व्यंग्य बाण
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आपका विवाह हो चुका है, तो अच्छी बात है। नहीं हुआ, तो भी अच्छी बात है। पर आप दस-बीस शादियों में तो जरूर गये होंगे। नाच-गाने के बिना शादी, और बैंड-बाजे के बिना नाच-गाना अधूरा रहता है। बैंड में कई तरह के वाद्य होते हैं, जो समय-समय पर अपने हिस्से का काम करते हैं।
आप हैरान न हों। मैं अपने किसी मित्र के बैंड का प्रचार नहीं कर रहा हूं। न मैं आपको बैंड में शामिल होने के लिए कह रहा हूं। चौराहे पर किसी का बैंड बजाना भी मेरा उद्देश्य नहीं है। मैं तो सिर्फ इतना बताना चाहता हूं कि बैंड में सबसे अधिक शोभायमान होने वाला वाद्य है “शामिल बाजा”।
“शामिल बाजा” आकार में सबसे बड़ा और ऊंचा होता है। यह सबसे आगे चलता है और इस पर बड़े-बड़े अक्षरों में बैंड का नाम भी लिखा होता है। बाकी सब वाद्य बजाने के लिए प्रशिक्षण लेना होता है; पर इसमें पूरी ताकत से बस फूंक ही मारनी पड़ती है। बजने पर भों-भों या घों-घों जैसी आवाज आती है, जो बहुत दूर तक जाती है।
यह सब बताने का उद्देश्य केवल इतना है कि हर गांव और मोहल्ले में कई लोग “शामिल बाजा” होते हैं। वे बिना सोचे-समझे हर बात का समर्थन या विरोध करने लगते हैं। इस चक्कर में प्राय: वे अपनी ही कही हुई बातों को काटने, पीटने, फाड़ने या उलटने लगते हैं। इससे होने वाली फजीहत को भी वे हंसकर सह लेते हैं। हमारे प्रिय मित्र शर्मा जी भी उनमें से एक हैं। इसलिए लोग उन्हें कभी-कभी “शामिल बाजा” भी कह देते हैं।
बात तब की है जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में देश में पहली बार सही अर्थों में गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। उनके शपथ लेते ही शर्मा जी ने अपने घर की छत पर भाजपा का इतना बड़ा झंडा लगाया कि पूरे शहर में उसकी चर्चा होने लगी। उन्होंने मोहल्ले के शिव मंदिर में 108 कमल के फूलों से विशेष पूजा भी करवाई।
पर अगली बार इसका उल्टा हो गया। लोकसभा में कांग्रेस और उसके मौसमी मित्रों को सबसे अधिक सीट मिल गयीं। इससे मैडम इटली की सुप्त इच्छाएं जाग उठीं। वे प्रधानमंत्री पद की दावेदार बनकर राष्ट्रपति भवन जा पहुंचीं पर राष्ट्रपति डा. कलाम ने उन्हें नियमों का हवाला देकर बैरंग लौटा दिया। राहुल बाबा तब बहुत ही छोटे थे। अत: मैडम को मजबूरी में अपने खानदानी जी-हुजूर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाना पड़ा। इसके बाद कांग्रेस वालों ने मैडम जी को त्याग की प्रतिमा बताकर धन्यवाद जुलूस निकाले। तब शर्मा जी भी इसमें शामिल थे; पर आज जब मैडम सरकार सब ओर से भ्रष्टाचार से घिरी हैं, तो वे इस विषय पर बात करना भी पसंद नहीं करते।
जब बाबा रामदेव और अण्णा हजारे ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन किये, तो शर्मा जी तिरंगा लेकर रामलीला मैदान में सबसे आगे जा बैठे। एक बार तो उनका चित्र भी कई जगह छप गया। इससे खुश होकर उन्होंने अपने मित्रो को दावत दी। इन दिनों वे सुब्रह्मण्यम स्वामी की सभाओं में नियमित रूप से जा रहे हैं।
पिछले दिनों मैं लखनऊ गया तो वहां वे “साइकिल” पर सवार होकर “हाथ” हिलाते मिले; पर अगले ही दिन सीने पर “कमल” का फूल लगाये “हाथी मेरा साथी” के गीत गा रहे थे। मैं समझ नहीं पाया कि वे उत्तर प्रदेश का भूत हैं या भविष्य? मुझे गुस्सा आ गया।
– शर्मा जी, तुम आदमी हो या गिरगिट?
– वर्मा जी, हम तो “शामिल बाजा” हैं। बारात किसी की भी हो, हमें तो सबसे आगे चलना है। हमारा सिद्धांत है – जहां मिलेगी तवा परात, वहां कटेगी सारी रात।
बात बिल्कुल सच है। शर्मा जी के पास न रीति है न नीति। न दल है न सिद्धांत। न शर्म है न लिहाज। न दीन है न ईमान। यदि कुछ है, तो वह है सत्ता की कभी शान्त न होने वाली भूख।
ठीक भी तो है, जब छोटे से लेकर बड़े तक, सब नेता और अफसर इस लालसा में जी रहे हैं तो शर्मा जी की ही क्या गलती है?
कुछ दिन बाद पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने वाले हैं। शर्मा जी अपने बाजे को चमका रहे हैं। देखते हैं वे अपने शामिल बाजे के साथ किसकी बारात में शामिल होते हैं? द
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