जानें पोथियों में छिपी पहचान
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जानें पोथियों में छिपी पहचान
मुजफ्फर हुसैन
मैं कौन हूं? कहां से आया हूं? और कहां जाऊंगा ये तीन ऐसे बुनियादी सवाल हैं, जो दुनिया का हर व्यक्ति अपने आपसे पूछता रहता है। कहां जाऊंगा, यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर केवल अटकलें लगाई जा सकती हैं। इसका आधार धर्म भी हो सकता है और विज्ञान भी? लेकिन कहां हूं? इसका उत्तर उसे शत-प्रतिशत मिल जाता है। इन दो प्रश्नों से भी अधिक महत्व का प्रश्न यह है कि मैं कहां से आया हूं? इसका उत्तर व्यक्ति अपने ज्ञान और अटकलों के आधार पर देता है। लेकिन यह इतना महत्व का है कि उसकी जानकारी एकत्रित करने के लिए वह सदैव तत्पर रहता है। ज्यों ही उसे कोई सूत्र मिलता है तो वह तुरंत उस दिशा में प्रयास करने के लिए दौड़ पड़ता है। अपने सुनहरे भूतकाल को जानने में उसकी रुचि हर क्षण बढ़ती ही रहती है। अपनी इस जानकारी पर वह गर्व भी करता है और अपने पुरखों के इतिहास को दोहराता हुआ अपने सुनहरे भविष्य की कामना करने लगता है। पिछले दिनों “हू आई एम” के शीर्षक से कुछ पुस्तकें बाजार में आई हैं। उसका उत्तर हर व्यक्ति ने अपनी तरह से देने का प्रयास किया है। अमरीका के राष्ट्रपति का कहना है कि उन्हें रोमन कैथोलिक ईसाई होने पर गर्व है। ब्रिटेन का प्रधानमंत्री स्वयं को प्रोटेस्टेंट ईसाई की संतान मानता है। यहूदी अब्राहम और मोजेज की संतान होने का गर्व महसूस करते हैं। वास्तविकता तो यह है कि मध्य-पूर्व के तीनों पंथ अब्राहम की संतान होने पर गर्व करते हैं। अमरीका के बहुचर्चित लेखक हंटिगटन का मानना है कि वर्तमान को बहुत समय तक संघर्ष से नहीं बचाया जा सकता है। इसलिए सभ्यताओं का संघर्ष लेखक को क्षितिज पर दिखाई पड़ रहा है। अमरीका के एक नीग्रो के मन में जब यह आया कि उसके पुरखे अपना देश छोड़ कर इस महाद्वीप में कब और कैसे लाए गए तो “दी रूट” नामक उपन्यास अस्तित्व में आया। महान स्वतंत्रता सेनानी खान अब्दुल गफ्फार खान कहा करते थे, “मैं तीन हजार वर्ष का आर्य हूं, दो हजार साल का पठान, 1400 वर्ष का मुसलमान और केवल पचास वर्ष का पाकिस्तानी।” सरहदी गांधी की तरह भारत में रहने वाला हर इंसान यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि वह कितने वर्षों का हिन्दुस्थानी है? भारत में जितने मत-पंथ हैं और उसके आधार पर बनी जातियां और वर्तमान परिभाषा के अनुसार राष्ट्रीयता से जुड़े लोग हैं, वे यहां कितने पुराने हैं? एक बात तो तय है कि आज जो लोग केवल भारतीय उपखंड ही नहीं, बल्कि भारत के आसपास के जिन भी देशों में रहते हैं, वे सभी मूल रूप से यहीं के निवासी हैं। इतिहास की भाषा में कहें तो सभी आर्य हैं और जिस धरती हिन्दुस्थान पर उनका जन्म और भरण-पोषण हुआ है वे सभी हिन्दू हैं।
समान हैं सबके आद्यपुरुष
आदम श्रीलंका में जन्मे और फिर एडम ब्रिज के मार्ग से अयोध्या आए। उनकी कब्र के चिह्न अयोध्या के आसपास आज भी मौजूद हैं। कुछ जानकारियों के अनुसार वे भारत से अरबस्तान की ओर चले गए। कश्मीर में हजरत ईसा की कब्र इस बात की द्योतक है कि भारत से गए लोग समय-समय पर यहां फिर से लौटते रहे हैं। यानी आदम की जितनी संतानें हैं वे हिन्दुस्थान के आसपास की धरती पर जन्मे हैं। अपने देश हिन्दुस्थान के कारण से उनकी पहचान हिन्दू हो गई। यह केवल भौगोलिक और राष्ट्रीयता के आधार पर उनकी पहचान थी। बाद में धार्मिक आधार पर उनकी पहचान हिन्दू हो गई। लेकिन एक बात स्वयं सिद्ध है कि तत्कालीन आबादी भारत से जुड़ी रही है। अरब लोगों ने तो भारत के स्थान पर इस देश को हिन्दुस्थान और यहां की जनता को हिन्दू शब्द से ही सम्बोधित किया। इसलिए अब यदि व्यक्तिगत आधार पर किसी को अपनी जड़ें खोजना है तो उसका स्रोत वही प्राचीन समाज और स्थल हो सकते हैं, जो प्रारंभ से उसके साथ जुड़े थे। अरबस्तान में जितने भी देवी-देवताओं के नाम सामने आते हैं उनमें हुबल, सफा, नाइला और इज्जा आदि हैं। जब उनके स्वरूप की तुलना की जाती है तो वे अर्ध नारीश्वर और अन्य प्रचलित हिन्दुओं के देवी-देवताओं से ही समानता रखते हैं। अबू सुफयान को कवि के रूप में उद्धरित किया जाता है, जिन्होंने अपनी कविताओं में शिव की प्रशंसा के साथ-साथ उनकी आराधना भी की है। इसलिए जब हम सामूहिक रूप से अपनी प्राचीन जड़ों को ढूंढ़ते हैं तो कहीं न कहीं सबके आद्य पुरुष समान ही दिखाई पड़ते हैं। इसलिए राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से हम विचार करें तो हमारा साझा इतिहास हमें सबसे पहले खोजना होगा। इसका सबूत हमें उस समय मिल जाता है जब हम अपनी वंशावली की ओर अग्रसर होते हैं। यह वंशावली कोई और वस्तु नहीं, बल्कि हमारा वंश पुराण ही है।
यह वंश पुराण सही अर्थों में हमारे पुरखों का इतिहास, उनकी गौरव गाथा और उनके ऐतिहासिक कार्यों के दस्तावेज हैं। इसलिए समय-समय पर इन गाथाओं को लिपिबद्ध किया गया है। चूंकि एक परिवार का उत्तराधिकार अपनी आने वाली संतानों को मिलता है इसलिए इसे वंश पुराण से भी सम्बोधित किया जाता है। यह हर परिवार और वंश का अलग-अलग ब्योरा होता है। जब इसे पढ़ा जाता है तब मालूम होता है कि हमारे बाप-दादा कहां के मूल निवासी थे। हमारा धर्म, हमारे कार्य और जीवन दर्शन क्या था? संक्षेप में कहें तो यह हर परिवार का अपना इतिहास था। लेकिन निरंतर आक्रमण और सदियों की गुलामी ने इस काम को अस्त-व्यस्त कर दिया। इसके बावजूद इन दस्तावेजों के क्रमबद्ध लिखने का काम होता रहा है। जिसे हर क्षेत्र ने अपनी-अपनी भाषा में उसके अलग-अलग नाम रख दिये हैं। लम्बे समय तक तो जो व्यक्ति उन्हें लिपिबद्ध करता था वे सब उसी के पास संग्रहित होते थे। समय के साथ उनके निवास बदल गए और बिगड़ती आर्थिक स्थिति के कारण तितर-बितर हो गए। इस अमूल्य इतिहास के लेखकों को यह भान अवश्य था कि इन पोथियों के नष्ट हो जाने से उनके वंश और उनके ऐतिहासिक कार्यों पर धूल पड़ सकती है। इसलिए उसे बचाने के लिए उन्होंने मंदिरों का सहारा लिया। मंदिरों के तहखानों में उनको सुरक्षित रख दिया गया। जब समय और परिस्थितियां अनुकूल होती हैं तो वे इन लिखे गए दस्तावेजों को बाहर निकालते हैं और उसमें नई पीढ़ी से प्राप्त नई जानकारी शामिल करके उसे पूर्ण करने का साहसिक काम करते हैं।
अतीत से साक्षात्कार
बदलते समय के साथ इसका महत्व घटता गया और समाज, जाति एवं गोत्र कुल की लापरवाही के कारण इसकी निरंतरता भी भंग होती चली गई। इसलिए गौरवशाली इतिहास समय की माटी के नीचे दबता चला गया। लेकिन पिछले कुछ वर्षों के अन्दर धर्म जागरण की छतरी के तले अतीत से साक्षात्कार करने के लिए “वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन संस्थान” की स्थापना जयपुर में की गई। अनेक समर्पित एवं खोजी कार्यकर्ताओं की सहायता से यह कारवां आगे बढ़ता गया। इसका नेतृत्व जयपुर के वरिष्ठ प्रचारक राम प्रसाद जी के हाथों में दिया गया। जब इस विद्वान और समर्पित व्यक्ति से मिलते हैं तो ऐसा लगने लगता है हम दुनिया के किसी ऐसे विश्वविद्यालय में पहुंच गए हैं जहां की गतिविधियों ने भारत को गहरे अंधकार से निकाल कर एक नई रोशनी में ला खड़ा किया है। इस कार्य को न तो कला में बांटा जा सकता है और न ही विज्ञान में। वास्तविकता तो यह है कि हम एक नई दुनिया में पहुंच जाते हैं जो उसे यह बताने का प्रयास करती है कि तुम्हारी जीवन यात्रा कब और कैसे प्रारंभ हुई, तुम कौन हो? तुम्हारी पहचान क्या है? जिस पगडंडी पर चल रहे हो उसका श्रीगणेश कहां से होता है? क्या पोथियों में दबे अपने यथार्थ को पहचानना चाहते हो? उस चेहरे से रूबरू होना चाहते हो, जिसने तुम्हें जन्म दिया? उस परिवार का आभार व्यक्त करना चाहोगे जहां तुम्हारे अस्तित्व के बीज पड़े हुए हैं? अपने लिए जो सवाल हैं उनका उत्तर जानना चाहते हो तो जिसने तुम्हारी वंशावली सुरक्षित रख रखी है उसके दर्शन करो और उन्हें धन्यवाद दो। पहचानो अपने इन कृपालुओं को जिन्हें हमारी संस्कृति ने नाम दिया है राव, भाट, बारोट, जागा, याज्ञनिक, तीर्थ पुरोहित, जिन्हें आप और हम पंडे कहते हैं तथा रानी मंगा, हेलवा, पंजीकार, महापात्र, उपाध्याय भी।
आज यह लिखते समय मुझे मलकापुर याद आ रहा है। उसमें एक वकील थे जिनका परिवार रोठे के नाम से प्रख्यात है। उनके यहां एक देहाती आया जो गुजराती बोल रहा था। रोठे साहब को सम्बोधित करके कहने लगा बाप-दादा की पोथी सुनोगे? दो दिन बाद मलकापुर के अनेक लेवा पटेल बंधु एक स्थान पर एकत्रित हुए। सभी ने उस आगंतुक का स्वागत किया। फिर तो हर दिन एक परिवार में उक्त व्यक्ति के साथ आए चार-पांच लोग क्रम से पोथी पढ़ते थे। हर परिवार को यह बताते थे कि तुम मूलत: गुजरात के हो। एक बार अकाल पड़ा तो अपनी दमनियां (छोटी गाड़ियां) लेकिर सौराष्ट्र से चल पड़े। अनाज और पानी की तलाश में तुम जलगांव आए। कुल 16 दमनियों में से 11 भुसावल के रास्ते से विदर्भ में प्रवेश कर गईं। पांच अमलनेर की ओर बढ़ गईं। पोथी पढ़ने वाले हर परिवार को बता रहे थे कि तुम्हारी पीढ़ी में कौन-कौन थे और तुम किसके बेटे हो? तुम्हारा व्यवसाय क्या था? तुम्हारी कुलदेवी का नाम क्या है? हर घर की पोथी सुनाने में तीन दिन लग जाते थे। वे अंत में परिवार के बुजुर्ग से पूछते थे अब तुम्हारी अगली पीढ़ी जिसके नाम हमारे पास नहीं हैं उसे लिखवा दो। सम्पूर्ण लेवा पटेल समाज उनका सम्मान करता था और उनके खर्च आदि का भार वहन करता था। मैंने उन्हें देखकर कहा वकील साहब यह तो लेवा समाज के फाहियान और ह्वेनसांग हैं। उनके पास हर चीज की जानकारी है जिसे सुन कर हर कोई अभिभूत हो जाता था। इस पोथी वाले को देखकर मुझे कर्नल टोड याद आ गया। मैंने उनके चरण छुए और उनके इस ऐतिहासिक कार्य के लिए अभिवादन किया।
पोथी लिखने वाले भारत के हर क्षेत्र में हैं। उनकी लिपि और भाषा देखकर हर कोई दंग रह जाता है। वास्तव में तो ये हमारे भाषा शास्त्री हैं। भारत की बोलियां और हमारी जनजातियों की असंख्य विरासतें खतरे में हैं। यदि वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन संस्थान को इसी प्रकार बढ़ावा मिला तो हम अपना खोया हुआ पुराना इतिहास वापस लौटा सकेंगे, इसमें शंका नहीं। द
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