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होली पर विशेष
सुबह-शाम की गुनगुनी ठण्ड के बीच होली की मस्ती लोगों पर छाने लगी है। बच्चे पिचकारी और रंगों की काल्पनिक दुनिया का ताना-बाना बुनने लगे हैं, तो बड़े बाजारों में तेल, घी, मैदे… का भाव पूछने लगे हैं। वहीं एक गरीब आदमी महंगाई के इस जमाने में होली मनाए या न मनाए, यह तय नहीं कर पा रहा है। किन्तु फिर वह अपने छोटे-छोटे बच्चों पर छायी होली की ठिठोली देखकर ठिठक जाता है और न चाहते हुए भी होली मनाने का मन बना लेता है। पहले तो वह बाजार में महंगाई के रंग-सागर में कूदता है। इसके बाद तो उसके लिए होली का रंग फीका-सा हो जाता है। उधर आम लोगों की इस मन:स्थिति से जानबूझकर अनजान बने देश के नेताओं के चेहरों पर भ्रष्टाचार-रंग, तुष्टीकरण-रंग, समाज-तोड़क रंग, वाम-रंग, सेकुलर-रंग इस कदर चढ़ा है कि उन्हें देशहित और आम आदमी की परेशानी दिख ही नहीं रही है। आप इन नेताओं के चेहरों को पहचान सकें, फागुनी हवा के झोंकों को महसूस कर सकें यही प्रयास किया है व्यंग्यकार प्रशान्त और व्यंग्य चित्रकार आलोक भार्गव ने। -सं.
करनी का फल
राजा होली खेलते, दीवारों के पार
पड़े अकेले हैं वहां, जिसका नाम तिहाड़।
जिसका नाम तिहाड़, साथ सबने है छोड़ा
खानपान के साथी, सबने नाता तोड़ा।
कह “प्रशांत” यह बात सभी ने सत्य बताई
करनी का फल तुम ही तो खाओगे भाई।।
होली का मधुर रंग
फागुन की दस्तक सुनी, जगे खेत खलिहान
पतझड़ मानो कह रहा, स्वागत है मेहमान।
स्वागत है मेहमान, आ गयी फिर से होली
घर-आंगन-बाजार, भरी खुशियों से झोली।
कह “प्रशांत” हर गांव-नगर बज रही चंग है
बुरा न मानो, ये होली का मधुर रंग है।।
फागुनी शाम
दिन में गरमी हो रही, मगर फागुनी शाम
होली का संदेश है, भरो प्रेम के जाम।
भरो प्रेम के जाम, बने घर-घर ठंडाई
समरसता के मेवे डालो इसमें भाई।
कह “प्रशांत” देखो फिर कैसा रंग जमेगा
लाख छुड़ाए कोई, नहीं मगर छूटेगा।।
गगन में भगवा लहरे
होली खेलो प्यार से, लेकर रंग-गुलाल
जिससे ऊंचा हो सके, भारत मां का भाल।
भारत मां का भाल, गगन में भगवा लहरे
जिसके सम्मुख दुनिया में कोई ना ठहरे।
कह “प्रशांत” संगठन मंत्र में तंत्र मिलाओ
खुशियां बांटो नित्य, फाग मस्ती में गाओ।।
इज्जत से कंगाल
करुणा जी की निधि लुटी, जयललिता खुशहाल
दयानिधि मारन हुए, इज्जत से कंगाल।
इज्जत से कंगाल, दिया जनता को धोखा
जब जाएंगे जेल, रंग आएगा चोखा।
कह “प्रशांत” कालिख से मुखमंडल दमकेगा
बड़े-बड़ों की संगत से तिहाड़ चमकेगा।।
होगा बंटाधार
नेता पुत्रों की हुई, फसल नयी तैयार
अब उनसे ही देश का, होगा बंटाधार।
होगा बंटाधार, अनोखा यह हमाम है
इसमें सब दिखते नंगे जो बड़े नाम हैं।
है “प्रशांत” यह लोकतन्त्र का नूतन मण्डल
कर डाला इसने भारत का जन-मन घायल।।
फिर से उनके हाथ
बाल ठाकरे रंग में, हैं उद्धव के साथ
आई मुम्बई आमची, फिर से उनके हाथ।
फिर से उनके हाथ, राज ने सेंध लगाई
मगर दुर्ग मजबूत, कांग्रेस तोड़ न पाई।
कह “प्रशांत” गडकरी गढों के हैं रखवारे
अभी भाजपा और बढ़ेगी साथ तुम्हारे।।
चुप हैं मादाम
महंगाई से हो रही, चहुंदिश त्राहिमाम
मनमोहन जी क्या करें, जब चुप हैं मादाम।
जब चुप हैं मादाम, यही इतिहास पुराना
कांग्रेस के शासन में कीमत बढ़ जाना।
कह “प्रशांत” अब देखो आगे क्या होएगा
कमरतोड़ महंगाई से भारत रोएगा।।
लालू जी बेकार
नहीं घास मिल पा रही, लालू जी बेकार
सोच रहे हैं किस तरह, हो फिर बेड़ा पार।
हो फिर बेड़ा पार, किलो भर गांजा खाया
लेकिन फिर भी रस्ता समझ नहीं कुछ आया।
कह “प्रशांत” है जनता ने घूरे पर डाला
पूरे खानदान का ही पिट गया दिवाला।।
नाकारा का जयकारा
कांग्रेस है बन गयी, घर की चौखट आज
मां-बेटे के शीश पर, आधा-आधा ताज।
आधा-आधा ताज, नजर राबर्ट लगाये
इसमें से थोड़ा हिस्सा मुझको मिल जाए।
कह “प्रशांत” जो सभी तरह से हैं नाकारा
कांग्रेसजन बोल रहे उनका जयकारा।।
अधर में लटकी सांस
डूब रही मंझधार में, किंगफिशर की नाव
बढ़ा रहा है हाथ पर, नहीं मिल रहे भाव।
नहीं मिल रहे भाव, नजर शासन ने झटकी
सांस विजय माल्या की बीच अधर में अटकी।
कह “प्रशांत” टैंकों में तुम शराब डलवाओ
होली की तरंग में अपने यान उड़ाओ।।
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