'एसिडिटी': कारण व बचाव
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सुबह उठने पर पानी का सेवन करें, इससे रात में पेट में बने अधिक एसिड तथा अनावश्यक पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। नारियल के पानी का प्रयोग 'एसिडिटी' में अत्यंत लाभकारी होता है।
डा. हर्ष वर्धन
एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.) युवाओं तथा अधिक उम्र के लोगों में 'एसिडिटी' की परेशानी अधिकांशत: देखने को मिलती है। गलत खानपान व असंयमित जीवन शैली ही इस बीमारी का मुख्य कारण है। 'एसिडिटी' को चिकित्सकीय भाषा में 'गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफलक्स डिजीज' (जी.ई.आर.डी.) कहा जाता है। आयुर्वेद में इसे अम्ल पित्त के नाम से जाना जाता है। पेट (स्टमक) के एसिड स्राव तंत्र तथा 'प्रॉक्जिमल इंटेस्टाइन' और सुरक्षा तंत्र जो उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करता है, में असंतुलन ही एसिडिटी का कारण होता है। पेट सामान्यतौर पर 'एसिड' पैदा करता है जो पाचन क्रिया में अत्यंत उपयोगी होता है। भोजन के पाचन के समय 'एसिड' भोजन को तोड़ने में सहयोगी होता है। जब पेट में 'गैस्ट्रिक ग्लैण्ड्स ' से एसिड आवश्यकता से अधिक मात्रा में निकलने लगता है या पेट से खाने के पाइप में 'एसिड' ज्यादा मात्रा में वापस (नीचे से ऊपर की ओर) जाने लगती है, तब 'एसिडिटी' की शिकायत होने लगती है।
'एसिडिटी' के कारण
आमाशय में पाचन क्रिया में 'हाइड्रोक्लोरिक एसिड' तथा 'पेप्सिन' का स्राव होता है। सामान्यतया यह 'एसिड' तथा 'पेप्सिन' आमाशय में रहता है तथा भोजन नली के संपर्क में नहीं आता है। आमाशय तथा भोजन नली के जोड़ पर विशेष प्रकार की मांसपेशियां होती हैं जो अपनी संकुचनशीलता से आमाशय एवं आहार नली का रास्ता बंद रखती हैं तथा कुछ खाने-पीने के दौरान खुलती हैं। जब इनमें कोई विकृति आ जाती है तो कई बार अपने आप खुल जाती हैं तथा 'एसिड' तथा 'पेप्सिन' भोजन नली में आ जाता है। जब ऐसा बार-बार होता है तो आहार नली में सूजन तथा घाव हो जाता है। इसकी वजह गलत खान-पान, आरामदायक जीवन शैली, प्रदूषण, अधिक चाय, कॉफी का सेवन, धूम्रपान, 'अल्कोहल' तथा कैफीनयुक्त पदार्थों का सेवन करना है। आयुर्वेद के अनुसार पित्त को बढ़ाने वाले अन्न (अधिक मिर्च मसाले, अत्यधिक मद्यपान आदि) का अधिक समय से लगातार सेवन करते रहने से 'एसिडिटी' होती है। वस्तुत: 'एसिडिटी' बीमारी नहीं बल्कि एक विकार है, जिसका समाधान हमारे हाथ में होता है। यदि अपने जीवन में थोड़ा सा बदलाव कर दें तो इस परेशानी से बचा जा सकता है।
'एसिडिटी' के अनेक कारण हो सकते हैं जैसे-खान पान में अनियमितता, खाने को ठीक तरह से न चबाना, पर्याप्त मात्रा में पानी न पीना आदि। इसके अतिरिक्त हड़बड़ी में तथा तनावग्रस्त होकर खाना, अधिक मसालेदार तथा 'जंक फूड' आहार के सेवन के कारण भी 'एसिडिटी' की परेशानी हो सकती है। सुबह के समय अल्पाहार न करना तथा लंबे समय तक भूखे रहने से भी 'एसिडिटी' की शिकायत हो सकती है। लम्बे समय तक तनावग्रस्त रहना भी 'एसिडिटी' की परेशानी को बढ़ाने में सहायक होता है।
'एसिडिटी' के लक्षण
पेट में जलन होना
सीने में जलन
'डिस्पेप्सिया'
मिचली महसूस होना
बार-बार डकार आना
गले में जलन
खाने-पीने में कम रुचि होना
'एसिडिटी' से बचाव
समय पर भोजन करें तथा खाने के उपरांत कुछ देर टहलें।
खाना हमेशा चबा-चबा कर खायें। जरूरत से थोड़ा कम खायें।
अधिक मिर्च मसाले तथा ज्यादा तेल वाले भोजन से परहेज करें।
ताजे फल, सलाद, हरी सब्जियों का सूप तथा उबली सब्जियों को भोजन में शामिल करें।
अपने रोजमर्रा के आहार में मट्ठा और दही को शामिल करें।
पपीते का सेवन करें।
शराब और मांसाहार से बचें।
हरी पत्तेदार सब्जियां तथा अंकुरित अनाज का सेवन करें। इसमे विटामिन बी व ई पर्याप्त मात्रा में मिलती है। यह एसिडिटी को शरीर से बाहर निकालने में मदद करते हैं।
ताजे खीरे का रायता 'एसिडिटी' का बेहतर उपचार है। नियमित व्यायाम, प्राणायाम करें।
'एसिडिटी' का उपचार
'एसिडिटी' पेट से जुड़ी बीमारी है तथा पेट की विकृति ही अनेक बीमारियों की जड़ है। अत: 'एसिडिटी' की परेशानी लगातार रहने पर उदर रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए अन्यथा इसकी गंभीर अवस्था किसी दूसरी बीमारी को जन्म दे सकती है। अत: इस बीमारी में लापरवाही न करें। 'एसिडिटी' में आयुर्वेदिक चिकित्सा भी अत्यंत कारगर है। ऐसे में किसी आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए तथा उनके द्वारा सुझाये दवाइयों के प्रयोग से इस बीमारी से निजात मिल सकती है। कुछ आयुर्वेदिक गुण वाले पदार्थों के सेवन से भी 'एसिडिटी' में राहत मिल सकती है।
उन पदार्थों का सेवन करना तुरन्त बंद कर दें, जिसके खाने पर 'एसिडिटी' की परेशानी बढ़ जाती है।
कुछ दवाइयांजैसे एन.एस.ए.आई.डीज, 'स्टीरॉयड्स' आदि को लेना चिकित्सक की सलाह से छोड़ दें। बिना चिकित्सक की सलाह के दर्द की दवाइयां बहुत लोग अपने जीवन में लेते रहते हैं जो 'एसिडिटी' का कारण हो सकती है।
सुबह उठने पर पानी का सेवन करें, इससे रात में पेट में बने अधिक 'एसिड' तथा अनावश्यक पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। नारियल के पानी का प्रयोग 'एसिडिटी' में अत्यंत लाभकारी होता है।
'एसिडिटी' में तुलसी का पत्ता राहत देता है।
सौंफ का प्रयोग 'एसिडिटी' में राहत देने वाला होता है।
'एसिडिटी' में राहत के लिए दूध का प्रयोग भी लाभकारी होता है।
गुड़ के सेवन से 'एसिडिटी' से राहत मिलती है।
बादाम, सूखा अंजीर तथा किशमिश का सेवन पेट में जलन में राहत देने वाला होता है।
केला, पपीता, तरबूज तथा ककड़ी-इस बीमारी में अत्यंत लाभकारी हैं।
एक लौंग को मुंह में कुछ समय के लिए डाले रहने पर बहुत जल्दी 'एसिडिटी' से राहत मिलती है।
अदरक का प्रयोग भोजन में किया जाये तो इससे पाचन क्रिया मजबूत होती है तथा पेट में जलन से राहत मिलती है।
अगर भोजन करते समय खाना निगलने में गले से पेट तक कोई दर्द या रुकावट हो रही हो या खाने को पानी के सहारे नीचे उतारना पड़ता हो तो यह किसी गंभीर बीमारी का संकेत भी हो सकता है। ऐसे में गले अथवा पेट रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। कई बार दिल के दर्द (हार्ट अटैक/एंजाइना) से संबंधित तकलीफ को भी लोग 'एसिडिटी' समझ लेते हैं और बिना किसी चिकित्सकीय सलाह के डाइजीन इत्यादि की गोली खाते रहते हैं जो खतरनाक हो सकता है। अपनी बीमारी के लक्षणों का अपने मन में ठीक प्रकार से विश्लेषण करें तथा बिना समय गंवाये संबंधित चिकित्सक से विस्तार से बतायें ताकि बीमारी का सही निदान और उपचार संभव हो सके।
(लेखक से उनकी वेबसाइट www. drharshvardhan.com तथा ईमेल drhrshvardhan@ gmail.com के माध्यम से भी सम्पर्क किया जा सकता है।)
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