कायदे- कानून की खुलेआम उड़ायीं धज्जियां रातों-रात बनाईं 'मस्जिद' की छत और छज्जियां
|
दिल्ली
लोजपा विधायक शोएब इकबाल की अरबों रु. की जमीन पर नजर! किराए की भीड़ जुटाकर जमीन में दबी 'मस्जिद' पर अदा की नमाज
दिल्ली सरकार की शह पर मटिया महल के विधायक शोएब इकबाल ने 'अकबराबादी मस्जिद' के पुनर्निर्माण की आड़ में दरियागंज के सुभाष पार्क में स्थित अरबों रुपए मूल्य की सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया है। इतना ही नहीं, रातों-रात तमाम कानूनों को ताक पर रखते हुए मस्जिद जैसा ढांचा खड़ा किया जा रहा है। शोएब इकबाल ने कहा कि वह नगर निगम एवं पुरातत्व विभाग के नोटिसों की कोई परवाह नहीं करते और निर्माण कार्य जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि जो लोग नमाज अदा करने के लिए आएंगे उन्हें वर्षा और धूप से बचाने के लिए यह व्यवस्था की जा रही है। पांचों वक्त नमाज पढ़ने का सिलसिला भी जारी रखा जाएगा।
उल्लेखनीय है कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने उन्हें एक नोटिस जारी करके विवादित स्थल पर निर्माण कार्य फौरन बंद करने का निर्देश दिया था। निगम के एक प्रवक्ता के अनुसार यह क्षेत्र जामा मस्जिद पुनर्विकास योजना का भाग है और इसमें इस अवैध निर्माण से सारी योजना खटाई में पड़ जाएगी। इसके अतिरिक्त भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक सेनगुप्ता की ओर से भी उन्हें नोटिस दिया गया है जिसमें कहा गया है कि जिस जगह पर वह अवैध निर्माण कर रहे हैं वह प्राचीन स्मारक लालकिला के समीप स्थित है। इसलिए कानून के तहत वह इस क्षेत्र में कोई निर्माण नहीं कर सकते। मेट्रो रेल कार्पोरेशन ने यह दावा किया है कि जिस जगह पर प्राचीन अवशेष भूमि से निकले हैं उसे वापस नगर निगम के हवाले कर दिया गया है। इस जगह का क्षेत्रफल 9000 मीटर बताया जाता है। सवाल पैदा होता है कि मेट्रो रेल कार्पोरेशन ने यह फैसला किसके दबाव पर किया है? यह फैसला करने से पहले क्या कोई उच्चस्तरीय बैठक हुई थी? प्राप्त जानकारी के अनुसार, मेट्रो रेल के अधिकारियों ने दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित एवं केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के दबाव पर यह फैसला किया है कि मेट्रो रेल का निर्माण पुराने नक्शों की बजाय 50-50 मीटर दूर किया जाए एवं मेट्रो स्टेशन का निर्णाण पुरानी जगह की बजाय किसी नई जगह किया जाए।
उल्लेखनीय है कि लोक जनशक्ति पार्टी के विधायक शोएब इकबाल हमेशा से विवादों के घेरे में रहे हैं। दो वर्ष पूर्व दिल्ली की एक मंत्री ने उन पर यह आरोप लगाया था कि उनका संबंध राजधानी के भू माफिया से है। हालांकि शोएब इकबाल ने इस आरोप को निराधार बताया था, मगर इसके बावजूद दिल्ली के उपराज्यपाल तेजिंदर खन्ना ने इस आरोप की जांच सीबीआई से करवाने का आदेश दिया था। सीबीआई ने इस मामले में क्या रपट दी उसके बारे में सरकार जुबान खोलने के लिए तैयार नहीं है।
इससे पूर्व 13 जुलाई को इस लगभग सात एकड़ भूमि पर शोएब इकबाल ने सभी सरकारी नियमों को ताक पर रखकर खुदाई करवाने का कार्य शुरू कर दिया था। उन्होंने इस भूखण्ड पर हरे रंग के झंडे भी गाड़ दिए थे। जुमे के दिन इस भूखण्ड पर मुसलमानों ने बड़ी संंख्या में इकट्ठे होकर नमाज पढ़ी। यह भीड़ दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों से 50 बसों में भरकर लायी गयी थी। खास बात यह है कि प्रशासन और दिल्ली पुलिस सरकारी भूमि पर इस जबरन कब्जे को न सिर्फ मूकदर्शक बनकर देखती रही बल्कि उन्होंने नमाजियों का पूरा साथ दिया। दिल्ली गेट से लालकिला तक की सड़क को पुलिस ने यातायात के लिए बंद कर दिया था ताकि यह भीड़ इस जगह पर नमाज अदा कर सके।
इस अवसर पर शोएब इकबाल ने यह घोषणा भी की थी कि 'यह जमीन मस्जिद की है। अब इस पर पांचों वक्त नमाज पढ़ने का सिलसिला जारी रहेगा। नमाजियों की सुविधा के लिए इस जगह पर स्थाई ढांचा भी बनाया जाएगा ताकि नमाजी बारिश और गर्मी से बच सकें।' उन्होंने कहा कि 'इस्लाम के अनुसार जिस जगह पर एक बार मस्जिद बन जाती है वह कयामत होने तक मस्जिद ही रहती है, उसका कोई दूसरा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।' उन्होंने यह भी कहा था कि 'हमारा अगला निशाना अयोध्या जाकर बाबरी मस्जिद का हर कीमत पर पुनर्निर्माण कराना है और मुसलमान इसके लिए हर कुर्बानी देने को पूरी तरह से तैयार हैं।' जुमे की नमाज मुफ्ती आफताब अजमत ने पढ़वाई, जबकि अजान शोएब इकबाल के बेटे मोहम्मद इकबाल ने अदा की थी।
दिल्ली की मुस्लिम राजनीति में शोएब इकबाल को जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी का प्रतिद्वंद्वी माना जाता है। यही कारण है कि इमाम और उसके समर्थक अभी तक 'अकबराबादी मस्जिद' विवाद से दूरी बनाए हुए हैं। जुमे की नमाज में भी इमाम के समर्थकों ने कोई हिस्सा नहीं लिया। इस कारण शोएब इकबाल को भीड़ जुटाने के लिए आस-पास के कस्बों से मुसलमानों को दिल्ली लाना पड़ा। इमाम के समर्थक दबी जुबान से यह आरोप भी लगाते हैं कि कांग्रेस जानबूझकर इमाम को नजरअंदाज करके शोएब इकबाल को महत्व दे रही है ताकि दिल्ली के मुसलमानों में विभाजन हो।
जहां तक 'अकबराबादी मस्जिद' का संबंध है, इतिहासकारों के अनुसार, मुगल सम्राट शाहजहां की 18 बेगमें थीं, जिनमें से 3 बेगमों ने दिल्ली में तीन मस्जिदों का निर्माण कराया था। सुभाष पार्क में स्थित इस कथित मस्जिद का निर्माण 1650 ई. में शाहजहां की बेगम अकबराबादी ने करवाया था। इसके अतिरिक्त एक अन्य बेगम ने फतेहपुरी मस्जिद बनवाई थी, जो अब भी मौजूद है। तीसरी बेगम उदयपुरी ने एक मस्जिद उस जगह पर बनवाई थी जहां आजकल पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन स्थित है। बताया जाता है कि वह मस्जिद चूंकि बहुत जर्जर और खस्ता हालत में थी इसलिए उसे गिराकर अंग्रेजों ने रेलवे स्टेशन का निर्माण करवाया था।
शोएब इकबाल हालांकि यह दावा कर रहे हैं कि जमीन के भीतर खुदाई करने के बाद जो अवशेष मिले हैं वे 'अकबराबादी मस्जिद' के हैं। मगर भारतीय पुरातत्व विभाग के दिल्ली परिक्षेत्र के अधीक्षक डी.एन. डिमरी इससे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि मुगल काल में लालकिले के चारों तरफ घनी आबादी थी। 1857 के बाद अंग्रेजों ने इस क्षेत्र के सभी गली-कूचों को गिराकर वहां पर परेड मैदान बनवा दिया था। सुभाष पार्क में जमीन में दबे हुए जो अवशेष मिले हैं उनके बारे में अभी यह कहना गलत होगा कि यह 'अकबराबादी मस्जिद' के हैं। ये किसी भी भवन के हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय पुरावशेषों के कानून के तहत यदि कहीं भूमि से कोई पुराना अवशेष प्राप्त होता है तो उसकी जांच करवाने का कार्य पुरातत्व विभाग करता है और वही उस क्षेत्र में खुदाई भी करवाता है। उनका कहना है कि शोएब इकबाल द्वारा इस क्षेत्र में जो खुदाई करवाई गई है वह इस कानून का सरासर उल्लंघन है। प्राचीन अवशेषों की खुदाई करवाने का एक विशेष तरीका होता है जो कि पेशेवर लोगों की निगरानी में करवाया जाता है। वे इस बात का ख्याल रखते हैं कि खुदाई के दौरान कोई भी अवशेष तबाह न हो। उन्होंने कहा कि पुरातत्व विभाग ने दिल्ली सरकार से इस क्षेत्र में खुदाई करवाने की अनुमति मांगी थी। मगर राज्य सरकार ने अभी तक उन्हें कोई अनुमति नहीं दी है।
भारतीय पुरातत्व विभाग के एक अन्य उच्च अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन पर एक केंद्रीय मंत्री का दबाव है। यह केंद्रीय मंत्री इस क्षेत्र के मुस्लिम मतदाताओं को नाराज करने के सख्त खिलाफ हैं। इसलिए उन्होंने विभाग के उच्च अधिकारियों पर दबाव डाला है कि स्थानीय लोग जो भी करें उन्हें करने दिया जाए। मामला बेहद संवेदनशील है। उसमें यदि सरकार ने हस्तक्षेप किया तो आने वाले चुनाव में कांग्रेस को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसलिए विभाग इस मामले से दूरी बनाए हुए है।
शोएब इकबाल का दावा
शोएब इकबाल का दावा है कि दिल्ली सरकार उन्हें इस मस्जिद का पुनर्निर्माण करने के लिए पूरी सुविधाएं देने को तैयार है। दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित उन्हें इसके लिए भूमि सौंपने का आश्वासन भी दे चुकी हैं। मुख्यमंत्री के दबाव पर दिल्ली मेट्रो कार्पोरेशन ने यह निर्णय किया है कि सुभाष पार्क में बनाए जाने वाले भूमिगत मेट्रो स्टेशन को अब वहां नहीं बनाया जाएगा। अब उसके लिए अन्य जगह तलाश कर ली गई है।
दिल्ली पुलिस के एक उच्च अधिकारी ने यह स्वीकार किया कि गुप्तचर एजेंसियों ने सरकार को यह सूचना दी थी कि मुसलमानों का एक वर्ग 'अकबराबादी मस्जिद' के भूखण्ड पर नई मस्जिद बनाने की तैयारी कर रहा है और इसकी शुरुआत जुमे की नमाज से की जाएगी। उन्होंने यह स्वीकार किया कि गृह मंत्रालय ने उन्हें यह स्पष्ट रूप से निर्देश दिया था कि इस मामले से पुलिस दूर रहे। यही कारण है कि जुमे की नमाज के मामले में पुलिस ने दूरी बनाए रखी और पूरी व्यवस्था की कि मुस्लिम वहां पर शांतिपूर्ण तरीके से नमाज अदा कर सकें। उन्होंने कहा कि यह मामला बेहद नाजुक और संवेदनशील है। भूमि दिल्ली सरकार की है, वही इसके बारे में कोई फैसला कर सकती है।
विधायक शोएब इकबाल के बारे में दिल्ली के एक अंग्रेजी दैनिक 'मेल टुडे' ने अपने 17 जनवरी 2010 के अंक में एक समाचार प्रमुख रूप से छापा था, जिसमें कहा गया था कि शोएब इकबाल जामा मस्जिद के समीप दुबई की एक कम्पनी के सहयोग से एक विशाल होटल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह प्रस्तावित होटल जामा मस्जिद क्षेत्र में वार्ड नम्बर-9 में स्थित संपत्ति नम्बर- 9013 से लेकर 9021 तक संपत्तियों को गिराकर बनाया जाएगा। समाचारपत्र ने यह दावा किया था कि ये संपत्तियां उन लोगों की हैं जो पाकिस्तान बनने के बाद दिल्ली से पाकिस्तान चले गए थे और इनको 'कस्टोडियन' ने अपने कब्जे में ले लिया था। मगर बाद में भू माफिया ने इस पर कब्जा कर लिया। इनमें कुछ संपत्तियों के बारे में अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं। दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग के अनुसार इस होटल को हुमा इकबाल नामक एक महिला दुबई की किसी कम्पनी के सहयोग से बनाने वाली थी। विधायक शोएब इकबाल ने इस बात से इंकार किया था कि इस मामले में उनकी कोई भूमिका है। मगर उपराज्यपाल कार्यालय के अनुसार, दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल को इस मामले में 12 दिसंबर 2009 को एक पत्र लिखा था। उपराज्यपाल ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस मामले की सीबीआई जांच करवाने का अनुरोध किया था। इस पत्र में यह कहा गया था कि जिन संपत्तियों को गिराकर वहां पर होटल बनाए जाने की योजना है वह 'शत्रु संपत्तियां' हैं। 'शत्रु संपत्ति विभाग' के एक उच्च अधिकारी दिनेश सिंह ने इस संबंध में दिल्ली आकर जांच-पड़ताल भी की थी। शोएब इकबाल ने इस बात का खण्डन किया था कि इस मामले से उनका कोई वास्ता है। मेल टुडे के अनुसार, दिल्ली के उपराज्यपाल ने कहा था कि मामला दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग से संबंधित है इसलिए वे उस पर कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं।
मस्जिदों के बारे में दिल्ली के मुस्लिम कितने उदासीन हैं, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में अनेक मस्जिदें देखभाल न होने के कारण खंडहरों में तब्दील हो रही हैं। उनकी मरम्मत करने की किसी को कोई फुर्सत नहीं है। गत दिनों समाचारपत्र ने थाना हौज काजी के समीप कूचा पंडित में स्थित मस्जिद खजूरवाली की बदहाली का विवरण सचित्र प्रकाशित किया था। यह मस्जिद इतनी जर्जर हो चुकी है कि किसी वक्त भी ध्वस्त हो सकती है। इन दिनों आसपास के लोग इसका इस्तेमाल कूड़ा फेंकने के लिए कर रहे हैं। कूचा पंडित के पार्षद राकेश कुमार ने इस मस्जिद की मरम्मत नगर-निगम के अनुदान से करवाने का प्रयास किया था, मगर चूंकि यह मस्जिद वक्फ बोर्ड के तहत है इसलिए नगर-निगम के अधिकारियों ने इसकी मरम्मत करने से हाथ खड़े कर लिए हैं। यह बात भी सर्वविदित है कि दिल्ली में दर्जनों पुरानी मस्जिदों को उनके प्रबंधकों ने भवन निर्माताओं के हाथ बेच दिया है। इन दिनों आईटीओ के समीप एक मस्जिद के करोड़ों रुपए में बेचे जाने की चर्चा समाचारपत्रों में गरम है। ऐसी स्थिति में शोएब इकबाल और उनके साथियों को 'अकबराबादी मस्जिद' का ही पुनर्निर्माण करने की जरूरत क्यों परेशान कर रही है? इसका सही कारण किसी की भी समझ में आना कठिन है।
टिप्पणियाँ