यह कैसी सेवा?
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यह कैसी सेवा?
मोहन उपाध्याय
इक-दूजे को देते गाली
यह इनकी पहचान है;
देश हो गया दूर दलों से
जिसका इन्हें न ध्यान है।
ताल ठोककर ये कहते हैं-
हम अब जांच करायेंगे;
गड़े हुए मुर्दों को लाकर
फिर से तुम्हें दिखाएंगे।
वर्तमान की बात न करते
बस, भविष्य के सपने हैं;
काम नहीं पूरा होता है
सपने कभी न अपने हैं।
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