हालात विस्फोटक
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दिल्ली पुलिस कांग्रेसी और कट्टरवादी मुस्लिम नेताओं के दबाव में
संदिग्ध से पूछताछ करने पर पुलिस वाले निलंबित
मनमोहन शर्मा
अल्पसंख्यकों के वोट बटोरने के मोह में यूपीए सरकार की घुटना टेक नीति के कारण देश की राजधानी दिल्ली के मुस्लिम-बहुल क्षेत्र ओखला में दिन-प्रतिदिन स्थिति विस्फोटक होती जा रही है। राजनीतिक दबाव के कारण पुलिस बेबस और पंगु बन गई है। 1 मार्च, 2012 को जामिया थाने में तैनात कान्स्टेबल महिपाल सिंह और राहुल को राजनीतिक दबाव के कारण निलंबित किया गया है। ये दोनों 29 फरवरी को जामिया के अबु फजल एन्कलेव में रहने वाले शमीम और शबीर के बारे में पता करने गए थे। शमीम जामिया मिलिया इस्लामिया का छात्र है। शमीम और शबीर बिहार के हैं और दिल्ली उच्च न्यायालय के सामने हुए बम विस्फोट के मामले में संदिग्ध हैं। इन दोनों का नाम दरभंगा से गिरफ्तार इण्डियन मुजाहिद्दीन से जुड़े फैयाज हुसैन ने पूछताछ के दौरान लिया है। दोनों पुलिस वाले शमीम और शबीर के बारे में जानकारी लेने गए थे। किन्तु स्थानीय लोगों ने खूब हंगामा मचाया। लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान भी वहां गए और कहा कि मुस्लिमों को बदनाम करने की साजिश बन्द होनी चाहिए।
पुलिस के खिलाफ दुष्प्रचार
कुछ कट्टरवादी मुस्लिम नेताओं ने इस क्षेत्र में अपनी राजनीतिक दुकान जमाने के लिए भोली-भाली जनता को पुलिस के खिलाफ एक सुनियोजित ढंग से भड़काना शुरू कर दिया है। यह सिर्फ इसलिए किया जा रहा है ताकि पुलिस और गुप्तचर एजेंसियां इस क्षेत्र में चल रहीं राष्ट्र-विरोधी एवं आतंकवादी गतिविधियों के बारे में अपनी आंखें बंद कर लें। खास बात तो यह है कि इन मुस्लिम संस्थाओं का समर्थन कुछ छद्म सेकुलरवादी एवं वामदलों के समर्थकों ने भी करना शुरू कर दिया है। हाल में ही जामिया मिलिया इस्लामिया के कुछ प्राध्यापकों एवं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों की ओर से बाटला हाउस क्षेत्र में मुसलमानों के कथित उत्पीड़न के पुलिस अभियान के खिलाफ पुलिस मुख्यालय पर जोरदार प्रदर्शन भी किया गया। जमाइते इस्लामी की ओर से क्षेत्रीय जनता को भड़काने के लिए जामिया नगर एवं बाटला हाउस में कुछ गोष्ठियों का आयोजन भी किया गया। जिसमें पुलिस पर मुस्लिम नौजवानों को झूठे आरोपों में फंसाने के कथित आरोप लगाए गए। इस अवसर पर यह भी फैसला किया गया कि मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए मुस्लिम संगठनों के नेताओं की एक समन्वय कमेटी बनाई जाएगी। इस बैठक में मुस्लिम वकीलों का एक “पैनल” भी तैयार किया गया है जो कि मुस्लिम नागरिकों के मुकदमों को मुफ्त में लड़ेगा।
दरबार में गुहार
दिल्ली नगर निगम के चुनाव क्योंकि सिर पर हैं इसलिए कांग्रेस अल्पसंख्यकों के मतों को हर कीमत पर प्राप्त करना चाहती है। यही कारण है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित एवं उनके सांसद पुत्र संदीप दीक्षित ने इस संदर्भ में सोनिया गांधी और गृहमंत्री पी. चिदंबरम के दरबार में गुहार लगाई। राजनीतिक दबाव के कारण दिल्ली के पुलिस आयुक्त बी.के. गुप्ता ने इन मुस्लिम नेताओं के आगे घुटने टेक दिए हैं और उन्होंने यह आश्वासन दिया है कि भविष्य में ओखला क्षेत्र में पुलिस द्वारा की जाने वाली प्रत्येक कार्रवाई के बारे में क्षेत्र के मुस्लिम नेताओं को पूर्व सूचना दी जाएगी। सवाल यह पैदा होता है कि ऐसी सूरत में पुलिस की इस कार्रवाई का क्या औचित्य है?
इस संदर्भ में यह उल्लेख करना भी बेहद जरूरी है कि ओखला में कुछ वर्ष पूर्व तक मुस्लिम आबादी नाम मात्र थी। इस क्षेत्र में या तो खेत थे या फिर सरकारी जमीन। 10-15 साल पूर्व पुरानी दिल्ली के रहने वाले कुछ कांग्रेसी मुस्लिम नेताओं और अब्दुल्ला बुखारी के समर्थकों ने इस सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे करके उसे लोगों में बेचना शुरू किया था। आज नूर नगर, जामिया नगर, शाहीन बाग, अबु फजल इंक्लेव, जोगाबाई आदि दर्जनों अवैध रूप से बसी बस्तियों में पांच लाख से अधिक लोग रह रहे हैं। जिनमें से 90 प्रतिशत मुसलमान हैं। कभी जामा मस्जिद और पुरानी दिल्ली के मुस्लिम बहुल क्षेत्र जैसे-बल्ली मारान, हौजकाजी, बाड़ा हिंदू राव आदि क्षेत्र मुस्लिम गतिविधियों का मुख्य केंद्र हुआ करते थे। मगर अब ओखला और उसकी बस्तियां मुस्लिम गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन चुकी हैं। गुप्तचर सूत्र यह स्वीकार करते हैं कि इस क्षेत्र में अनेक ऐसे संगठन गुप्त रूप से सक्रिय हैं जिनके तार विदेशों में सक्रिय आतंकवादी संगठनों से जुड़े हुए हैं। इन्हें नियमित रूप से भारी-भरकम आर्थिक सहायता भी प्राप्त होती है। इस क्षेत्र में प्रमुख मुस्लिम राजनीतिक संगठनों के अतिरिक्त दर्जनों सामाजिक संगठनों एवं मानवाधिकार कथित रक्षक संगठनों के कार्यालय हैं। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र से तीन दर्जन से अधिक समाचारपत्र भी प्रकाशित होते हैं।
देश विरोधी केन्द्र
उल्लेखनीय बात यह है कि यह क्षेत्र शुरू से ही देश-विरोधी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा है। लालकिले पर हमला करने वाले आतंकवादियों ने इसी क्षेत्र में शरण ली थी और पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में तीन आतंकवादी मारे गए थे। इसके बाद बाटला हाउस में आतंकवादियों और पुलिस के बीच हुई मुठभेड़ की कहानी को भला कौन नहीं जानता?
ताजा घटना 13 फरवरी 2012 की है। इस दिन महाराष्ट्र पुलिस का आतंकवाद विरोधी दस्ता (एटीएस) बाटला हाउस से एक आतंकवादी तक्की अहमद को पूछताछ के लिए हिरासत में लेने के लिए पहुंचा। तक्की अहमद के भाई नक्की अहमद को पहले ही महाराष्ट्र पुलिस जुलाई 2011 में हुए बम धमाके के सिलसिले में गिरफ्तार कर चुकी है। तक्की अहमद को जब महाराष्ट्र पुलिस ने उठाना चाहा तो उसने शोर मचाया जिस पर स्थानीय लोगों की भीड़ ने महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारियों पर हमला कर दिया। स्थानीय पुलिस भी मौके पर पहुंच गई। हैरानी की बात है कि स्थानीय पुलिस ने तक्की अहमद को महाराष्ट्र पुलिस को सौंपने के बजाय उल्टा महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारियों को ही हिरासत में ले लिया। बाद में जब इन अधिकारियों ने महाराष्ट्र के उच्च पुलिस अधिकारियों से संपर्क साधा तो इन अधिकारियों को तो दिल्ली पुलिस ने अपनी अवैध हिरासत से रिहा कर दिया। मगर उन्हें तक्की अहमद को सौंपने से साफ इंकार कर दिया।
बेबस पुलिस
उसी दिन मध्य दिल्ली के स्पेशल स्टाफ के लोग दो मोटर मैकेनिकों आरिफ और शाहरूख को कारों की चोरी के एक मामले में पूछताछ के लिए उठाने आए तो स्थानीय लोगों ने उनको घेर लिया। पुलिस वाले सफाई देते रहे मगर उत्तेजित भीड़ ने उनकी एक नहीं सुनी और उनसे जमकर मारपीट की। जामिया नगर की पुलिस जब मौके पर पहुंची तो क्षेत्रीय एएसपी ने मुस्लिम नेताओं के दबाव पर इन दोनों मैकेनिकों को पुलिस के स्पेशल स्टाफ के हवाले करने से साफ इंकार कर दिया और उल्टा मध्य जिले के स्पेशल पुलिस स्टाफ के खिलाफ आरिफ और शाहरूख के अपहरण के बारे में रिपोर्ट दर्ज कर ली।
यह तथ्य सर्वविदित है कि देश की राजधानी दिल्ली में चार-पांच लाख बंगलादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय कम-से-कम एक दर्जन बार दिल्ली पुलिस को यह निर्देश दे चुका है कि वह इन बिना बुलाए मेहमानों के खिलाफ विदेशी नागरिक कानून के तहत कार्रवाई करे और उन्हें वापस बंगलादेश भेजे। मगर अदालती निर्देश के बावजूद दिल्ली पुलिस अवैध रूप से रह रहे इन बंगलादेशियों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने में इसलिए अपने-आप को बेबस पाती है क्योंकि जब वह अवैध रूप से रहने वाले इन विदेशी नागरिकों के खिलाफ कोई कार्रवाई करती है तो मुस्लिम संगठनों के नेता और उनके कांग्रेसी आका बीच में कूद पड़ते हैं। राजनीतिक दबाव के कारण पुलिस बेबस हो जाती है। हाल में भी यही हुआ है। दिल्ली पुलिस कर्मचारियों ने रात्रि के समय जोगाबाई एक्सटेंशन के कुछ मकानों पर छापा मारा और 25 लोगों को बंगलादेशी होने के संदेह में गिरफ्तार किया। मगर जब पुलिस इन विदेशी नागरिकों को पूछताछ के लिए दो वाहनों में भरकर ले जा रही थी तो स्थानीय मुस्लिम जनता ने पुलिस पार्टी को घेर लिया और उसपर हमला करके पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया। स्थानीय पुलिस जब मौके पर पहुंची तो उसने उल्टा मुस्लिम भीड़ का साथ दिया और इन संदिग्ध बंगलादेशियों को जबरन छुड़वा दिया। इस घटना के खिलाफ मुस्लिम नेता दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष एवं कांग्रेसी नेताओं के दरबार में गए। दिल्ली पुलिस ने इन कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारियों को कोई इनाम देने के बजाय उल्टा आठ पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया।
राष्ट्रघाती नीति
कहा जाता है कि ओखला क्षेत्र में इस समय जो पुलिस अधिकारी नियुक्त हैं उनका चयन दिल्ली सरकार के एक पूर्व मंत्री की सिफारिश पर किया गया था। इनमें से एक अधिकारी जब थाना सीलमपुर और थाना जामा मस्जिद में नियुक्त थे तो उनके दिल्ली के कुछ मुस्लिम नेताओं से अति घनिष्ठ संबंध थे। इन्हीं संबंधों का उन्हें पुरस्कार दिया गया है। इस संदर्भ में यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि जामिया नगर थाने के जिन अधिकारियों ने राष्ट्र विरोधी तत्वों और भूमाफिया गिरोह के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की कोशिश की तो उन्हें कुछ क्षेत्रीय नेताओं का कोपभाजन बनना पड़ा। ऐसे कम से कम चार अधिकारियों को रातों-रात तबादला कर दिया गया। ऐसी स्थिति में क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि कोई पुलिस अधिकारी राष्ट्र विरोधी तत्वों के खिलाफ कदम उठाने की हिम्मत करेगा?
कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली के राजघाट के समीप स्थित संजय गांधी कैंप में जब पुलिस वालों ने बंगलादेशी नागरिकों को हिरासत में लेने का प्रयास किया था तो मुस्लिम नेताओं ने उनके खिलाफ पवित्र कुरान के तथाकथित अपमान का झूठा मामला हवा में उछाल दिया था। मुस्लिम नेताओं के दबाव के कारण इस कांड में चार पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था। मगर देश के कानून का उल्लंघन करने वाले बंगलादेशियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
इस संदर्भ ने स्वर्गीय नरसिम्हा राव के शासनकाल के दौरान विदेशी आतंकवादियों की तलाश में लखनऊ स्थित दारूल उलूम नदवा के होस्टल पर उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा मारे गए छापे का उल्लेख करना भी जरूरी है। यह छापा केंद्रीय गुप्तचर ब्यूरो के उच्च अधिकारियों के निर्देश पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने मारा था। उत्तेजित छात्रों की भीड़ ने तीन विदेशी अफ्रीकी मूल के आतंकवादियों को पुलिस पर हमला करके मौके से फरार करा दिया। इस मामले पर दारूल उलूम नदवा के तत्कालीन प्रमुख अली मियां ने खूब हंगामा मचाया और उसका साथ देश की मुस्लिम संस्थाओं और नेताओं ने भी जमकर दिया। नरसिम्हा राव ने अली मियां से क्षमा याचना करने के लिए तत्कालीन रेल मंत्री जाफर शरीफ को लखनऊ भेजा। अली मियां को संतुष्ट करने के लिए लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश के दो पुलिस कप्तानों सहित केंद्रीय गुप्तचर ब्यूरो के दो अधिकारियों को छापे मारने के गुनाह में नौकरियों से निलंबित कर दिया गया। ये कर्तव्यनिष्ठ और राष्ट्रभक्त पुलिस अधिकारी वर्षों तक निलंबित रहे।
प्रश्न यह पैदा होता है कि प्रशासन आखिर कब तक मुस्लिम तुष्टीकरण की इस राष्ट्रघाती नीति का अनुसरण करता रहेगा? कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी आखिर कब तक अपनी राष्ट्रभक्ति की कीमत अदा करते रहेंगे? इन गंभीर प्रश्नों पर हर देशभक्त को सोचना चाहिए।द
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