद, चेन्नै इत्यादि शहरों में रहने वाले पूर्वोत्तर के लोग मुख्तया हिन्दू अपने कारोबार, नौकरियां, पढ़ाई और घर छोड़कर गुवाहाटी जाने को मजबूर हो गए। इस मजबूरी के लिए जिम्मेदार मजहबी गुटों पर कांग्रेसी सरकार कोई भी सख्त कार्रवाई नहीं कर सकती। वह अपने चुनावी नतीजे प्रभावित नहीं कर सकती। संभवतया यही वजह है कि मुम्बई के पुलिस आयुक्त ने अपने आकाओं के आदेश पर अपने जवानों को दंगाइयों पर कार्रवाई करने से रोक दिया। आयुक्त अरूप पटनायक और उनके साथियों ने जवान ज्योति जैसे राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीकों पर हुए हमलों को भी बर्दाश्त कर लिया। आखिर क्यों?
मुम्बई सहित पूरे पूर्वोत्तर में घटित घटनाओं ने बहुत सी सच्चाइयों को समस्त भारतवासियों के समक्ष पुन:उजागर कर दिया है। अर्थात भारत के ज्यादातर मुस्लिम संगठन विदेशी घुसपैठियों खासतौर पर बंगलादेशियों को 'भारतीय मुसलमान' ही मानते हैं। इन्हें बंगलादेशियों से कोई खतरा नहीं है। जब इस्लाम की बात आएगी तो राष्ट्र की सीमा और भूगोल, देशहित तथा सामाजिक सौहार्द सब कुर्बान किए जा सकते हैं। इन घटनाओं ने भारत की मुख्यधारा, भावात्मक एकता और देश की सुरक्षा को भी चुनौती दे दी है। अन्यथा पूर्वोत्तर में रहने वाले असमी लोगों को अपने घर छोड़कर भागना न पड़ता। पाकिस्तान के एजेंटों ने यह भी साबित कर दिया है कि वे कभी भी भारत के ज्यादातर मुस्लिम गुटों का नेतृत्व संभालकर उन्हें भारत की मुख्य राष्ट्रीय धारा के खिलाफ सफल विद्रोह करवा सकते हैं। इन घटनाओं ने इस सत्य पर भी मोहर लगा दी है कि जिहादी उग्रवाद का प्रभाव मुस्लिम समाज पर बढ़ रहा है। यह बात भी सतह पर आ गई कि मुस्लिम समाज में व्याप्त कट्टरवादी तत्व कभी भी सरकारों और राजनीतिक दलों को हताश और बलहीन बना सकते हैं।
आतंकियों को दिया जाता है
'साइबर जिहाद' का प्रशिक्षण
पाकिस्तान द्वारा भारत के मुस्लिम समाज को राष्ट्र की मुख्यधारा के विरुद्ध संघर्ष के लिए तैयार करने के प्रयास भारत विभाजन के समय से ही चल रहे हैं। यह वर्तमान 'साइबर जिहाद' उन्हीं प्रयासों की अगली कड़ी है। भारत में अफरा तफरी फैलाना यह पाकिस्तान की विदेश नीति का मुख्य हिस्सा है। पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में वहां की सरकार और सेना के संरक्षण में चल रहे आतंकी प्रशिक्षण शिविरों का यही उद्देश्य है। पहले पंजाब और अब जम्मू-कश्मीर में व्याप्त हिंसक आतंकवाद इसी पाकिस्तानी रणनीति का हिस्सा है। पिछले दो दशकों में भारत की राजधानी दिल्ली सहित बड़े-बड़े महानगरों अमदाबाद, जयपुर, नागपुर, मुम्बई, नासिक, अयोध्या, बंगलूरु, जम्मू और श्रीनगर इत्यादि में जिहादियों द्वारा अंजाम दिए गए भीषण नरसंहारों की योजना और संचालन पाकिस्तान में ही हुए। देश की संसद पर भी आतंकी हमला आयोजित करने में पाकिस्तान सफल हो गया। यह अलग बात है कि भारत के सुरक्षा जवानों ने अपने बलिदान देकर इसे विफल कर दिया। पाकिस्तान की यह नापाक हरकतें आज भी जारी हैं।
पाकिस्तान की धरती पर अब साइबर जिहाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। आतंकी संगठन अब सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने की रणनीति अख्तियार कर रहे हैं। आतंकी संगठन लश्करे तोएबा द्वारा 15 दिवसीय विशेष कैप्सूल कोर्स करवाए जाते हैं। नए कैडर को कम्प्यूटर और सूचना तंत्र के माध्यम से हिंसक गतिविधियां चलाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस कोर्स में कश्मीरी युवकों को ट्रेनिंग देने का काम लश्कर के कमांडर करते हैं। यह सब जानकारी भारत के गृह मंत्रालय के पास है। गत जनवरी मास में इस तरह के समाचार सामने भी आए थे। कश्मीर घाटी में उत्तरी रेंज के डीआईजी मुनीर खान ने भी इन खबरों की पुष्टि की थी कि पाकिस्तान में साइबर जिहाद की तैयारियां चल रही हैं। पाकिस्तान ने भारत में 'साइबर वार' शुरू करने का नया रास्ता खोजा है। असम और पूर्वोत्तर की घटनाएं इसकी साक्षी हैं।
पाकिस्तान की रणनीति है
भारत में सशस्त्र घुसपैठ
भारत को भी दारुल इस्लाम में तब्दील करना पाकिस्तान का जन्मजात उद्देश्य है। इसी उद्देश्य के लिए हमारे इस पड़ोसी देश ने चार बार भारत पर सीधे हमले किए हैं। इन हमलों में पिटने के बाद भी उसकी कोशिशों में कोई कमी नहीं आयी। भारत की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डालने के साथ-साथ पाकिस्तान ने सीमाओं पर भी सदैव तनाव बनाए रखा है। सन् 2003 में हुए संघर्ष विराम का भी पाकिस्तान ने दो सौ से ज्यादा बार उल्लंघन किया है। पाक रेंजर भारत की न केवल सैन्य चौकियों अपितु सीमावर्ती गांवों पर भी गोले बरसाने से बाज नहीं आते। पिछले पखवाड़े में पाकिस्तानी सैनिकों ने तीस बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया है। जम्मू-कश्मीर के साथ लगती पाकिस्तान की 1267 किलोमीटर सीमा पर तनाव बरकरार है। सीमावर्ती गांवों के लोग डर की वजह से अपने खेतों एवं कारोबार पर नहीं जाते। नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर होने वाली गोलाबारी की वजह से गांव खाली हो रहे हैं।
यद्यपि भारतीय सीमा सुरक्षा बल के जवान पाकिस्तान द्वारा होने वाली गोलाबारी का समुचित उत्तर देते हैं, परंतु पाकिस्तान की हिम्मत बढ़ती जा रही है। भारतीय सैन्याधिकारी एवं जवान पूरी तरह तैयार हैं। उधर सीमा के पार पाकिस्तान के गांवों में भी लगभग यही माहौल है। वहां बंकर, लांचिंग पैड, चौकियां और मोर्चे बन रहे हैं। सैन्याधिकारियों के अनुसार पाकिस्तान के रेंजरों द्वारा की जाने वाली गोलाबारी वास्तव में सशस्त्र घुसपैठियों को दिया जाने वाला कवरिंग फायर है। घुसपैठ की कोशिशें निरंतर जारी हैं। वास्तविकता तो यह है कि जब तक भारत की सरकार इस घुसपैठ को रोकने के लिए कोई सख्त कार्रवाई नहीं करती, तब तक भारत में घटने वाली पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी वारदातों को विराम नहीं दिया जा सकता। भारत के शासकों की कमजोर एवं कायराना राजनीतिक इच्छा शक्ति और ढुल मुल नीति ही पाकिस्तान की शक्ति है। उसी वजह से असम और पूर्वोत्तर के हालात बिगड़े हैं।
राष्ट्रहित के सवाल पर
घुटने टेकना छोड़ दें
भारत सरकार अगर पाकिस्तान के असली इरादों को समझे बिना ही उसे दोष देती रहेगी तो हमारी यह सबसे बड़ी कूटनीतिक पराजय होगी। पाकिस्तान जो भी कर रहा है वह एक सोची-समझी और उद्देश्य निर्धारित रणनीति है। भारत की आंतरिक एवं बाहरी सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत सरकार की है न कि पाकिस्तान की। पाक प्रायोजित हिंसक घटनाओं के भारत द्वारा दिए जाने वाले सबूतों को पाकिस्तान हमेशा रद्दी की टोकरी में फेंकता चला आ रहा है। असम और पूर्वोत्तर की हिंसा के सबूतों का भी वही हाल होगा जो 26/11 के मुम्बई नरसंहार के ठोस एवं विस्तृत सबूतों का हुआ है। एक ओर पाकिस्तान पूर्वोत्तर की घटनाओं से संबंधित 'साइबर वार' की तैयारी के सबूत मांग रहा है, वहीं दूसरी ओर सभी आरोपों को बेबुनियाद करार देकर भारत की मंशा पर ही सवालिया निशान लगा रहा है। इधर भारत सरकार अपनी परंपरागत कांग्रेसी स्टाइल की अनुनय विनय की कायर नीति को ही नहीं छोड़ रही।
पिछले छह दशकों का इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान बातों/वार्तालापों, समझौतों और विनय की भाषा नहीं समझता। पाकिस्तान की नजर में यह सब नीतियां भारत की कमजोरियां हैं। अब तक पाकिस्तान हमें अंधेरे में धकेलकर अपनी गोटियां चलता आया है। अब तो उसने भारत के सैनिक हस्तक्षेप की नीति के साथ साइबर वार का भी खेल शुरू कर दिया है। कहीं ऐसा न हो कि सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सरताज बनने की ताल ठोंकने वाला हमारा देश सरकारी कायरता की वजह से पाकिस्तान की इस साइबर जिहाद की नयी रणनीति से मार खा जाए। भारत सरकार को नींद से जागना होगा। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पूरी शक्ति के साथ पाकिस्तान की पोल खोलनी चाहिए। आंतरिक सुरक्षा के सवाल पर घुटने न टेककर सुरक्षा बलों को सख्त कार्रवाई के स्पष्ट आदेश देने के साथ ही पाकिस्तान के साथ युद्ध के मैदान में दो-दो हाथ करने की तैयारी भी कर लेनी चाहिए।
स्वदेश चिन्तन
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