नहीं चल पा रहा आरक्षण का मजहबी दांव
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नहीं चल पा रहा आरक्षण का मजहबी दांव

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Feb 11, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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आवरण कथा 1

दिंनाक: 11 Feb 2012 22:23:39

उत्तर प्रदेश-विधानसभा चुनाव 2012

थ् कांग्रेसी चाल में नहीं फंस रहे मुसलमान

थ् “पीस पार्टी” कर रही सपा का नुकसान

थ् सपा की चुप्पी से पिछड़ों में उबाल

थ् माया की जातीय गोलबंदी भी नहीं बचा पाएगी ताज

थ् पिछड़ों व अन्य पिछड़ों में बढ़ रहा है भाजपा के प्रति रुझान

द लखनऊ से सुभाषचंद्र

उत्तर प्रदेश का चुनावी परिदृश्य बहुत तेजी से बदल रहा है। कांग्रेस को लगता था कि वह अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के 27 प्रतिशत आरक्षण में से साढ़े चार प्रतिशत (कोटे में कोटा) अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों को देकर उनका वोट ले लेगी, लेकिन उसका यह दांव पूरी तरह विफल होता दिख रहा है। केवल वोट के लिए “बांटो और राज करो” की उसकी कुटिल चाल को मुसलमानों का बड़ा वर्ग समझ      चुका है।

खल रही मुलायम की चुप्पी

कांग्रेस द्वारा आरक्षण के दांव से पस्त पिछड़ों को उनके तथाकथित रहनुमा मुलायम सिंह यादव की चुप्पी खल रही है। कोटे में कोटे की कांग्रेसी चाल से हतप्रभ मुलायम सिंह यादव ने उसका विरोध करने की बजाय मुसलमानों को नौ फीसदी आरक्षण की बात कहकर अपने वोट बैंक को दुखी कर दिया है। इसलिए वह भाजपा में अपनी संभावनाएं तलाशता दिख रहा है। भाजपा एकमात्र ऐसी पार्टी है जो आरक्षण में आरक्षण का खुला विरोध कर रही है। उमा भारती ने विरोध का बिगुल फूंका तो बसपा से छिटके पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा उसे तीखा स्वर देने में जुट गए। कुशवाहा हालांकि भाजपा में शामिल नहीं हैं, लेकिन अलग मंच से आरक्षण में आरक्षण का न केवल विरोध कर रहे हैं वरन् इस मुद्दे पर भाजपा की तारीफ करते हुए अपने समर्थकों से उसे वोट देने की अपील कर रहे हैं। पिछड़ों में उनकी बातों का असर देखा जा सकता है। वह बुंदेलखंड के रहने वाले हैं, वहां तो उनका समर्थक पिछड़ा वर्ग खुलकर भाजपा के समर्थन में आ गया है। इसके साथ पूरे प्रदेश में उनका आरक्षण विरोधी अभियान खासा असर डालता दिख रहा है।

कांग्रेस पस्त

प्रदेश के पहले चरण में विगत आठ फरवरी को जिन 55 सीटों पर चुनाव हुए, वहां कांग्रेसी दांव पूरी तरह नाकाम होता दिखा। बाराबंकी, बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा, बलरामपुर, फैजाबाद, अंबेडकर नगर, सीतापुर, सिद्धार्थनगर व बस्ती जिलों की सीटों पर मुसलमानों का सीधा झुकाव कांग्रेस से इतर दलों की ओर दिखा। कांग्रेस के एकमात्र उम्मीदवार पूर्व मंत्री अम्मार रिजवी (सीतापुर की सेउता सीट से प्रत्याशी) की ओर मुस्लिम झुकते दिखे। हालांकि उनका झुकाव व्यक्तिगत उनके कारण रहा। वे वहां उन्हें जिताने की हालत में भी नहीं दिखे क्योंकि समाज का शेष हिस्सा उनके विरोध में देखा गया। करीब दो दर्जन जिलों की चुनावी पड़ताल में फिलहाल कांग्रेस के लिए कोई अच्छी चुनावी संभावना नहीं दिखी। जिन 55 सीटों पर चुनाव हुए, वहां कांग्रेस को निराशा ही हाथ लगेगी। जबकि यहां से पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पास पांच सीटें हैं। केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा (गोंडा), विनय कुमार पांडेय (श्रावस्ती), पन्ना लाल पुनिया (बाराबंकी), जगदंबिका पाल (बस्ती) व निर्मल खत्री (फैजाबाद) जैसे दिग्गज इन्हीं इलाकों से जीते हैं। ये नेता अपने व्यक्तिगत प्रभाव से कोई सीट जिता ले गए तो बड़ी बात होगी। बाराबंकी की दरियाबाद सीट पर चुनाव लड़ रहे राकेश वर्मा (बेनी के पुत्र) की जीत की संभावना भी क्षीण दिखी। यहां पर राकेश तीसरे नंबर पर जाते दिखे।

“युवराज” की खीझ

कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी प्रदेश के चुनावी दौरे पर हैं। शुरुआती दौर में सरकार में आने का दावा कर रहे थे। चुनावी असलियत सामने आई तो होश उड़ गए। तथाकथित वंचितों के घर भोजन और रात्रि विश्राम का अभियान एक झटके में असरहीन हो गया। असलियत भांप कांग्रेसी  “युवराज” अब सत्ता में आने की बात न कर प्रदेश के विकास की बात करने लगे हैं। वाराणसी में पत्रकारों से बातचीत में वह अपने को काफी आक्रामक दिखाने की कोशिश करते दिखे। उनकी यह आक्रामकता खीझ की परिचायक ज्यादा थी। उन्होंने कहा कि पिछले 22 साल से विपक्ष के राज में प्रदेश पिछड़ गया। हमारे लिए जीत-हार का प्रश्न महत्वपूर्ण नहीं, हमारे लिए महत्वपूर्ण है प्रदेश का विकास। राहुल को संभवत: इस सच का पता चल गया है कि अमेठी, रायबरेली के आगे कांग्रेस के लिए शायद ही कोई संभावना है। कई स्थानों पर कड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।

मुखर है मतदाता

कांग्रेस के प्रति मुसलमानों की नाराजगी, मुलायम के प्रति पिछड़ों में गुस्सा और भाजपा के आरक्षण पर मुखर विरोध पर मतदाताओं ने खुलकर बोला। सिधौली (सीतापुर) के मोइनुद्दीन से बातचीत हुई तो उन्होंने कांग्रेस को विभाजनकारी पार्टी बताया, कहा कि आजादी के बाद समाज बांटने का ही काम कर रही है कांग्रेस। उसकी चाल को मुसलमान समझता है। वह उसे वोट नहीं देने वाला है। हालांकि मोइनुद्दीन ने केवल यह बताया कि उन्होंने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस के विरोध में जो जीतता दिखा, उसे वोट दिया। जिस सेउता सीट से अम्मार रिजवी कांग्रेस से उम्मीदवार हैं, वहां जितना उन्हें मुसलमानों का समर्थन मिलता दिखा, उससे अधिक पिछड़ों का विरोध झेलना पड़ा। वहां तो लड़ाई अम्मार बनाम अन्य हो गई है। पढ़े-लिखे डाक्टर अब्दुल ने कहा कि अम्मार को वोट देने का कोई मतलब नहीं, क्योंकि उप्र में कांग्रेस की सरकार तो बनने नहीं जा रही है। गोरखपुर की बांसगांव विधानसभा सीट सुरक्षित है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, खासकर गोरखपुर मंडल और उसके आसपास मुसलमान सपा, बसपा और कांग्रेस से दूर जाते दिख रहे हैं। पिछड़ों में भी बंटवारा देखा जा रहा है।

तेज हो रहा ध्रुवीकरण

डुमरियागंज में सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण देखा गया। यहां से हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश प्रभारी राघवेंद्र सिंह भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। योगी आदित्यनाथ कई सभाएं कर चुके हैं। गोरखपुर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता रवींद्र प्रताप कहते हैं कि आरक्षण का कार्ड और उस पर मुलायम सिंह की चुप्पी कांग्रेस-सपा को बड़ा नुकसान पहुंचाने जा रही है। बस्ती सदर निवासी रामपाल तो मुलायम सिंह की चुप्पी पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहते हैं, संभव है कि मुलायम सिंह जोड़-तोड़कर सरकार बना लें या मायावती फिर से सत्ता में आ जाएं, लेकिन आरक्षण पर इन लोगों का रवैया समाज को बड़ा नुकसान पहुंचाने वाला है। मेरठ निवासी विजय कुमार कहते हैं, मुलायम सिंह की चुप्पी चौंकाने वाली है। वह तो अपने को 54 प्रतिशत पिछड़ों का रहनुमा कहते आए हैं। उनके रुख से पिछड़ों में भारी दर्द है। मुलायम के प्रति उनका झुकाव कम होता जा रहा है।

चिंता की लकीरें

प्रदेश की चुनावी राजनीति में “पीस पार्टी” का उभार संभव है कि एक और विभाजनकारी प्रयास साबित हो, लेकिन मुसलमानों के उसके प्रति झुकाव से सपा-बसपा में चिंता की लकीरें साफ देखी जा रही हैं। सिधौली (सीतापुर) के पत्रकार विल्सन खान तो साफ कहते हैं कि “पीस” की ओर मुसलमानों के एक बड़े तबके का झुकाव दिख रहा है। प्रदेश के 18 प्रतिशत मुसलमानों में बुनकरों की संख्या करीब छह प्रतिशत है। फिलहाल कांग्रेस इस मामले में घाटे में है। वैसे भी कांग्रेस देश और समाज को बांटने का ही काम कर रही है। अब वह मुसलमानों के लिए विश्वसनीय नहीं रही।

बढ़ती भाजपा

भाजपा मुस्लिम आरक्षण और अन्य मामलों पर अपनी मुखरता के चलते तेजी से आगे बढ़ती दिख रही है। कुशवाहा प्रकरण पर विपक्ष द्वारा खड़ा किया गया विवाद शुरुआती दौर के बाद अब दम तोड़ता नजर आ रहा है। माया, कांग्रेस और मुलायम सिंह की शुद्ध जातीय गोलबंदी का प्रयास अब उन्हें ही नुकसान पहुंचाता दिख रहा है। उमा भारती, विनय कटियार आदि तो पहले से ही मुखर हैं, अपने अलग मंच से बाबू सिंह कुशवाहा का आरक्षण विरोधी मुखर स्वर समाज के बड़े तबके को इन तीनों सत्तालोलुप दलों के बारे में फिर से सोचने पर विवश कर रहा है। भाजपा इस प्रयास में है कि उसकी पिछली सीटों में बड़ी संख्या में बढ़ोतरी तो हो ही, उसका वोट प्रतिशत भी बढ़े ताकि 2014 के लोकसभा चुनाव में वह बड़ी पारी खेल सके। साल 2002 के विधानसभा चुनाव में उसे 88 सीटें मिली थीं, जबकि 2007 के विधानसभा चुनाव में 55 सीटों पर सिमट गई थी। इस चुनाव में जिस तरह के समीकरण बन रहे हैं, उसमें भाजपा को अपनी सीटों और मत प्रतिशत में खासी बढ़ोतरी की उम्मीद दिख रही है। भाजपा के पास अभी कुल मिलाकर करीब 18-19 प्रतिशत जनता का समर्थन है, उसे आशा है कि इस विधानसभा चुनाव में यह 25 फीसदी तक पहुंच जाएगा। इसके लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है और हिन्दी पट्टी के राज्यों से बड़ी संख्या में नेता व कार्यकर्ता उसके चुनाव प्रबंधन व प्रचार में जुट गए हैं। अकेले म.प्र. से ही 400 से ज्यादा नेता व कार्यकर्ता उ.प्र. में जमे हैं।द

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