|
हनन नहीं हो अधिकारों का ऐसी बात करो
जीने के क्षण मौन मुखर हो और अधिक हहरो।
अपने को दुहराने भर से
पंथ नहीं सूझे,
शब्द व्यूह रचनाओं को भी
कौन यहां बूझे?
वंचित कौन, उत्पीड़न क्या, सोचो, मत बिफरो।
कुछ क्षण युग के अधरों से तुम बनकर गीत ढरो।
कितनी सदियां बीत गईं पर
कल्प सभी रीते,
हम बदलेंगे जीवन धारा,
कहते दिन बीते।
कथा सूत्र भी जुड़ जाएंगे, मन से तो उबरो।
टूटन और घटित होने से पहले तुम संवरो।
सोच बदल जाने से शायद
सबके मन बदलें,
एक रोशनी के बढ़ने से
लाखों मन उजलें।
रिक्त पड़े हैं कोने–कोने पहले उन्हें भरो।
भारत के इस मानचित्र में रंगों से उभरो।
टिप्पणियाँ