उत्तर प्रदेश चुनाव
July 21, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

उत्तर प्रदेश चुनाव

by
Mar 13, 2012, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

मंथन

दिंनाक: 13 Mar 2012 16:32:09

मंथन

  देवेन्द्र स्वरूप

वंशवाद हारा, कट्टरवाद जीता, राष्ट्रवाद ओझल

पूरा देश तीन महीने से पांच राज्यों के चुनाव परिणामों की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहा था। इन चुनावों को 2014 के लोकसभा चुनावों के “रिहर्सल” के रूप में देखा जा रहा था। इन पांच राज्यों में एक उत्तर प्रदेश भी है, जिसे भारतीय राष्ट्रवाद का हृदयस्थल माना जाता है। विधानसभा की 403 और लोकसभा की 80 सीटों के साथ यह विशाल राज्य चुनावों की धुरी पर घूम रही वर्तमान राजनीतिक प्रणाली के भीतर भारतीय लोकतंत्र में निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में है। अन्य चारों राज्य-117 सीटों वाला पंजाब, 70 सीटों वाला उत्तराखंड, 60 सीटों वाला मणिपुर और 40 सीटों वाला गोवा- मिलकर भी उत्तर प्रदेश के आधे से कुछ अधिक ही बैठते हैं। उत्तर प्रदेश के इस महत्व को पहचान कर ही सोनिया पार्टी ने उसे जीतने की व्यूह रचना दो वर्ष पहले ही आरंभ कर दी थी। 10, जनपथ के वफादार सेनापति दिग्विजय सिंह दो वर्ष पहले ही इस युद्ध क्षेत्र में पहुंच गये थे। जिहादी आतंकवाद के गढ़ माने जा रहे आजमगढ़ जिले का दौरा करके और बटला हाउस में शहीद पुलिस अधिकारी मोहनचंद शर्मा के साथ जिहादियों की मुठभेड़ की पुन:जांच की मांग उठाकर उन्होंने अपनी चुनावी रणनीति का पहला गोला दागा था। सोनिया वंश के युवराज राहुल को लेकर दिग्विजय उत्तर प्रदेश के जिले-जिले में घूमने लगे थे। राहुल ने तो उत्तर प्रदेश में डेरा ही जमा दिया। मायावती के “दलित-आधार” में सेंध लगाने के लिए उन्होंने “अचानक” दलित घरों में जाने, भोजन करने और रात में सोने तक के नाटकीय प्रदर्शन आरंभ कर दिये। बुंदेलखंड के पुनरुद्धार का राग अलापने से लेकर दिल्ली के नजदीक नोएडा क्षेत्र के भट्टा-पारसौल गांव में अपनी गिरफ्तारी का दृश्य खड़ा करने और दलित महिलाओं के साथ पुलिस द्वारा बलात्कार की कहानियां गढ़ने तक का नाटकीय कथानक रचा। पूरे उत्तर प्रदेश में उन्होंने 200 से ज्यादा जनसभाएं कीं, 18 रोड शो किये। टेलीविजन चैनलों और दैनिक समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर उनकी विभिन्न आक्रामक मुद्राओं के चित्र छाये रहे।

वंशवाद की कारगुजारी

उत्तर प्रदेश में अमेठी, रायबरेली जिले सोनिया परिवार के परम्परागत गढ़ माने जाते हैं। सोनिया और राहुल वहीं से चुनकर लोकसभा में पहुंचते हैं। उन्हें सींचने के लिए वे दोनों बार-बार वहां चक्कर लगाते रहते हैं। इन्दिरा-युग से ही इन दोनों जिलों और उससे सटे सुल्तानपुर जिले को सोनिया परिवार का अभेद्य गढ़ माना जाता है। रायबरेली और अमेठी जिलों की दस विधानसभा सीटों को बचाने का जिम्मा लेकर “ग्लैमर प्रेमी मीडिया” की पसन्द प्रियंका बाड्रा ने वहां कई चक्कर लगाये और दसों सीटों को जीतने का विश्वास प्रकट किया। उत्तर प्रदेश पर अपनी वंश- पताका फहराने के लिए रहस्यमय बीमारी से ग्रस्त होने पर भी सोनिया ने उत्तर प्रदेश में चुनावी सभाएं सम्बोधित करना आवश्यक समझा। मीडिया पर वंशवाद का खुमार इस कदर सवार हुआ कि वह संवैधानिक लोकतंत्र के प्रति अपनी शपथ को भूलकर वंशवाद के अंधाधुन्ध प्रचार में जुट गया। इस प्रचार को बल प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कानून मंत्री सलमान खुर्शीद, इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल भी मैदान में उतर आये। कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों को “ओबीसी कोटे” में साढ़े चार प्रतिशत हिस्सा देने की घोषणा कर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन कर डाला, जिसके लिए चुनाव आयोग को उन्हें ताड़ना देनी पड़ी, जायसवाल और बेनी प्रसाद वर्मा ने धमकी दे डाली कि अगर उत्तर प्रदेश में हमारी सरकार नहीं बनी तो राष्ट्रपति शासन का ही रास्ता खुला रह जायेगा। जीत को सुनिश्चित करने के लिए तोड़-फोड़ और जोड़-तोड़ भी की गयी। खानदानी राजनीति के एक अन्य चेहरे अजीत सिंह को केन्द्रीय मंत्रिमंडल के उड्डयन मंत्रालय देने की अधिकतम कीमत चुकाकर उनके राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन रचा गया, सहारनपुर के मुस्लिम नेता रशीद मसूद को बसपा से तोड़कर अपनी पार्टी में लाया गया। दिग्विजय से लेकर रीता बहुगुणा जोशी तक सब आखिर तक गर्वोक्ति करते रहे कि इस बार उत्तर प्रदेश में हमारी पार्टी की सरकार बनना तय है। जब मीडिया के सभी सर्वेक्षण त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी करने लगे तब भी सोनिया वंश के प्रवक्ता गर्व से कहते रहे कि हम न बसपा के साथ जायेंगे न सपा के।

ध्वस्त हुआ कांग्रेसी दंभ

पर चुनाव परिणामों ने उन्हें सपनों के आकाश से भारी पराजय की कठोर धरती पर ला पटका। सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत मिलना तो दूर, पिछली बार की 22 से बढ़कर मात्र 28 सीटों तक ही पहुंच पायी। अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल से गठजोड़ के कारण ही दोनों मिलकर 37 सीटें पाकर चौथे नम्बर पर पहुंच पाए हैं। स्थिति इतनी खराब हुई कि सोनिया के चुनाव क्षेत्र रायबरेली में एक भी सीट नहीं मिली। अमेठी की पांच में से तीन सीटें हार गए और सुल्तानपुर जिले की पांचों सीटें भी कांग्रेस हार गयी। उत्तर प्रदेश में तो दुर्गति हुई ही, वंशवादी पार्टी को पूरा विश्वास था कि पंजाब और उत्तराखंड में उनकी सरकार बनना अवश्यंभावी है, और गोवा में भी शायद उनकी सरकार बच जाए। पर पंजाब में पिछले 43 वर्ष में पहली बार पुराने गठबंधन की सरकार वापस लौटने का चमत्कार घटित हुआ। गोवा में तो भाजपा ने अकेले 21 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत और अपने साथियों के साथ मिलकर तो सोनिया पार्टी को 9 विधायकों के साथ बहुत पीछे फेंक दिया है। उत्तराखंड, जहां अपनी विजय को सुनिश्चित जानकर मुख्यमंत्री पद के लिए सोनिया पार्टी के सात दावेदारों में जूतम-पैजार शुरू हो गई थी, वहां भी सरकार बनाने के लाले पड़े हुए हैं, क्योंकि त्रिशंकु विधानसभा में भाजपा केवल एक सीट पीछे अर्थात 31 पर पहुंच कर सरकार बनाने की दौड़ में खड़ी है। अपनी ईमानदार छवि के द्वारा भाजपा की डूबती नैय्या को बचाने वाले मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी अप्रत्याशित रूप से हारे न होते तो उत्तराखंड का भाग्य अधर में लटका न रह जाता। कुल मिलाकर इन चुनाव परिणामों के लिए एक दैनिक पत्र ने “कांग्रेस चारों खाने चित” जैसा शीर्षक देना उचित समझा है।

लगता तो यह है कि राज्यों में सत्ता पर अधिकार जमाना सोनिया की प्राथमिकता नहीं है। उनकी दृष्टि केन्द्र की सत्ता पर है। केन्द्र की सत्ता पाने और उसे टिकाये रखना ही उनकी रणनीति का एकमात्र लक्ष्य है, और वहां वे भाजपा को अपने एकमात्र प्रतिद्वन्द्वी के रूप में देखती हैं। राज्यों की सत्ता के मामले में भाजपा उनसे कहीं आगे है। हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और अब गोवा- छह राज्यों में भाजपा अपने बल पर सत्तारूढ़ है। पंजाब, बिहार और झारखंड में गठबंधन सरकार चला रही है। उत्तराखंड की स्थिति अभी अनिश्चित है। इन नौ राज्यों की सरकारें बहुत मजबूत और लोकप्रिय हैं। सोनिया पार्टी अपने बल पर राजस्थान, आंध्र प्रदेश, असम और पूर्वाञ्चल के छोटे-छोटे राज्यों में अकेले राज करती दिखायी देती है। महाराष्ट्र, केरल और प. बंगाल में वह गठबंधन का हिस्सा है, पर असम और दिल्ली को छोड़कर ये सभी राज्य सरकारें अन्तर्कलह और अनुशासनहीनता का शिकार हैं। तमिलनाडु, उड़ीसा, बंगाल और बिहार के मुख्यमंत्री अपनी-अपनी योग्यता-क्षमता के कारण प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जाते हैं, सोनिया-वंश को अपने प्रतिद्वन्द्वी के रूप में देखते हैं। इसलिए सोनिया पार्टी की घेराबंदी करने के लिए उन्होंने संघीय ढांचे की रक्षा के नाम पर एक संयुक्त मोर्चा बनाने का उपक्रम शुरू कर दिया है।

मुस्लिम-ईसाई वोट बैंक का लालच

इस क्षेत्रवाद के विरुद्ध सोनिया ने देश भर के 18 प्रतिशत मुस्लिम वोट बैंक और 5 प्रतिशत चर्च नियंत्रित ईसाई वोट बैंक को अपनी चुनावी रणनीति का मुख्य आधार बनाया है। इसी रणनीति के अन्तर्गत उन्होंने उत्तर प्रदेश की विजय के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। उनके चुनावी गणित के अनुसार उत्तर प्रदेश की विजय मुस्लिम वोट बैंक को जीते बिना संभव नहीं है। इस सत्य को कल भी सलमान खुर्शीद ने एक टेलीविजन चैनल पर मुखरित किया कि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा की विजय का मुख्य कारण “सोशल इंजीनियरिंग” से अधिक तीन चौथाई मुस्लिम मतों में उनके पक्ष में जाना रहा था। उनका यह कथन सही भी है। उत्तर प्रदेश के 133 सीटों वाले 21 जिलों में मुस्लिम मतदाताओं की जनसंख्या 20 प्रतिशत से अधिक बताई जाती है। कुल मिलाकर 200 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों का चुनाव परिणाम उनके थोक वोटों पर निर्भर करता है। सलमान खुर्शीद ने माना कि भाजपा के अलावा कोई पार्टी उनके वोटों की उपेक्षा नहीं कर सकती। इसलिए इस बार सोनिया पार्टी, सपा और बसपा के बीच मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने की स्पर्धा-सी लग गयी। शुरुआत सोनिया पार्टी की ओर से दिग्विजय सिंह ने बटला हाउस मुठभेड़ की दोबारा जांच की मांग उठाकर की। इसकी काट के लिए मायावती ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग उठायी, जिसके जवाब में सलमान खुर्शीद ने साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की, राहुल और दिग्विजय ने मुस्लिम नेताओं और उलेमाओं से गुप्त मुलाकातों का सिलसिला आरंभ किया। मुलायम सिंह ने एक कदम आगे बढ़कर अपने चुनावी घोषणा पत्र में मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा कर दी। अयोध्या आंदोलन में इन्दिरा से लेकर नरसिंह राव तक सोनिया पार्टी की दोगली नीति और मुस्लिम हितों के प्रति अपनी अडिग निष्ठा का स्मरण दिलाया। अमर सिंह व कल्याण सिंह को ठुकराकर आजम खान को फिर गले लगाने का निर्णय लिया। सोनिया पार्टी और सपा के इन कदमों की काट के लिए मायावती ने अपने प्रत्याशियों की सूची में 84 मुस्लिम नामों को सम्मिलित कर दिया। इसकी देखा-देखी सपा ने भी 75 और सोनिया पार्टी ने 61 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे। उनके अलावा मुहम्मद अयूब की पीस पार्टी आफ इंडिया, अफजल अंसारी के कौमी एकता दल और इतिहादी-मिल्लत- काउंसिल आदि छोटे-छोटे दलों ने 55 मुस्लिम प्रत्याशी खड़े किये। मुस्लिम वोटों के लिए इस प्रतिस्पर्धा के फलस्वरूप 1952 से लेकर अब तक पहली बार 69 मुस्लिम विधायकों की सबसे बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंची है। इन 69 में 42 सपा, 16 बसपा, 4 सोनिया पार्टी और 7 अन्य दलों के टिकट पर चुनकर आये हैं, जो एक प्रकार से उनकी जनसंख्या के अनुपात को सही से प्रतिबिम्बित करते हैं।

संकट भाजपा का या राष्ट्रवाद का?

वस्तुत: इस स्थिति का स्वागत किया जाना चाहिए। किन्तु चिन्ता का कारण इस प्रतिनिधित्व के पीछे विद्यमान पृथकतावादी मानसिकता है। स्वाधीनता की 63 वर्ष लम्बी यात्रा के बाद एक समरस राष्ट्रीय जीवनधारा के निर्माण में सहभागी बनने की बजाय मुस्लिम समाज को पृथकतावादी मानसिकता के रास्ते पर धकेला जा रहा है। वह भ्रष्टाचार, आर्थिक विकास, राष्ट्रीय एकता, समाज सुधार आदि सब प्रश्नों से मुंह मोड़कर केवल और केवल मुसलमान के नाते सोचता और निर्णय लेता है। अपनी इस संकुचित और पृथकतावादी मानसिकता के कारण वह हिन्दू समाज में प्रतिक्रिया जगाता है। किन्तु वह प्रतिक्रिया जातिवाद के दलदल में फंसी रह जाती है। उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम इसके ज्वलंत प्रमाण हैं। सपा, बसपा और सोनिया पार्टी के बीच मुस्लिम आरक्षण को लेकर प्रतिस्पर्धा की जो प्रतिक्रिया अन्य पिछड़े वर्गों और राष्ट्रीय एकता के प्रति चिन्तित तथा कथित उच्चवर्णी मध्यम वर्ग में होनी चाहिए थी, वह उतनी मात्रा में नहीं हुई। भाजपा की झोली में जो 47 सीटें आयी हैं, उसका इस दृष्टि से विश्लेषण होना आवश्यक है। इन चुनावों में मुस्लिम वोट बैंक की निर्णायक भूमिका को स्वीकार करते हुए मायावती ने बताया कि भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए 70 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं ने सपा को वोट दिये। उधर दारुल उलूम, देवबंद के प्रवक्ता मौ. अशरफ उस्नानी ने कहा कि सत्ता पाने के बाद अब मुलायम सिंह मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण देने के अपने वचन को जल्दी से जल्दी पूरा करें।

भाजपा जिस राष्ट्रवाद के वैचारिक अधिष्ठान पर खड़ी है, मुस्लिम साम्प्रदायिकता को वह अधिष्ठान कभी भी स्वीकार्य नहीं रहा। उल्टे, राष्ट्रवाद जातिवाद और क्षेत्रवाद की भंवर में फंस गया है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ब्रिटिश विरोध में से उभरी राष्ट्रीय चेतना ने इन संकीर्ण चेतनाओं को दबा दिया था, किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ब्रिटिश संसदीय प्रणाली के अंधानुकरण से राष्ट्रीय चेतना उत्तरोत्तर शिथिल हो रही है और जाति, क्षेत्र, भाषा व सम्प्रदाय की संकीर्ण चेतनाएं प्रबल हो रही हैं। अत: भाजपा के वर्तमान संकट को भारतीय राष्ट्रवाद के संकट के रूप में देखा जाना चाहिए। यदि राष्ट्रवाद का अपना आधार क्षरित होता जायेगा तो उस अधिष्ठान पर राजनीतिक दल कहां खड़ा होगा? सत्तालोलुप दलों के अनवरत प्रचार के कारण मुस्लिम समाज ने भाजपा को अपना शत्रु मान लिया है। वे भाजपा के जनाधार को खत्म करने के लिए राज्य स्तर पर योजनापूर्वक जातिवादी और क्षेत्रीय दलों को समर्थन दे रहे हैं और केन्द्र में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए उसकी एकमात्र प्रतिद्वन्द्वी सोनिया पार्टी को समर्थन देने के लिए कटिबद्ध हैं। क्या सोनिया वंश की वर्तमान पराजय उनकी सोच में बदल लायेगी? वैसे वंशवाद से उन्हें परहेज नहीं है, तभी तो सोनिया वंश की जगह उन्होंने मुलायम सिंह के कुनबे को सत्ता में बैठा दिया है। द

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

विश्व हिंदू परिषद बैठक 2025 : हिंदू समाज को विखंडित करने वाली शक्तियों को देंगे करारा जवाब – आलोक कुमार

पश्चिमी सिंहभूम चाईबासा से सर्च अभियान में 14 IED और भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद

भारत-पाकिस्तान युद्धविराम 10 मई : ट्रंप के दावे को भारत और कसूरी ने किया खारिज

हरिद्वार कांवड़ यात्रा 2025 : 4 करोड़ शिवभक्त और 8000 करोड़ का कारोबार, समझिए Kanwar Yatra का पूरा अर्थचक्र

पुलिस टीम द्वारा गिरफ्तार बदमाश

इस्लामिया ग्राउंड में देर रात मुठभेड़ : ठगी करने वाले मोबिन और कलीम गिरफ्तार, राहगीरों को ब्रेनवॉश कर लूटते थे आरोपी

प्रधानमंत्री मोदी की यूके और मालदीव यात्रा : 23 से 26 जुलाई की इन यात्राओं से मिलेगी रणनीतिक मजबूती

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

विश्व हिंदू परिषद बैठक 2025 : हिंदू समाज को विखंडित करने वाली शक्तियों को देंगे करारा जवाब – आलोक कुमार

पश्चिमी सिंहभूम चाईबासा से सर्च अभियान में 14 IED और भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद

भारत-पाकिस्तान युद्धविराम 10 मई : ट्रंप के दावे को भारत और कसूरी ने किया खारिज

हरिद्वार कांवड़ यात्रा 2025 : 4 करोड़ शिवभक्त और 8000 करोड़ का कारोबार, समझिए Kanwar Yatra का पूरा अर्थचक्र

पुलिस टीम द्वारा गिरफ्तार बदमाश

इस्लामिया ग्राउंड में देर रात मुठभेड़ : ठगी करने वाले मोबिन और कलीम गिरफ्तार, राहगीरों को ब्रेनवॉश कर लूटते थे आरोपी

प्रधानमंत्री मोदी की यूके और मालदीव यात्रा : 23 से 26 जुलाई की इन यात्राओं से मिलेगी रणनीतिक मजबूती

‘ऑपरेशन सिंदूर’ समेत सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार सरकार : सर्वदलीय बैठक 2025 में रिजिजू

मौलाना छांगुर का सहयोगी राजेश गिरफ्तार : CJM कोर्ट में रहकर करता था मदद, महाराष्ट्र प्रोजेक्ट में हिस्सेदार थी पत्नी

पंजाब : पाकिस्तानी घुसपैठिया गिरफ्तार, BSF ने फिरोजपुर में दबोचा

अब मलेरिया की खैर नहीं! : ICMR ने तैयार किया ‘EdFalciVax’ स्वदेशी टीका, जल्द शुरू होगा निर्माण

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies