सम्पादकीय
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सम्पादकीय
बिच्छू के डंक में विष होता है और सांप के जबड़ों में भी। किन्तु दुष्टों में सिर से पैर तक विष ही विष भरा रहता है। -वेमना
गिलानी के पाकिस्तानी संपर्क!
होली के रंग में भंग डालने का जिहादी षड्यंत्र विफल कर दिए जाने से दिल्लीवासियों को अवश्य यह संतोष हो रहा होगा कि वे अब पूरे आनंद के साथ होली के उल्लास में सराबोर हो सकेंगे। लेकिन इस साजिश को अंजाम देने की तैयारी में लगे लश्करे तोएबा के गुर्गों के पकड़े जाने से कुछ बेहद चिंताजनक बातों का भी खुलासा हुआ है, जिनकी अनदेखी भारत की केन्द्रीय सत्ता लगातार करती आ रही है। इसी का परिणाम है कि राष्ट्रद्रोही और अलगाववादी तत्व न केवल खुलेआम भारत विरोधी भाषा बोलते हैं, बल्कि सेकुलर चोले में जिहादी आतंकवादियों के पोषक बने रहते हैं और सरकार वोट राजनीति व मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए हमेशा ऐसे तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई से तो बचती ही है, अपनी नाक के नीचे उनकी हरकतों की भी जानबूझकर अनदेखी करती है। परिणामत: उनके हौसले और बढ़ जाते हैं। ऐन होली के पहले दिल्ली के भीड़भाड़ वाले चांदनी चौक बाजार में विस्फोट का जाल बुनने वाले जिहादी आतंकवादियों की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ व जांच-पड़ताल में यह तथ्य सामने आया है कि इनमें से एक लश्कर से जुड़ा आतंकी एतहेशाम मलिक, जो पिछले साल पाकिस्तान में 40 दिनों का प्रशिक्षण लेकर आया, को पाकिस्तानी वीजा दिलाने के लिए हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरवादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने सिफारिशी चिट्ठी लिखी थी। इससे यह तो साफ हो ही जाता है कि गिलानी को पाकिस्तानी हलकों में कितनी अहमियत प्राप्त है, दूसरे, आतंकवादी तत्वों को उनकी कितनी सरपरस्ती मिली हुई है।
यह वही गिलानी हैं जो कश्मीर घाटी में खुलकर पाकिस्तान की पैरवी करते हैं, जो सुरक्षाबलों के खिलाफ आईएसआई के पैसे से इमामों की मार्फत पलने वाले पत्थरबाजों के हिमायती रहे हैं, कश्मीरी जनता के लिए “इस्लामी कैलेंडर” जारी करते हैं और जबरन उसके पालन की मुहिम चलाते हैं, इलाज के नाम पर दिल्ली आकर अरुंधती राय जैसे सेकुलर भारत विरोधियों के साथ खड़े होकर खुलेआम “आजादी, द ओनली वे” के बैनर से कश्मीर को भारत से अलग कर देने की राष्ट्रद्रोही आवाज उठाते हैं। दुर्भाग्यवश यह सब सरकार के संज्ञान में होने के बावजूद सरकार सच्चाई से मुंह फेर लेती है और गिलानी व अरुंधती जैसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने से पीछे हटती रहती है। जो लोग राष्ट्रद्रोह के जुर्म में सलाखों के पीछे सजा भुगत रहे होने चाहिए, वे भारत के सरकारी खजाने पर ऐश करते रहते हैं। दुनिया का शायद ही ऐसा कोई देश हो जहां देशद्रोहियों को सरकार इतने नाजों से पालती है! अब गिलानी के पाकिस्तानी संपर्कों का पूरी तरह खुलासा होने के बाद भी सरकार चुप क्यों बैठी है? सरकार गिलानी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे तो ऐसे बहुत से लोगों को, जो कश्मीर में आग सुलगाए रखने में तत्पर रहते हैं, सबक मिल सकेगा। गिलानी की ओर से बड़ी मासूमियत से कहा जा रहा है कि “वह सिर्फ कश्मीरी होने के कारण लोगों की सिफारिश करते रहते हैं, वह कैसे जान सकते हैं कि पाकिस्तान कोई क्यों जाना चाहता है।” गिलानी की पाकिस्तानपरस्ती किसी से छुपी नहीं है, तो कौन उनकी इस “सफाई” पर विश्वास करेगा, जबकि देश का हर नागरिक जानता है कि पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से पाकिस्तानी सरकार, सेना व आईएसआई के संरक्षण में कश्मीर में चल रहे जिहादी आतंकवाद की मुहिम में वहां के मुस्लिम नौजवानों को लालच देकर झोंका जा रहा है। उन्हें प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान ले जाया जाता है और लश्कर जैसे पाकिस्तानी संरक्षण पाने वाले कई आतंकवादी संगठन उनका इस्तेमाल भारत को तहस-नहस करने के लिए कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला तो ऐसे “भटके” हुए लोगों के पुनर्वास की भी योजना चला रहे हैं। यह अलग बात है कि उमर को आतंकवाद पीड़ित लाखों कश्मीरी हिन्दुओं के पुनर्वास की कतई चिंता नहीं है। ऐसे में गिलानी की “सफाई” सिर्फ गफलत पैदा करने के लिए है, ताकि सरकार उसमें उलझी रहे। लेकिन संप्रग सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और गिलानी के पाकिस्तानी संपर्कों को खंगालकर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
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