श्रीकृष्ण-दर्शन के विविध आयाम
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श्रीकृष्ण–दर्शन के विविध आयाम
परम कृष्णभक्त आचार्य डा.रमेश 'कृष्ण' एक बार फिर योगीराज श्रीकृष्ण के चरित्र को एक नए रूप में लेकर प्रस्तुत हुए हैं। इस ग्रंथ का नाम है 'कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्', जो पूर्व के 'ज्योतिर्मय जनार्दन', 'श्रीकृष्ण कीर्ति' कथा, 'श्रीकृष्ण पराक्रम-परिक्रमा', 'योगेश्वर श्रीकृष्ण' (भाग 1-2-3) आदि वृहद् ग्रंथों के बाद श्रीकृष्ण के विविध आयामी जीवन का और विस्तार है। 776 पृष्ठों का यह ग्रंथ अपने 48 अध्यायों में कथ्यात्मक रूप में अत्यंत रोचक, ज्ञानप्रद व प्रेरक सामग्री संजोये हुए है। डा.रमेश की 'योगेश्वर श्रीकृष्ण' से प्रारंभ हुई आध्यात्मिक लेखन यात्रा का यह एक अनूठा पड़ाव है। भारत स्तवन से प्रारंभ हुआ यह ग्रंथ भीष्म पितामह व अर्जुन जैसे महान योद्धाओं, ऋषियों, संतों और भक्त कवियों तथा अनेक विद्वान प्रवरों व श्रेष्ठ जनों के श्रीकृष्ण चरणों में समर्पित श्रद्धा सुमनों से सुवासित, श्रीकृष्ण के जीवनकाल व महाभारत के अनेक रोमांचक व प्रेरक प्रसंगों से होता हुआ, गीता के अध्यायों का विवेचनापूर्ण स्पर्श करते हुए, श्रीकृष्ण की ऐतिहासिक प्रासंगिकता व श्रीकृष्ण के सुशासन की गौरवपूर्ण यात्रा से गुजरकर वैदिक यज्ञ व गोसेवा व गोभक्तों का चित्रण करते हुए, गोरक्षा आंदोलन और गोभक्तों के महान बलिदान तक का अनूठा संगम है, जो अपनी लयबद्धता से पाठक को न केवल बांधे रखता है बल्कि आगे क्या है, की उत्सुकता जगाता हुआ खींचे ले जाता है।
भारत स्तवन में 'धर्म और मानवता की ज्योति भारत भूमि-जहां प्रभु श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव हुआ' की व्याख्या इस ग्रंथ का समग्र आशय स्पष्ट कर देती है -'अत्यंत प्राचीनकाल से भारतभूमि पर भिन्न-भिन्न धर्म संस्थापकों ने अवतार लेकर सारे संसार को सत्य की आध्यात्मिक-सनातन और पवित्र धारा से बारंबार प्लावित किया है। यहीं से उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम चारों ओर दार्शनिक ज्ञान की प्रबल धाराएं प्रवाहित हुई हैं, और यहीं से वह धारा बहेगी, जो आजकल की पार्थिव सभ्यता को आध्यात्मिक जीवन प्रदान करेगी। विदेशों में स्त्री-पुरुषों के हृदय में भौतिकतावाद की जो अग्नि धधक रही है, उसे बुझाने के लिए जिस जीवनदायी सलिल की आवश्यकता है, वह यहीं विद्यमान है। मित्रो! विश्वास रखो, यही होने जा रहा है।' यह आश्वस्ति ही इस ग्रंथ की रचना की सार्थकता है।
अनेक आकर्षक रंगीन चित्रों से सुसज्जित यह ग्रंथ आद्य शंकराचार्य के श्री कृष्णाष्टक स्तोत्र, अद्वैताचार्य श्री मधुसूदन सरस्वती, संत ज्ञानेश्वर, प्रभु वल्लभाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, प्रेम दीवानी बेगमताज, मीराबाई, भक्त सूरदास, रसखान, गोस्वामी तुलसीदास, महाकवि जयदेव जैसे अनेक कृष्ण भक्त शिरोमणियों की भक्ति रचनाओं से और भी रसयुक्त हो गया है। श्रीकृष्ण तो साक्षात रसमय हैं जैसा कि वैदिक साहित्य में निनाद हुआ है -रसो वै स:। तो यह ग्रंथ पढ़कर उसी परमतत्व के रसमय स्वरूप की अनुभूति होती है। यह लेखक की साहित्य साधना की ही परिणति है, जिसका आस्वादन पाठकों को निश्चित ही आनंदित करेगा।
बभाश
पुस्तक का नाम – कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्
लेखक – डा.रमेश 'कृष्ण'
प्रकाशक – श्रीकृष्ण प्रकाशन,
मुरादाबाद, (उ.प्र.)
ग्रंथ मंगाने का पता
डा.रमेश चंद्र यादव 'कृष्ण'
कृष्ण कुटीर, लाइनपार
(निकट गायत्री प्रज्ञा पीठ) मुरादाबाद
244001 (उ.प्र.)
मूल्य – 850 रु. पृष्ठ – 776
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