पाकिस्तान में पोलियो खुराक का विरोध
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मुस्लिम जगत
मुजफ्फर हुसैन
आंकड़ों के अनुसार भारतीय उपखण्ड में पोलियो से पीड़ित बच्चों की भरमार है। भारत और पाकिस्तान इसके गढ़ हैं। इसलिए हर वर्ष पोलियो के विरुद्ध अभियान चलाया जाता है और 5 वर्ष तक के बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाई जाती है। किन्तु मुस्लिम मजहबी कट्टरवादी इस अभियान की हवा निकालने में आगे रहते हैं। चाहे भारत हो या पाकिस्तान दोनों देशों के कट्टरवादी इसका विरोध करते हैं। अब पाकिस्तान के कट्टरवादी कह रहे हैं, 'यह अभियान ईसाई और हिन्दू लॉबी एक साजिश के तहत चला रही है। मुस्लिमों की बढ़ती आबादी पर रोक लगाने के लिए उन्होंने यह अभियान चलाया है। इस खुराक से बच्चे नपुंसक हो जाएंगे। इसलिए मुस्लिम अपने बच्चों को पोलियो की खुराक न पिलाएं।'
पाकिस्तान में कुछ सामाजिक संगठन इसका विरोध भी करते हैं, लेकिन नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है?
एक सप्ताह पूर्व पाकिस्तान के कबाइली क्षेत्रों में पोलियो खुराक का तीन दिवसीय अभियान आतंकवादियों ने बंदूक की नोक पर रोक दिया है। इस अभियान में तीन लाख बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाने की योजना थी। यद्यपि पाकिस्तान सरकार इस मामले में कार्रवाई कर रही है। लेकिन आतंकवादियों के सामने पाक सरकार बेबस है। उनका फरमान जारी होते ही किसी की हिम्मत नहीं कि उनका कोई विरोध कर सके। पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों का कहना है कि ड्रोन हमले बंद कर दिये जाएं इस शर्त पर हमने इस मुहिम को रोका है। आतंकवादी गरीब और नन्हें बच्चों को पोलियो की आड़ में अपनी ढाल बना रहे हैं। आतंकवादी गुटों के नेता स्पष्ट तौर पर कह रहे हैं कि हमने इन हमलों की रोक के लिए पोलियो की खुराक का विरोध किया है। वजीरिस्तान के कबाइली जिरगे ने पोलियो मुहिम के विरुद्ध तालिबान की पाबंदी का समर्थन किया है।
चेतावनी
दूसरी ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने एक बयान में कहा है कि पोलियो से पीड़ित बच्चों की तादाद बढ़ रही है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाइजीरिया ऐसे देश हैं, जहां अभी भी जीवन घातक यह वाइरस पाया जाता है। पाकिस्तान के कबाइली क्षेत्रों में विमान द्वारा यह चेतावनी दी जा रही है, 'जब तक अमरीका ड्रोन हमले बंद नहीं कर देता और अफगानिस्तान से अपनी सेना को नहीं बुला लेता तब तक हम पोलियो की खुराक पिलाने की अनुमति नहीं दे सकते। हमारे लोग बंदूक लेकर बस्तियों में घूम रहे हैं। जो खुराक पिलाने आएगा उसे निशाना बनाया जाएगा। बड़े होकर ये बच्चे नपुंसक बनें और उनके माता- पिता तालिबान से दुश्मनी निकालें, उससे पूर्व ही हम उनका काम तमाम कर देना चाहते हैं।'
तालिबान और उनसे मिले हुए सेना के अधिकारी यह भी प्रचार करते हैं कि जो पोलियो की दवा पिलाई जा रही है वह नकली है। नकली दवा की आड़ में ही अमरीका और उनके पाकिस्तानी एजेंट घरों में घुसकर यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे ओसामा बिन लादेन कहां छिपा हुआ है?
पाकिस्तान में रोटरी क्लब इंटरनेशनल के पोलियो अभियान की प्रणेता केरल पांद्राक का कहना है कि पोलियो की बीमारी बड़ी हद तक खतरनाक हो सकती है। पोलियो की दवा न पिलाने से बच्चे पंगु बन जाते हैं। उनके शरीर का कोई न कोई अंग इतना प्रभावित होता है कि उससे उसका जीवन भार बन जाता है। दु:खद बात तो यह है कि पोलियो के कारण बीमार हुए बच्चों की स्थिति कितनी दयनीय हो जाती है, यह शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। अपने बच्चों के प्रति इतने कठोर बनना हैवानियत की निशानी है। आतंकवादियों का कहना है कि पोलियो के टीके पर अब तक 9 अरब डालर खर्च किये जा चुके हैं। यदि यही पैसा बच्चों को अच्छा भोजन देने पर खर्च किया जाता तो देश के नागरिकों को अधिक लाभ मिलता। लेकिन पांद्राक का कहना है कि उनका तर्क थोथा है। जब बच्चा पोलियोग्रस्त हो जाएगा तो वह क्या खाएगा? पोलियो की दवा के मामले में जो भ्रम पैदा किया गया है उससे पाकिस्तान का प्रेस सख्त नाराज है। पोलियो से ग्रसित होकर एक हजार बच्चे प्रतिदिन दम तोड़ देते हैं। पाकिस्तान के दैनिक खबर ने इस संबंध में विश्व के मुस्लिम देशों से भारतीय उपखंड के देशों की तुलना की है। उसमें प्रकाशित लेख में डा.जोहरा, जो पाकिस्तान में बच्चों की बीमारियों की मशहूर डा. हैं, का कहना है कि पोलियो के मामले में अफ्रीका और एशिया के मुस्लिम राष्ट्र लापरवाही बरत रहे हैं। इसका मुख्य कारण उन पर कट्टरवादी मौलानाओं और आतंकवादी नेताओं का दबाव है।
महामारी और मुस्लिम बच्चे
भारत तो इस मामले में अत्यंत जागरूक और लोकतांत्रिक देश है, लेकिन आज भी उत्तर प्रदेश में कुछ जिले ऐसे हैं जिनमें 80 प्रतिशत मुस्लिम बच्चे इस रोग से पीड़ित हैं। यह अभिशाप अरबस्तान के देशों में नहीं है। तुर्की और उत्तरी अफ्रीका के देश अल्जीरिया, मोरक्को और ट्यूनेशिया में यह रोग नहीं पाया जाता है। कुछ मध्य और पूर्वी अफ्रीकी देशों में और अधिकतर भारतीय उपखंड के देशों में मुस्लिम बच्चे इस रोग से ग्रस्त पाए जाते हैं। इनमें पाकिस्तान नम्बर एक है। उसके पश्चात् बंगलादेश और फिर भारत आता है। भारत में भी यह अभिशाप मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में ही देखने को मिलता है। इसमें बरेली, सहारनपुर, मुरादाबाद और पीलीभीत सर्वाधिक प्रभावित हैं। गाजियाबाद, मेरठ, सिकंदराबाद और बुलंदशहर दूसरे नम्बर पर हैं। दैनिक खबर ने भारतीय उपखंड के उन जिलों का मानचित्र प्रकाशित किया है जहां इस रोग ने लाखों बच्चों की जानें ले ली हैं। अनुभव यह बताता है कि वर्षा और गर्मी के दिनों में यह प्रकोप अधिक दिखाई पड़ता है। अखबार का दावा है कि भारत के पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 74 प्रतिशत मुस्लिम बच्चे इस महामारी से पीड़ित हैं। अखबार ने यह सवाल भी पूछा है कि पाकिस्तान में तो आतंकवादियों की करामात है कि वे इन मासूमों की जान के दुश्मन बने हुए हैं। लेकिन भारत और बंगलादेश में तो ऐसा नहीं है? फिर मुस्लिम परिवार इसमें पीछे क्यों हैं? 1998 से 2001 के बीच पोलियो का ग्राफ गिर गया था लेकिन 2008 से इसने फिर विकराल रूप धारण कर लिया है। बीमारी बढ़ रही है, यह तो चिंता का विषय है ही। लेकिन अब आतंकवाद भी इससे जुड़ गया है यह सबसे अधिक चिंता का विषय है। पाकिस्तान के साप्ताहिक फैमेली ने अब्दुस्सत्तार, शमीमा रेहमान और असमा जहांगीर को उद्धत करते हुए कहा है कि जब मां-बाप ही बच्चों के दुश्मन बन गए हैं तो कोई क्या करे? पाक सरकार के पास ऐसा कोई कानून नहीं है जो इन डरपोक और अनपढ़ मां-बाप को समझा सके अथवा तो दंडित कर सके। जब तक सामाजिक संगठन इसमें रुचि नहीं लेते हैं इसका इलाज नहीं हो सकता है। लेकिन यहां तो आतंकवादियों की बंदूक की नोक पर कौन अपनी जान न्योछावर करने को तैयार रहेगा? फैमेली ने सवाल किया है क्या हमने अपनी आने वाली पीढ़ी को इस तरह की बीमारियों से ग्रसित करने के लिए पाकिस्तान बनाया था?
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