किस्मत का सितारा
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आशा रानी व्होरा
किसी नगर में एक आदमी रहता था। नाम था सितारा। पर उसकी किस्मत का सितारा सोया हुआ था। वह मेहनत करता था। पर अच्छा फल न मिलने पर जल्दी ही हार कर बैठ जाता। निराश होकर सोचा करता। दिनों और महीनों ऐसे ही सोचता रहता। फिर बुझे मन से किसी काम में हाथ डालता था, तो फिर वैसा ही हो जाता। काम असफल हो जाता और वह निराश होकर फिर वैसे ही सोचने लगता।
एक दिन सोते-सोते उसने एक सपना देखा। सपने में उसने देखा, उसकी किस्मत का सितारा एक पेड़ की टहनी पर चमक रहा है। उसने, लपक कर उसे पकड़ना चाहा, पर पकड़ न सका। जैसे-जैसे वह उसके पीछे भागता, वैसे-वैसे वह और दूर खिसकता मालूम होता। फिर एक जगह जाकर वह रुक गया। आगे समुद्र पड़ता था और सितारे वाला पेड़ दूर कहीं उसके पार दिखाई दे रहा था। वह बुरी तरह थक कर झुंझला उठा- 'अब क्या हो सकता है, लौट चलूं।' तभी उसे कहीं दूर से, एक आवाज आई- 'हिम्मत मत हारो, बढ़े चलो। तुम्हारी किस्मत का सितारा सात समुद्र पार मिलेगा।' शायद सितारा ही बोल रहा था। हड़बड़ा कर उसने आंखें मलीं कि देखूं आवाज किधर से आ रही है? पर आवाज खो गई। सितारा बुझ गया। वह जाग उठा था।
उसने अपने सपने वाली बात अपने मित्रों को कह सुनाई। एक मित्र बड़ा समझदार था। उसने कहा, 'ठीक तो है, किस्मत का सितारा यहां बैठे रहने से नहीं मिलेगा, उसके लिए चलते जाओ, आगे बढ़ते जाओ, सात समुद्र पार जाना पड़े, तो भी जाओ। कहीं तो मिलेगा ही।'
बात सितारा को लग गई। और वह चल पड़ा।
चलते-चलते थक कर जब वह एक पेड़ के नीचे विश्राम करने लगा, तो देखा कि पेड़ का आधा हिस्सा हरा है, आधा सूखा। वह हैरान होकर सोचने लगा- 'पता नहीं क्या माजरा है?'
फिर चलते-चलते एक अजनबी शहर में पहुंचा। वहां ढिंढोरची ढिंढोरा पीट रहा था, 'जो कोई राजकुमारी को हंसा देगा, राजा उसे मुंह मांगा इनाम देगा।'
चलते-चलते एक दिन समुद्र के किनारे पहुंच गया। अब समस्या आई कि पार कैसे जाएं? पर अब उसमें हिम्मत आ चुकी थी। उसने निराश होकर सोचना छोड़ दिया था। वह किनारे बैठ कर तरकीब सोचने लगा। तभी उसे एक भारी-भरकम मगरमच्छ दिखाई दिया। जब मगरमच्छ ने पानी से सिर निकाल कर अपना बड़ा-सा मुंह खोला तो वह डर कर पीछे हट गया- हाय राम! यह तो निगल ही जाएगा। पर फिर उसे एकाएक हंसी आ गई। मगरमच्छ ने मुंह दूसरी ओर फेरा कि उसकी बड़ी-सी पीठ दिखाई दे गई। बस उसने आव देखा न ताव, उछल कर पीठ पर सवार हो गया। अब डरने की बारी मगरमच्छ की थी। वह उसे लेकर पानी में सरकने लगा और धीरे-धीरे तैर कर उस पार पहुंचा आया।
पार उतर कर उसे ख्याल आया- 'इस मगरमच्छ ने मुझे खाया क्यों नहीं? अगर किस्मत का सितारा मिल गया, तो मैं उससे यह बात जरूर पूछूंगा।' और इस बार वह आगे चलने को हुआ तो देखा, सामने पेड़ की टहनी पर वही सितारा चमक रहा था। उसकी आंखें चौंधिया गईं। सितारा ने किस्मत का सितारा पा लिया था। पर अभी उसे अपने प्रश्नों का उत्तर पाना था।
उसने बैठ कर सोचा- 'यह सितारा इतनी दूर ही क्यों मिला?'
किस्मत का सितारा चमका और उसे जवाब मिला, 'इसीलिए कि खूब कड़ी मेहनत और अनुभव से ही वह मिलता है।'
'और मगरमच्छ ने मुझे अपना भोजन क्यों नहीं बनाया?'
किस्मत का सितारा फिर चमका, 'इसलिए कि सच्ची लगन में डूबे हुए व्यक्ति का दुश्मन भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता।'
'और राजकुमारी हंसती क्यों नहीं?'
सितारा फिर चमका और आवाज आई, 'उसे कोई अजूबी चीज दिखाओ।' 'और वह पेड़…?'
सितारा चमका और हंसी की रोशनी फैल गई, 'यह भी कोई पूछने की बात है, खोद कर देख लो।'
वह लौट पड़ा। उसे लगा, वह सितारा भी उसके साथ-साथ चलता आ रहा है। पेड़ और सितारा पीछे छूट गए थे। पर सितारे की रोशनी साथ-साथ चल रही थी। किनारे पर आते ही एक नौका दिखाई दी। मल्लाह ने पुकारा, 'चलना है, भाई।'
'हां, लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं, चाहो तो बदले में मुझसे कोई काम करा लो।'
मल्लाह को बात जंच गई। बोला, 'नाव में मेरा बेटा बीमार है। उसकी देखभाल करो, मैं नाव चलाता हूं।'
इस तरह हर जगह अपनी सूझ और मेहनत से काम निकालता वह वापस लौट आया। लौटते समय पहले उस राजमहल में पहुंचा और राजा से बोला, 'मैं राजकुमारी से मिलकर उसे हंसाना चाहता हूं, पर आपको उसे मेरे साथ कुछ समय के लिए बाहर जाने की इजाजत देनी होगी।'
राजा सहमत हो गया। उसने दो दूतों को साथ कर राजकुमारी को सितारा के साथ भेज दिया। सितारा के साथ चलती एक रोशनी को देखकर राजकुमारी विस्मित हुई, पर हंसी नहीं। फिर जब वे लोग उस पेड़ के पास पहुंचे तो आधा पेड़ हरा और आधा सूखा देखकर उसे हंसी आ गई। हंसते हुए वह बोली, 'तुम तो कोई जादूगर मालूम पड़ते हो, यह क्या चमत्कार है?'
सितारा बोला, 'चमत्कार? चमत्कार तो अभी देखना है' और उसने पेड़ की जड़ खोदनी शुरू कर दी। पेड़ जिधर से हरा था, उधर से कुछ नहीं मिला। दूसरी तरफ खोदा, तो ढेरों धन मटकों में गड़ा निकल आया। पेड़ का आधा सूखा भाग तुरंत हरा होने लगा। सितारा राजकुमारी की तरफ देखकर मुस्कराया।
'देखा आपने? जो लोग धन-संपदा को इस तरह गाड़ कर बेकाम कर देते हैं, वे ऐसे ही सूखे-मुरझाए रहते हैं। खुशी और हंसी भी ऐसा ही धन है, इसे भीतर गाड़ कर रखोगी, तो गमगीन ही बनी रहोगी। निकालो… इसे बाहर निकालो और बांट कर चलो। तुम भी इस पेड़ की तरह हरी भरी हो जाओगी।'
राजकुमारी यह चमत्कार देखकर प्रसन्न हो उठी और खिलखिला पड़ी।
राजदूत चकित रह गए। उन्होंने लौट कर राजा को खबर दी। राजा भी बहुत खुश हुआ। उसने वह सारा धन और अपने पास से भी बहुत-सा धन देकर सितारा के साथ राजकुमारी का विवाह कर दिया।
सितारा किस्मत का सितारा ही नहीं, किस्मत की राजकुमारी भी साथ लेकर घर लौटा। अब वह धनवान हो गया था, फिर भी निश्चिंत होकर सोता नहीं था। अपने हाथ से अपना काम करता था और दूसरों को भी बताता था कि 'किस्मत का सितारा बड़ी मेहनत और सूझ-बूझ से मिलता है। मेहनत छोड़ कर भाग्य के भरोसे रह जाऊंगा तो यह फिर हाथ से निकल सकता है।'
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