स्वास्थ्य
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स्वास्थ्य
डा. हर्ष वर्धन
एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)
जोड़ों को सुरक्षित रखें
बढ़ते प्रदूषण, वातावरण तथा जीवन शैली में परिवर्तन के कारण मानव जाति एक न एक बीमारियों की चपेट में आती जा रही है। एक बीमारी की रोकथाम का अभी समुचित उपाय संभव नहीं हो पाता कि दूसरी बीमारी हमारे समक्ष एक नई चुनौती के रूप में खड़ी हो जाती है। आर्थराइटिस तेजी से बढ़ती हड्डी के जोड़ों की बीमारी है। आर्थराइटिस का अर्थ होता है जोड़ों में सूजन परन्तु इस शब्द का प्रयोग बहुधा जोड़ों को प्रभावित करने वाली सौ से अधिक बीमारियों में से किसी के लिए भी किया जाता है जहां दो या इससे अधिक हड्डियां मिलकर गतिशीलता को कायम रखती हैं। आर्थराइटिस के कई प्रकार हैं, जिसमें सबसे अधिक लोग ऑस्टियोआर्थराइटिस से प्रभावित होते हैं। यह अस्थियों के जोड़ों के विकृत होने की बीमारी (डीजेनेरेटिव ज्वाइंट डिजीज) है। इस रोग में जोड़ों की सतह क्षतिग्रस्त हो जाती है तथा इसके आसपास की हड्डी में मोटापन आ जाता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस से ग्रस्त मरीजों को यह भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रभावित करती है। कुछ लोगों में शीघ्रता से यह बढ़ती है तथा कुछ लोगों में इसके गंभीर लक्षण होते हैं। इस बीमारी का प्रमुख कारण क्या है, इसका अभी तक पता नहीं चल पाया है परन्तु संभावित कारण हैं-मोटापा, बढ़ती उम्र, मधुमेह, जोड़ों की चोट तथा तनाव, गलत तरीके से उठने-बैठने की जीवन शैली, व्यायाम की कमी, प्रदूषण, भोजन में पोषक तत्वों की कमी आदि।
जोड़ हड्डियों का वह स्थान होता है जहां दो हड्डियां मिलती हैं तथा इनकी रचना इस प्रकार हुई है कि हड्डियों के मध्य सहज गतिविधि हो सके तथा चलने अथवा बार-बार होने वाली गतिविधियों के झटके को अवशोषित कर सके। हड्डियों के जोड़ कार्टिलेज (प्रत्येक हड्डियों के अंत में एक सख्त लेकिन चिकने लेप वाली परत), ज्वाइंट कैप्सूल (एक कठोर झिल्ली कोश जो सभी हड्डियों एवं अन्य संधि अंगों को एक साथ रखता है), साइनोवियम (ज्वाइंट कैप्सूल के अंदर एक पतली झिल्ली) तथा साइनोवियल फ्लूड (एक तरल जो जोड़ों को चिकना तथा कार्टिलेज को सहज और स्वस्थ बनाये रखता है) से बने होते हैं। ऊतक (टिशू) हड्डियों को अचल तथा जोड़ों को मुड़ने और चलने योग्य बनाये रखते हैं। लिगामेन्ट्स सख्त तथा रस्सी की भांति ऊतक होते हैं जो एक हड्डी से दूसरी हड्डी को जोड़े रखते हैं। शिराएं (टेन्डन) कठोर और रेशेदार तन्तु होती हैं जो मांसपेशियों से हड्डियों को जोड़े रखती हैं। मांसपेशियां विशिष्ट कोशिकाओं की पोटली होती हैं जो नसों द्वारा प्रोत्साहित किये जाने पर गतिविधि उत्पन्न करने के लिए सिकुड़ती हैं।
ज्वाइंट कार्टिलेज स्पंज की तरह होते हैं जो हड्डियों के अंतिम हिस्से को ढके रहते हैं। यह हड्डियों को बचाते (शॉक एब्जारबर) हैं तथा एक दूसरे को घिसने से बचाते हैं। कोई भी कारण (अनेक बार की चोट, अधिक उम्र, मोटापा आदि) जो जोड़ों में विकार उत्पन्न कर देता है तो उसका दुष्परिणाम होता है कि जोड़ों के आकार तथा लाइनबद्धता (एलाइनमेन्ट) में क्षति हो जाती है। इसके अतिरिक्त हड्डियों के कोने मोटे तथा बोनी ग्रोथ होने लगती है, जिसे “आस्टियोफाइट्स” कहा जाता है। कार्टिलेज अथवा जोड़ के अन्य विकृत अंश के टुकड़े जोड़ों के अंदर तैरते रहते हैं, जिसके कारण जोड़ों में अकड़न, दर्द तथा गतिशीलता की क्षति पैदा हो जाती है।
आर्थराइटिस के बारे में प्रमुख तथ्य है कि-
इससे अंगुलियों का अग्रभाग, अंगूठा, गर्दन, घुटना, हिप्स तथा लोअर बैक प्रमुख रूप से प्रभावित होते हैं। इस बीमारी के होने पर जीवन शैली अत्यधिक प्रभावित हो जाती है-जैसे तनाव, चिन्ता, असहाय होने का भय, दैनिक कार्यों का सीमा बंधन, नौकरी में बाधा, व्यक्तिगत और पारिवारिक कार्यों एवं समारोहों में शामिल होने तथा दायित्वों के निर्वहन में बाधा। थ् यह अक्सर 40 वर्ष की उम्र के बाद शुरू होती है तथा धीरे- धीरे बढ़ती रहती है।
थ् यह मुख्य रूप से भार का वहन करने वाले अस्थि जोड़ों जैसे-घुटना और कूल्हा (हिप) को प्रभावित करती है। यह अंगुलियों के जोड़ों (टाइपिस्ट अथवा कंप्यूटर आपरेटरों जो अंगुलियों का अत्यधिक प्रयोग करते हैं) तथा मेरुदण्ड (खासकर वृद्धों) को भी प्रभावित कर सकती है।
थ् दुष्प्रभावित जोड़ों में दर्द होने लगता है। घुटनों का दर्द, लम्बे समय से एक ही स्थिति में बैठने की वजह से अचानक उठने पर ज्यादा हो सकता है। आद्र्र, सर्दी तथा बरसात के मौसम (संभवत: वातावरण में तापमान या विद्युत चुम्बकीय परिवर्तन के कारण जोड़ों पर असर पड़ता है) में भी दर्द अधिक हो सकता है।
थ् प्रात: काल में अकड़न जो 30 मिनट से ज्यादा न हो।
थ् जोड़ अक्सर ठंडे होते हैं अत: इसमें सूजन नहीं होती है।
थ् अंगुलियों के अंतिम सिरे के छोटे जोड़ों पर हड्डियों में वृद्धि तथा अंगुलियों के मध्य जोड़ों पर हड्डियों में वृद्धि आस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण हैं।
थ् जो लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, उनको यह बीमारी होने की संभावना अधिक होती है।
थ् जिन बीमारियों से मेटाबौलिज्म प्रभावित होता है, उसके कारण यह बीमारी हो सकती है।
थ् पैरों में असमानता भी इस बीमारी का कारण बन सकती है।
थ् इससे पीड़ित व्यक्ति के समूचे शरीर के जोड़ों पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है।
ऑस्टियोआर्थराइटिस में सावधानियां
थ् अपने वजन पर नियंत्रण रखें
थ् संतुलित आहार लें : एंटीऑक्सीडेन्ट खासकर विटामिन सी का प्रयोग ज्यादा करें। यह आस्टियोआर्थराइटिस को और बढ़ने नहीं देगा। कैल्शियम एवं विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में लें।
थ् जोड़ों को अति उपयोग तथा बार-बार लगने वाली चोट से बचायें।
थ् चिकित्सक के परामर्शानुसार व्यायाम तथा योगाभ्यास करें
थ् स्क्वेटिंग करने तथा फर्श पर क्रास लेग्ड रूप में बैठने से बचे।
थ् लगातार दर्द की दवाइयां न खायें। इससे गुर्दे/अस्थि मज्जा (बोन मैरो) व अन्य जरूरी अंग खराब हो सकते हैं।
थ् दर्द की अनदेखी न करें।
थ् यदि छड़ी या डंडा लेने की सलाह हड्डी रोग चिकित्सक द्वारा दी जाए तो इस्तेमाल करने में संकोच न करें।
थ् जॉगिंग से बचें परन्तु टहलने का प्रयास करें।
थ् लम्बे वॉक पर निकलते समय गद्दीदार स्पोट्र्स जूते का प्रयोग करें।
थ् घरों में गद्दीदार चप्पल का इस्तेमाल करें।
थ् लम्बे पाश्चात्य शौचालय (वेस्टर्न कोमोड) का प्रयोग करें।
थ् धूम्रपान तथा शराब सेवन से बचें।
थ् फल और सलाद का प्रयोग प्रतिदिन करें।
थ्चिकित्सक द्वारा निर्देशित दवा को नियमित लें।
ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण शरीर में जब दिखाई देने लगें तो ऐसे में चाहिए कि किसी हड्डी रोग विशेषज्ञ से परामर्श लें तथा इस बीमारी से पीड़ित लोग विशेष सावधानी रखें। यदि विशेष सावधानियां रखीं गयीं तो इस बीमारी के होने पर भी एक सामान्य जीवन जीया जा सकता है। आगामी लेख में आर्थराइटिस के अन्य प्रकार पर चर्चा की जाएगी।
लेखक से उनकी वेबसाइट ध्र्ध्र्ध्र्.ड्डद्धण्ठ्ठद्धद्मण्ध्ठ्ठद्धड्डण्ठ्ठद.ड़दृथ्र् तथा ईमेल ड्डद्धण्ठ्ठद्धद्मण्ध्ठ्ठद्धड्डण्ठ्ठदऋढ़थ्र्ठ्ठत्थ्.ड़दृथ्र् के माध्यम से भी सम्पर्क किया जा सकता है। द
“पीआरसीआई चाणक्य पुरस्कार” से सम्मानित हुये प्रो. कुठियाला
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल (म.प्र.) के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला को पब्लिक रिलेशंस कौंसिल ऑफ इंडिया (पीआरसीआई) के प्रतिष्ठित चाणक्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मीडिया एवं संचार के अकादमिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये प्रो. बृज किशोर कुठियाला को वर्ष 2012 का यह पुरस्कार प्रदान किया गया है। प्रो. कुठियाला ने मुम्बई में आयोजित समारोह में यह पुरस्कार ग्रहण किया।
“पब्लिक रिलेशंस कौंसिल ऑफ इंडिया” जनसंपर्क के क्षेत्र में कार्य कर रही एक प्रतिष्ठित संस्था है। यह संस्था भारत में जनसम्पर्क कार्य को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है, साथ ही यह प्रतिवर्ष मीडिया, संचार एवं जनसंपर्क के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले व्यक्तियों को सम्मानित करती है। प्रो. कुठियाला को यह पुरस्कार वर्ष 2012 के सर्वश्रेष्ठ “बिजनिस कम्युनिकेशन ट्रेनर ऑफ द ईयर” श्रेणी के अंतर्गत प्रदान किया गया है।
प्रो. कुठियाला को सितम्बर 2011 में टोक्यो, जापान में आयोजित “इंडिया-जापान ग्लोबल पार्टनरशिप समिट” में आमंत्रित किया गया था। जिसमें उन्होंने “क्रिएटिंग पीपुल्स कनेक्टीविटी बिटवीन इंडिया एण्ड जापान द रोल ऑफ मीडिया” इन इंडिया-जापान ग्लोबल पार्टनरशिप” पर अपने विचार रखे थे। इसके अतिरिक्त वे ब्रिसबेन, आस्ट्रेलिया, चीन तथा सिंगापुर में मीडिया संगोष्ठी में आमंत्रित किये गये थे। संचार की भारतीय परम्परा एवं दर्शन पर किये गये उनके कार्यों को देश-विदेश में सराहा गया है। प्रो. कुठियाला के इसी उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये वर्ष 2012 के पीआरसीआई चाणक्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। पूर्व में उन्हें “सर्वश्रेष्ठ संचारक” एवं “संचार गुरु” जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
प्रो. बृज किशोर कुठियाला मीडिया शिक्षा के विस्तार एवं इस क्षेत्र में नवाचारिक प्रयोग के लिए देशभर में पहचाने जाते हैं। गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र में मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में किये गये उनके नवीन प्रयोगों को संचार शिक्षा जगत में काफी सराहा गया है। द
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