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हिन्दू होना गुनाह?

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Mar 3, 2012, 12:00 am IST
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बंगलादेश में हिन्दू होना गुनाह?

दिंनाक: 03 Mar 2012 16:34:46

बंगलादेश में

अरुण कुमार सिंह

बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के साथ प्राय: रोज ही कुछ न कुछ ऐसी घटना होती है,जिससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या बंगलादेश में हिन्दू होना गुनाह है? कभी राह चलती किसी हिन्दू लड़की या महिला का अपहरण होता है, उसके साथ बलात्कार होता है। विरोध करने पर हत्या तक हो जाती है। कभी किसी लड़की को जबर्दस्ती घर से उठाकर, किसी मुस्लिम लड़के के साथ निकाह कर दिया जाता है। इन घटनाओं का हिन्दू समाज विरोध करता है तो हथियारबंद लोग हिन्दुओं पर हमले करते हैं, उनके घरों में आग लगा देते हैं, मंदिरों को गिरा देते हैं। हिन्दुओं की जमीन-जायदाद पर कब्जा कर लेते हैं। हिन्दू फरियाद लेकर पुलिस और प्रशासन के पास पहुंचते हैं तो वहां उनकी सुनवाई तक नहीं होती है। पुलिस वाले उल्टे उन्हें ही धमकाते हैं। परिणाम यह हो रहा है कि बंगलादेशी हिन्दू मुस्लिम-बहुल इलाकों से पलायन को मजबूर हो रहे हैं। बंगलादेशी हिन्दुओं की चिंता न तो बंगलादेश की सरकार करती है और न ही सेकुलर भारत सरकार।

बंगलादेशी हिन्दुओं के लिए काम करने वाली संस्था “बंगलादेश माइनरिटी वाच” (बीडी.एम.डब्ल्यू) के संस्थापक अध्यक्ष और बंगलादेश के प्रसिद्ध वकील श्री रबिन्द्र घोष द्वारा पाञ्चजन्य को प्रेषित कुछ घटनाओं से आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि बंगलादेशी हिन्दुओं के साथ कैसा अमानवीय व्यवहार हो रहा है।

पहली घटना

पहली घटना है ढाका जिले के अशुलिया थाने के गोएल बारी गांव की। 31 जनवरी 2012 को इस गांव की हिन्दू लड़की ब्यूटी रानी सरकार (20) का अपहरण कुछ मुस्लिम लड़कों ने नवाबगंज बस स्टैंड के पास से उस समय कर लिया जब वह कालेज जा रही थी। घर वालों द्वारा बहुत खोजबीन करने के बाद भी वह नहीं मिली। इसके बाद 3 फरवरी, 2012 को पीड़िता के भाई नितिश कुमार सरकार ने अशुलिया थाने में प्रथम सूचना रपट (एफआईआर) दर्ज कराई। “नारी-ओ-शिशु निरजतन कानून-2003” की धारा 7/30 के तहत दर्ज इस एफआईआर का नम्बर है 8/3.2.2012। एफआईआर में पांच मुस्लिम युवाओं को नामजद किया गया है। ये हैं मोहम्मद फरदौस (25) मोहम्मद शिप्पोन (35), मोहम्मद रिपोन (20), मोहम्मद मकबूल हसन (27) और मोहम्मद सलीम (22)। ये सभी गोएल बारी गांव के ही रहने वाले हैं। अभी तक ब्यूटी रानी सरकार के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है। लोग तरह-तरह की शंकाएं व्यक्त कर रहे हैं।

दूसरी घटना

दूसरी घटना भी गोएल बारी गांव की ही है। नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली सूमी रानी का अपहरण 10 दिसंम्बर, 2011 को हुआ था। उसके पिता गणेश चरण मंडल ने 12 दिसम्बर, 2011 को अशुलिया पुलिस थाने में अपहरण की शिकायत (डायरी इन्ट्री नं.786) दर्ज कर पुलिस से सूमी रानी को छुड़ाने का निवेदन किया। किंतु पुलिस ने सूमी को खोजने का कोई प्रयास नहीं किया। बीडी.एम.डब्ल्यू के कार्यकर्ता और सूमी रानी के घर वाले जरूर उसे खोजने में लगे रहे। फिर सूमी के भाई रोनी चन्द्र मंडल ने अशुलिया थाने में ही एफआईआर (47/26.1.2012) दर्ज कराई। इसके बाद पुलिस थोड़ी सक्रिय हुई। अंतत: सबके प्रयास से 26 जनवरी को ही सूमी ढाका से 200 किमी.दूर शेरपुर जिले के सीबोरडी नामक जगह से मिली। 28 जनवरी, 2012 को उसे ढाका के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया गया और न्यायालय ने सूमी को उसके माता-पिता को सौंप दिया। सूमी का अपहरण करने वाले भी मुस्लिम युवक थे। ये हैं-मो.मिलथुन, मो.अब्दुर रज्जाक, मो.बेलाल हसन, मो.मिजानुर रहमान और मो.तोफज्जल। ये सभी सीबोरडी, जिला शेरपुर के निवासी हैं।

तीसरी घटना

सूमी रानी भाग्यशाली थी कि वह लगभग डेढ़ माह बाद भी सुरक्षित घर वापस आ गई। किंतु 18 वर्षीया पल्लबी बिश्वास के साथ मुस्लिम अपराधियों ने जो किया, वह दिल दहला देने वाला है। 13 फरवरी, 2012 को मुस्लिम अपराधियों ने उसका अपहरण कर लिया। मुस्लिम युवकों ने उसके साथ दो दिन तक बलात्कार किया। इसके बाद बड़ी बर्बरता से उसकी जान ले ली गई और उसका शव सेराजगंज में रेलवे पटरी पर फेंक दिया। पल्लबी के पिता बरुण बिश्वास एक विद्यालय में शिक्षक हैं। पल्लबी का पूरा परिवार गांव पाटिया बेरा, पो.-रजमान, थाना- उल्लापारा, जिला-सेराजगंज में रहता है। पल्लबी एक स्थानीय कालेज की छात्रा थी। आरोप के अनुसार एक स्थानीय मुस्लिम युवक अल-अमीन, पुत्र अब्दुल गफूर भी पल्लबी की कक्षा में पढ़ता है। अल-अमीन सदैव उस पर निकाह के लिए जोर डालता था। कक्षा में भी वह ऐसी हरकतें करता रहता था। किंतु पल्लबी अल-अमीन को भाव नहीं देती थी। इसलिए अल- अमीन ने अपने अन्य 11 दोस्तों के साथ उसका अपहरण कर लिया। घटना के समय पल्लबी घर के पास से ही पानी लाने गई थी। पल्लबी के चचेरे भाई दिलीप कुमार बिश्वास ने 14 फरवरी को उल्लापारा थाने में एफआईआर दर्ज कराई है। बंगलादेश दंड संहिता की धारा 364/302/201/34 के तहत दर्ज इस एफआईआर (8) में 12 मुस्लिम लड़कों को नामजद किया गया है। ये हैं अल-अमीन, हनीम, अशेख, शमसुल, अनीसुर रहमान, अरिफुल, अब्दुल गफूर, मो.बाबू, हफीजुल, जेवेल, गुलाम हसन और बकुल सोनफ मूसा। किंतु पुलिस ने अब तक हफीजुल को ही गिरफ्तार किया है।

चौथी घटना

ये तो थीं बंगलादेशी मुस्लिम युवकों की घिनौनी करतूतें। अब वहां की पुलिस का भी एक कारनामा पढ़ें। यह कारनामा है 1 फरवरी, 2012 का। इस दिन खुलना के पुलिस अधीक्षक तनवीर हैदर चौधरी के आदेश पर उनके मातहतों ने खुलना सदर स्थित अनेक हिन्दू परिवारों के घरों को ध्वस्त कर दिया। यह कार्रवाई बिना किसी सूचना के की गई। बहाना लिया गया कि ये सभी घर बंगलादेश के गृह मंत्रालय की जमीन पर अवैध रूप से बने हैं। जबकि उन घरों में वर्षों से रहने वाले हिन्दुओं का कहना है कि उनके घर पूरी तरह वैध हैं। सरकारी रिकार्ड भी कहता है कि मौजा-1646, खतियान नं.87 की जमीन गृहमंत्रालय की नहीं है। इसी जमीन पर वे सारे मकान बने थे। 1965 में तत्कालीन पाकिस्तान सरकार ने इन घरों को शत्रु सम्पत्ति घोषित किया था। स्थानीय जमींदार गोपाल हरि घोष ने अनुबंध पर इन घरों में हिन्दुओं को रहने की अनुमति दी थी। बाद में हिन्दुओं ने खुलना के उपायुक्त से निवेदन किया था कि उन्हें पट्टे पर वे घर दे दिए जाएं। अभी इस पर कोई सुनवाई नहीं हुई है। इसी बीच पुलिस-प्रशासन ने उन घरों को ध्वस्त कर दिया। उन मकानों में राजेन दास, परिमल दास, कन्हाई, बिशु, कार्तिक, शंकर, जाबा रानी, रीता रानी, रतना रानी और रूपा रानी के परिवार वाले रहते थे। ये सभी हिन्दू खुलना के पुलिस विभाग में सफाई कर्मचारी हैं।

पांचवीं घटना

24 फरवरी की रात खेदछरा (बंगलादेश) में एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक पूर्णिमोया चकमा की गोली मारकर हत्या कर दी गई। घटना की रात वे एक समारोह में गए थे। वहां किसी बात पर कुछ लोगों से उनकी थोड़ी बहस हो गई और वे लगभग  2 बजे रात में सोने चले गए। थोड़ी देर बाद  “मास्टर-मास्टर” कहकर कुछ लोगों ने उनसे दरवाजा खुलवाया और गोली मारकर भाग गए। इस रपट के लिखे जाने तक अपराधियों का पता नहीं चला है। किन्तु लोगों की शंका उन्हीं तत्वों पर है, जो बंगलादेश को पूरी तरह मुस्लिम देश बनाना चाहते हैं।

भारत में जो लोग एक आतंकवादी के मारे जाने पर मानवाधिकार की बात उठाते हैं, उन्हें बंगलादेशी हिन्दुओं की पीड़ा क्यों नहीं दिखती है? उन लोगों को भी बंगलादेशी हिन्दुओं की व्यथा क्यों नहीं दिखती, जो हमास के एक आतंकवादी के मारे जाने पर भारत के शहरों में प्रदर्शन करते हैं? क्या हिन्दू मानव नहीं हैं, उनके अधिकार नहीं होते हैं? द

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