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श्रीकृष्ण का चरित्र अलौकिक है। उनके जीवन के अनेक पक्ष हैं। यहां उनके जीवन के संहार या कहें उद्धार पक्ष पर चर्चा की जाएगी।
श्रीकृष्ण के जन्म से पूर्व ही मथुरा कारागार के सभी प्रहरी सो गए और सभी ताले स्वयं खुल गए। वसुदेव जी उन्हें लेकर गोकुल गए। यशोदा के समीप श्रीकृष्ण को सुला कर तथा नवजात बालिका को लेकर वे सकुशल-वापस आ गए। बालिका को पाकर कंस ने क्रूरतापूर्वक उसे शिला पर पटकना चाहा तो वह आकाश में उड़ गई और संदेश भी दे गई कि कंस का संहार करने वाला बालक गोकुल में पहुंच चुका है।
पूतना वध
कंस ने राक्षसी पूतना को बुलवाया और गोकुल भेजा। पहले यशोदा को बधाई दी फिर मिठाई मांगी और फिर एक भद्र महिला के समान स्नेह प्रदर्शन करते हुए शिशु को गोद में ले लिया। अवसर पाकर पूतना ने अपना विष से सना हुआ स्तन श्रीकृष्ण के मुख में डाल दिया। बस! फिर तो श्रीकृष्ण ने दूध के लिए उसके प्राण खींच लिए। छद्म रूप मिट गया और पूतना का असली राक्षसी रूप प्रकट हो गया। वास्तव में भगवान ने उसका उद्धार कर दिया।
शकटासुर वध
शकटासुर का आकार एक बैलगाड़ी जैसा था, जिसके बड़े-बड़े पहियों के नीचे पर्याप्त छाया थी। उसी की छाया में माता यशोदा ने अपने प्रिय लाल को सुला दिया। शकट पर गोकुल के मटके लदे थे। अचानक शकट नीचे बैठने लगा। लाल कन्हैया ने एक लात मारी और शकट सैकड़ों फुट ऊंचा आकाश में उड़ गया। मकानों और वृक्षों को तोड़ता हुआ राक्षस रूप में धरती पर गिरा। शिशु कृष्ण ने शकटासुर को एक पल में ही मार दिया।
तृणावृत असुर का संहार
तृणावृत का अर्थ ही है तूफान। अकेले आंगन में बैठे श्रीकृष्ण को तृणावृत राक्षस ने घेर लिया। सारे गोकुल में भयंकर आंधी तूफान उमड़ पड़ा। तृणावृत श्रीकृष्ण को आकाश में उड़ा ले गया, उसने उन्हें अपनी पीठ पर लाद लिया था। फिर भगवान ने अपना भार बढ़ाना आरम्भ किया। शनै:-शनै: भार बढ़ता गया और इतना बढ़ गया कि दैत्य उसे सहन न कर सका। अन्त में वह आकाश से धरती पर आ गिरा। उसकी लाश पर शिशु श्रीकृष्ण मजे से खेल रहे थे। उसके उपरान्त गोकुल वासियों ने गोकुल ग्राम छोड़ दिया और वृंदावन आ गए।
वत्सासुर वध
ग्वाल बालों के साथ कृष्ण भी अपनी गाय चराने जाते। एक दिन उन्होंने देखा कि गायों के बीच में एक सुन्दर बलवान बछड़ा उछल रहा है। श्रीकृष्ण पहचान गए कि यह असुर है। श्रीकृष्ण बोले- भैया बलदाऊ यह वत्स तो आपके हिस्से का है। बलराम समझ गए। उन्होंने बछड़े के पीछे दौड़ लगाई। उन्होंने पूंछ पकड़ कर उसे घुमाया और धरती पर दे मारा। तुरन्त उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
बकासुर वध
एक दिन भगवान श्रीकृष्ण तथा बलराम ग्वाल बालों के साथ यमुना तट पर गउएं चरा रहे थे। बालकों ने बताया कि देखो एक बगुला यमुना किनारे बैठा है। श्रीकृष्ण को देखते ही वह झपटा और चोंच में साबुत ही निगल गया। बलदाऊ और ग्वाल बाल भी उसके पेट में समा गए। श्रीकृष्ण ने अपने शरीर में ऊर्जा भरनी शुरू कर दी। गर्मी इतनी अधिक बढ़ गई कि वह श्रीकृष्ण को उगलने के लिए विवश हो गया। जैसे ही श्रीकृष्ण पेट से चोंच में आए उन्होंने बगुले की चोंच के दोनों सिरे पकड़ कर बलपूर्वक चीर दिया।
अघासुर का संहार
अघासुर भी कंस के द्वारा भेजा गया था। वह अजगर बन अपना भयंकर मुंह फैलाए बैठा था। जो बालक अजगर के मुंह के पास पहुंच जाते वह एक गहरे श्वास के साथ उन्हें सटक जाता। श्रीकृष्ण सावधान हो गए और स्वयं भी अजगर के मुख में प्रवेश कर गए। अघासुर ने अपना मुंह तुरन्त बंद कर लिया। श्रीकृष्ण ने अपना आकार बढ़ाना प्रारंभ किया। कुछ पल में ही वे इतने बड़े हो गए कि अजगर की सांस ही रुक गयी। अघासुर प्राण-हीन होकर गिर पड़ा।
कालिया नाग नाथन
यमुना तट पर एक घाट बिल्कुल बन्द ही हो गया था। वहां यमुना में कालिया नाग के विष का भारी प्रभाव था। एक बार कालीदह घाट पर खेलते हुए गेंद यमुना में चली गई। श्रीकृष्ण तत्क्षण यमुना में कूद गए। देखते ही देखते श्रीकृष्ण कालिया नाग के मस्तक पर चढ़ गए। उसके फनों पर नृत्य करने लगे। वह छटपटाता रहा परन्तु अपने ही फन के ऊपर उसका कुछ जोर न चला। निढाल होकर वह जल के ऊपर आ गया। श्रीकृष्ण ने उसके फनों को नाथ रखा था और उस पर खड़े वंशी बजा रहे थे। श्रीकृष्ण कूद कर बाहर आ गए और कालिया नाग तभी यमुना छोड़कर चला गया।
प्रलंवासुर संहार
एक बार श्रीकृष्ण, बलराम घुड़सवारी का खेल खेल रहे थे। दोनों की अलग-अलग टोली थी। प्रलंवासुर ने भी एक ग्वाले का रूप धारण किया और श्रीकृष्ण की टोली में सम्मिलित हो गया। अन्तर्यामी श्रीकृष्ण जान गए और जानकर हार गए। बलराम की टोली जीत गई। ग्वाला बने प्रलंवासुर पर बलराम जी बैठ गए। उसने सोचा इसी को लेकर भाग जाता हूं। अलग ले जाकर मार डालूंगा। श्रीकृष्ण ने संकेत दिया- बलदाऊ समझ गए और अपना भार बढ़ाने लगे। उसने अपना असली रूप धारण किया और आकाश में उड़ने लगा। तब बलराम ने उसे मार डाला।
शंखचूड़ यक्ष का उद्धार
श्रीकृष्ण की मधुर बंशी की तान गोप-गोपियों का मन मोहित कर रही थी। अत: श्रीकृष्ण के पीछे वे बेसुध से चलते जा रहे थे। सहसा शंखचूड़ नाम का यक्ष एक गोपी को उठा कर उत्तर दिशा की ओर भागा। गोपी ने भय से कन्हैया को पुकारा। कन्हैया ने एक घूसा उसके सिर पर मारा और वह धराशाई हो गया।
अरिष्टासुर वध
कंस द्वारा भेजा गया अरिष्टासुर बैल बनकर गायों में आ मिला। ब्रज में प्रवेश करते ही उसकी शरारतें असहनीय हो गईं। गोपी, ग्वाले भयभीत होकर भागने लगे। श्रीकृष्ण जी ने उसके सींग पकड़ कर उठाया और धरती पर पटक दिया।
हाथी कुवलयापीड़ को फेंका
कंस ने श्री अक्रूर जी के द्वारा कृष्ण, बलराम को मथुरा बुलवाया। यह उसका षड्यंत्र था। यज्ञशाला में धनुष यज्ञ और कुश्ती का आयोजन किया गया था। द्वार पर कुवलयापीड़ खड़ा किया गया। श्रीकृष्ण ने महावत को कहा- भाई, हाथी को हटा लो। महावत को कंस का आदेश था। उसने हाथी को कृष्ण-बलराम को कुचलने हेतु उकसाया। श्रीकृष्ण ने अपना चमत्कार दिखाया और उसका काम तमाम कर दिया।
कंस व चाणूर मर्दन
कंस की सभा के दो विशालकाय पहलवान थे मुष्टिक और चाणूर। सभागार में प्रवेश करते ही दोनों ने उन्हें ललकारा। मुष्टिक बलराम से भिड़ गया और चाणूर श्रीकृष्ण से भिड़ा। दोनों भाइयों ने उनका भी बेड़ा पार किया।
कंस ने अपनी तलवार खींच ली। कृष्ण तो शस्त्रहीन थे। उन्होंने कंस के केश पकड़कर धरती पर पटक दिया। श्रीकृष्ण ने पापी कंस को भी मुक्त कर दिया।
भौमासुर की समाप्ति
भौमासुर कन्याओं को कैद में डाले रखता। उसका प्रण था कि एक लाख होने पर मैं सबसे एक साथ विवाह करूंगा। उसकी कैद में कन्याओं की संख्या सोलह हजार एक सौ हो चुकी थी। इन्द्र ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की कि इस भौमासुर का कोई उपाय कीजिए। तब श्रीकृष्ण ने पहले उसकी सेना और फिर बाद में उसका अन्त कर दिया। कारागृह से सोलह हजार एक सौ कन्याओं को मुक्त किया तो उन सभी ने निवेदन किया- 'प्रभो, यद्यपि भौमासुर ने हमसे विवाह नहीं किया। हम सभी पवित्र हैं, फिर भी समाज में हमें कौन अपनाएगा? किसी को हमारी पवित्रता पर भरोसा न होगा। हम कहां जाएं।' श्रीकृष्ण ने उन सभी को द्वारिका चलने का आग्रह किया तथा जो अपने परिवार में जाना चाहे उसे जाने को कहा। उनमें एक भी वापिस अपने घर नहीं गई। द्वारिका ले जाकर भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे एक साथ विवाह कर लिया। इस प्रकार उनकी सोलह हजार एक सौ आठ रानियां हुईं।
कालयवन और जरासंध का अंत
दोनों मित्र थे। बार-बार मथुरा पर आक्रमण करते थे। एक बार कृष्ण कालयवन के सामने आए और निहत्थे एक ओर भाग निकले। कालयवन पीछे भागा। श्रीकृष्ण एक गुफा में घुस गए। गुफा में एक व्यक्ति सोया हुआ था। उन्होंने अपना दुपट्टा उसको ओढ़ा दिया और स्वयं पास ही छिप गए। कालयवन ने समझा श्रीकृष्ण यहां छिपकर सो रहे हैं। उसने जोर से लात मारी। सोया हुआ व्यक्ति उठा और जैसे ही उसने कालयवन को देखा, क्षण भर में कालयवन भष्म हो गया। इसके पश्चात् श्रीकृष्ण ने जगे हुए मुचकुन्द को अपना परिचय दिया। मुचकुन्द सूर्यवंशी राजा था और त्रेता युग से उस गुफा में सो रहा था। देवों की सहायता के बाद उसने वरदान स्वरूप चैन की नींद मांगी थी। उसे वरदान मिला था कि जो कोई उसे जगाएगा वह मुचकुन्द की दृष्टि पड़ते ही भस्म हो जाएगा।
जरासंध को बार-बार हरा कर भी श्रीकृष्ण इसीलिए छोड़ते रहे कि वह हर बार नई राक्षस सेना लाए और बार-बार उनका संहार करता रहूं। जब उसको दण्ड देने का समय आ गया तो भीम और अर्जुन को साथ लेकर भगवान उसके पास पहुंचे। भीम से मल्ल युद्ध उसने स्वयं स्वीकारा। श्रीकृष्ण ने एक तिनका चीर कर संकेत किया और भीम ने जरासंध के बीच में से दो टुकड़े कर दिए।
इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने बल, बुद्धि युक्ति और माया से कई अन्य दुष्टों का भी संहार किया। जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर हम सभी प्रार्थना करें कि कलियुग के दैत्यों का भी भगवान शीघ्र संहार करें।
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