सम्पादकीय
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सम्पादकीय
किसी तरह भी मर्यादा में जो तुम से बड़े हैं, वे तुम्हारे साथ समानता का व्यवहार करते हैं, तो उसे उनकी कृपा समझो, अपना अधिकार नहीं।
-कन्हैयालाल मिश्र “प्रभाकर” (जिन्दगी मुसकराई, पृ. 63)
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में जीत के लिए बेताब सोनिया कांग्रेस “मुस्लिम कार्ड” खेलने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, लेकिन दुर्भाग्य कि इस मामले में उसका हर पत्ता पिटता दिख रहा है। अब केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद सोनिया गांधी के आंसुओं पर तैरकर पार्टी की नैया पार लगाने की कोशिश में उतर आए हैं। खुर्शीद ने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सोनिया गांधी के आंसू सिर्फ आतंकवादियों के लिए फूट पड़ते हैं? और जिहादी आतंकवाद के शिकार हुए निर्दोष नागरिकों व उससे लड़ते शहीद हुए बहादुर जवानों के लिए उनके आंसू सूख जाते हैं? यह वही खुर्शीद हैं जो उ.प्र.चुनावों के मद्देनजर संप्रग सरकार के अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण में से अल्पसंख्यकों यानी मुस्लिमों को 4.5 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के फैसले को आगे ले जाकर 9 प्रतिशत कर दिए जाने का चुनावी वादा करते घूम रहे थे और चुनाव आयोग ने इस पर उन्हें आचार संहिता के उल्लंघन के लिए कड़ी फटकार लगाई। इस मामले में मुंह की खाने पर उन्होंने अब आजमगढ़ की एक सभा में सोनिया गांधी के आंसुओं का सहारा लेते हुए कहा है कि बटला हाउस कांड की तस्वीरें देखकर सोनिया गांधी रो पड़ी थीं। यानी मुठभेड़ में जिहादी आतंकवादियों के रूप में मारे गए मुस्लिम युवकों के लिए सोनिया गांधी की संवेदनाएं फूट पड़ीं। प्रकारांतर से वह अब चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं से सोनिया गांधी के आंसुओं की कीमत वोट के रूप में वसूलना चाहते हैं। कांग्रेस जानती है कि उ.प्र.में उसका मजहबी आरक्षण का पत्ता पिट गया है और अनेक मुसलमान ही इस कोशिश को विभाजनकारी मान रहे हैं, तो पार्टी नेता बेचैन हैं कि मुस्लिमों को बरगलाने के लिए और क्या तरीके अपनाए जाएं। खुर्शीद की “वकील” बुद्धि को सोनिया गांधी के आंसू ज्यादा असरदार लगे, लेकिन “दस जनपथ” के ही एक और सिपहसालार दिग्विजय सिंह ने इसके विरोध में तुरंत एक बयान जड़ दिया कि सोनिया गांधी नहीं रोई थीं, यह तो खुर्शीद की अपनी कही बात है। और सोनिया गांधी चुप हैं अपने आंसुओं की बाबत, उनकी तरफ से कोई खंडन-मंडन नहीं!
वोट के लिए मुस्लिम भावनाओं के साथ इससे बड़ा खिलवाड़ और क्या होगा? बटला हाउस कांड को कांग्रेस की तरफ से मुस्लिम भावनाएं भड़काने का किस तरह हथियार बनाया जाता रहा है, उस पर विडम्बना यह कि रणनीति पर पार्टी में ही एका नहीं। अब सलमान खुर्शीद और दिग्विजय सिंह आमने-सामने हैं, तो कुछ समय पूर्व दिग्विजय सिंह द्वारा मुठभेड़ काण्ड को फर्जी बताकर मुस्लिम युवकों के साथ अन्याय निरूपित करते हुए न्यायिक जांच की मांग उठाई गई थी, लेकिन तड़ से केन्द्रीय गृहमंत्री पी.चिदम्बरम ने जवाब दिया कि मुठभेड़ असली थी और उसकी अब किसी भी तरह की जांच की जरूरत नहीं है। यही दिग्विजय सिंह आजमगढ़ के गांव में जाकर मारे गए मुस्लिम युवकों के परिजनों को ढाढस बंधाते हुए उन्हें न्याय दिलवाने का वादा कर चुके हैं। बटला हाउस कांड को किस तरह कांग्रेस वोट राजनीति के लिए इस्तेमाल कर रही है, उसके नेताओं की मुस्लिमपरस्ती में एक-दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ साफ दिखती है और पार्टी का अंतद्र्वंद्व भी। लेकिन वोट और सत्ता के लिए कोई पार्टी इतनी गिर सकती है कि एक ओर तो वह मुस्लिम संवेदनाओं को खरोंचने में लगी है, जबकि दूसरी ओर देश के लिए गंभीर खतरा बन गए जिहादी आतंकवाद की सच्चाई से मुंह फेर रही है और इसके शिकार हुए हजारों निर्दोष नागरिकों की नृशंस हत्या व इससे निपटने में अपनी जान की बाजी लगा रहे देशभक्त जांबाज जवानों के लिए उसकी आंखें कभी नम नहीं होतीं। आस्ट्रेलिया में गिरफ्तार डा.हनीफ की चिंता में प्रधानमंत्री को रात भर नींद नहीं आती, लेकिन जिहादी आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए मोहन चंद्र शर्मा के लिए संवेदना का एक शब्द भी न तो प्रधानमंत्री के पास है, न सोनिया गांधी के और न उनके दिग्विजय सिंह व सलमान खुर्शीद जैसे सिपहसालारों के पास। बटला हाउस कांड उनके लिए सिर्फ मुस्लिम वोट कबाड़ने का औजार भर है, जिसे वे जब चाहे निकालकर भांजना शुरू कर देते हैं। लेकिन मुस्लिम इतने नादान नहीं हैं कि वे इनकी चालबाजियों को न समझ सकें। ये आंसू शायद ही उन्हें पिघला पाएं।
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