चुनाव आयोग की चुप्पी चिन्ताजनक
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संघ का “हौवा” खड़ा कर मुसलमानों को भड़काने के राहुल के बयान पर
नरेन्द्र सहगल
प्रधानमंत्री की कुर्सी की ओर नंगे पांव दौड़ रहे स्वर्गीय फिरोज गांधी के पौत्र कांग्रेसी “युवराज” चुनावी आचार संहिता की सभी मर्यादाओं और शिष्टाचारों की धज्जियां उड़ाकर ऐसे बयान दाग रहे हैं जिनसे उनके “दिग्विजयी दिमाग” में भर चुकी घृणित राजनीति का ही परिचय मिलता है। 10 जनपथ के खानदानी वफादार और सोनिया कांग्रेस के चुनावी खेवनहार दिग्विजय सिंह के नक्शे कदम पर चलते हुए राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भय दिखाकर मुस्लिम समाज को भड़काने, दबाने और भयभीत करने की चाल चली है। यह आदर्श चुनाव संहिता का खुला उल्लंघन नहीं तो और क्या है? देश की जागरूक जनता पूछ रही है कि चुनाव आयोग के अधिकारियों ने अभी तक राहुल गांधी पर कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की?
मुस्लिम वोटों की ठेकेदारी
इन दिनों उत्तर प्रदेश में चल रहे चुनावी घमासान को देखकर लगता है कि राजनीतिक दलों और नेताओं को मतदाताओं के अकाल का सामना करना पड़ रहा है। वोट संकट की इस मझधार को पार करने के लिए मुस्लिम वोटों को संकट मोचन मानकर सपा, बसपा और कांग्रेस अपने दांव चल रहे हैं। उत्तर प्रदेश में तो यह नजारा स्पष्ट दिख रहा है जहां मुस्लिम समाज को वोट के रूप में इस्तेमाल करने की अंधी दौड़ लगी हुई है। इस संदर्भ में सोनिया कांग्रेस ने तो सपा और बसपा की साम्प्रदायिक और जातिगत राजनीति के सभी कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए हैं। इस तुष्टीकरण स्पर्धा में शामिल सभी प्रतिभागियों को अड़ंगी लगाकर राहुल गांधी सबसे आगे निकलने की जल्दी में हैं।
जिस तरह सब्जी मंडी में ढेरी लगाकर सब्जी बेचने वाले जोर-जोर से आवाजें लगाकर ग्राहकों को बुलाते हैं, ठीक उसी प्रकार उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आरक्षण का शोर मचाकर सपा, बसपा और कांग्रेस के नेता मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने में लगे हैं। इस चुनावी सब्जी मंडी में राहुल गांधी की फड़ी से अभी तक मुस्लिम बहुल बुनकरों को पैकेज, अल्पसंख्यक आरक्षण और उत्तर प्रदेश की बदहाली की आवाजें आ रही थीं। परंतु इस अति उत्साहित कांग्रेसी “युवराज” ने गला फाड़कर एक नई आवाज लगाई है। राहुल के अनुसार मुस्लिम समाज की बदहाली के लिए संघ जिम्मेदार है और भ्रष्टाचार के खिलाफ हो रहे अण्णा आंदोलन के पीछे भी संघ की ही साजिश है।
कांग्रेसी सरकारों में संघी मोहरे?
गत 27 जनवरी को अपने नई दिल्ली निवास 12 तुगलक लेन में आयोजित दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश के उर्दू समाचार पत्रों के सम्पादकों की एक बैठक में राहुल गांधी ने कहा “संघ ने अपने मोहरे विभिन्न जगहों पर फिट कर रखे हैं जो मुस्लिम समाज की राह में रोड़े अटकाते हैं।” राहुल के अनुसार “साम्प्रदायिक” मानसिकता वाले अनेक अफसर मुसलमानों की शासन/प्रशासन में उचित भागीदारी नहीं होने देते। राहुल गांधी को इस प्रश्न का जवाब देना ही होगा कि कांग्रेस ने दिल्ली के तख्त पर अपने 50 साल से अधिक कब्जे के दौरान मुस्लिम समुदाय को इन “साम्प्रदायिक” मानसिकता वाले अफसरों से बचाया क्यों नहीं? तब ये कांग्रेसी क्या करते रहे?
ध्यान दें कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के 6 वर्ष के अतिरिक्त शेष सभी 6 दशकों में कांग्रेस के ही प्रधानमंत्री रहे हैं। कांग्रेस विरोधी सरकारों के प्रधानमंत्री सर्वश्री मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, चन्द्रशेखर, विश्वनाथ प्रताप सिंह, आई. के. गुजराल और एच.डी. देवेगौड़ा, ये सभी पुराने वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ही थे। अत: यह एक गंभीर प्रश्न है कि जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और डा.मनमोहन सिंह समेत उपरोक्त सभी दिग्गज कांग्रेसी महारथियों के नेतृत्व वाली सरकारों के रहते संघ अपने “मोहरे” फिट करने में सफल कैसे हो गया?
राहुल गांधी का खोजी दिमाग
वास्तव में राहुल गांधी को शासन-प्रशासन में फिट हुए “संघ के मोहरों” की खोज के लिए कोई विशिष्ट उपाधि मिलनी चाहिए। कांग्रेसी “युवराज” ने अपने वक्तव्य में यह कहकर भी अपनी खोजी क्षमता का परिचय दे डाला कि “साम्प्रदायिक शक्तियां” अल्पसंख्यकों को या तो भय का वातावरण बनाकर डराती हैं या फिर उन अफसरों के जरिए दबाती हैं जिन्हें उन्होंने ऊंची जगहों पर नियुक्त किया है।
राहुल ने यह भी जोड़ा कि इन्हीं साम्प्रदायिक अफसरों की वजह से निर्दोष मुस्लिम युवक जेलों में बंद हो जाते हैं। मालेगांव विस्फोट की बात करते हुए राहुल ने चर्चा छेड़ी कि ऐसे अफसर निर्दोष मुस्लिम युवकों को न्यायालय द्वारा बरी कर दिए जाने के बाद भी दोषी ही मानते हैं। मुस्लिम युवकों के मसीहा बन रहे राहुल यह क्यों भूल जाते हैं कि मालेगांव विस्फोट के समय महाराष्ट्र में कांग्रेस की ही सरकार थी। क्या संघ के “मोहरे” कांग्रेस सरकार पर भी हावी थे? इन्हें निकाल बाहर क्यों नहीं किया गया? क्या संघ के “मोहरों” के आगे कांग्रेसी सरकारें और नेता बौने पड़ जाते हैं? यदि ऐसी ही बात है तो फिर इन्हें एक दिन भी शासन-प्रशासन चलाने का अधिकार नहीं है।
देश का घोर अपमान
सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि किसी भी प्रकार के साम्प्रदायिक दंगों, उपद्रवों और धमाकों में येन-केन प्रकारेण संघ का हाथ तलाशने वाले दिग्विजय और चिदम्बरम जैसे कांग्रेसी शोधकत्र्ताओं को भी आज तक यह पता नहीं चला कि संघ वालों ने सारे देश के शासन-प्रशासन पर “कब्जा” कर रखा है और वे मुसलमानों को तरक्की नहीं करने देते। दिग्विजय जैसे घोर संघ विरोधियों को भी संघ द्वारा संचालित “भर्ती परीक्षा केन्द्र” अथवा “भर्ती दफ्तर” नजर नहीं आए जिनके जरिए संघ वालों ने साम्प्रदायिक तत्वों की भर्ती करके कांग्रेसी सरकारों में भी अपने मोहरे फिट कर दिए। कैसी विडम्बना है यह?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हौवा खड़ा करके मुस्लिम समुदाय के वोट खींचने की फिराक में चुनाव प्रचार कर रहे राहुल गांधी ने वास्तव में सारे हिन्दू समाज, प्रशासन, वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं और यहां तक कि मुस्लिम समुदाय का भी अपमान किया है। प्रशासनिक अधिकारियों पर अविश्वास जताते हुए उन पर सम्प्रदाय के आधार पर पक्षपात करने का गंभीर आरोप लगाया है। राहुल के अनुसार प्रशासनिक अधिकारी अल्पसंख्यकों को दबाने के लिए उन्हें भयभीत करते हैं। राहुल गांधी ने यह सनसनीखेज आरोप लगाकर उन प्रशासनिक संस्थाओं पर भी कीचड़ उछाला है जो चुनाव आयोग के तहत मतदान प्रक्रिया को संचालित करती हैं।
चुप क्यों है चुनाव आयोग?
कमाल है कि हर जगह संघ ने अपने “मोहरे” फिट करके मुस्लिम समाज के विकास के रास्ते रोक दिए। इतनी बड़ी मुस्लिम विरोधी साजिश की जानकारी राहुल गांधी ने आज तक छिपाए रखी। इसका पर्दाफाश सार्वजनिक रूप से क्यों नहीं किया गया? देश की किसी भी विधानसभा अथवा संसद में इस मुद्दे को क्यों नहीं उठाया गया? जब कुछ बम धमाकों में संघ के कार्यकत्र्ताओं पर झूठे आरोप लगाकर उन पर मुकदमे दायर किए जा सकते हैं तो ऐसे अफसर कैसे छूट गए जो संघ के मोहरे हैं? सोनिया निर्देशित सरकार के इशारे पर नाचने वाली देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई राहुल की इस ताजी खोज पर चुप क्यों बैठी है? सरकार के ही इशारे पर संघ को आतंकवादी संगठन साबित करने के रास्ते खोज रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने राहुल द्वारा संघ पर लगाए आरोपों पर सक्रियता क्यों नहीं दिखाई? अकेले क्यों पड़ गए कांग्रेस के युवराज?
जाहिर है कि सीबीआई, एनआईए समेत सभी कांग्रेसी नेता जानते हैं कि राहुल का यह बयान बचकाना है और महज मुस्लिम समुदाय के वोट हड़पने के लिए दिया गया है। इस पर कांग्रेसी नेताओं का मौन उनके दलगत स्वार्थों का परिचायक है। याद करें कि पिछले लोकसभा चुनाव में इन्हीं कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा के नेता वरुण गांधी पर हिन्दुओं को भड़काने और मुस्लिम समाज को डराने जैसा झूठा आरोप लगाकर शोर मचाया था और चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार के दौरान ही वरुण को जेल में पहुंचाने का इंतजाम कर दिया था। आज चुनाव आयोग किसके इशारे पर राहुल गांधी के मुस्लिम समुदाय को भड़काने के वक्तव्य पर खामोश है?
मुस्लिम नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया
वोटों के भूखे और सत्ता के लोभी कांग्रेसी नेता तो मुस्लिम समुदाय के थोक मतों की उम्मीद पालकर राहुल के समाजघातक बयान पर मौन साधे हुए हैं, परंतु अधिकांश वरिष्ठ मुस्लिम नेताओं ने अपनी मुखर प्रतिक्रिया व्यक्त कर दी है। जामा मस्जिद दिल्ली के इमाम मौलाना अहमद बुखारी ने लखनऊ में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि “कांग्रेस के दामन पर मुसलमानों के खून के धब्बे हैं। पचास साल तक शासन करने वाली कांग्रेस ने मुसलमानों को जान और माल की तबाही, बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी, अपमान और मायूसी के सिवा कुछ भी नहीं दिया।” इसी तरह “जमीयत उलमा ए हिंद” के प्रमुख मुहम्मद उस्मान कहते हैं, “राहुल के अनुसार अगर साम्प्रदायिक अधिकारियों के कारण मुसलमानों के हक मारे जा रहे हैं तो सवाल यह है कि आप क्या कर रहे थे?”
उधर “मजलिस उलमा ए हिंद” के महासचिव मौलाना कल्बे जव्वाद ने राहुल के बयान को गैर जिम्मेदाराना और हास्यास्पद करार देते हुए कहा है “यह बात अजीब लगती है कि कांग्रेस के राज में संघ परिवार ने मुसलमानों का हक मारा…इस बयान से लगता है कि संघ ने हुकूमत पर कब्जा कर लिया है। इसका मतलब तो यह हुआ कि मुसलमानों के साथ नाइंसाफी होती रही और कांग्रेस तमाशा देखती रही।”
सिखों का भी निरादर किया
अपनी विफलताओं, कमजोरियों और मजबूरियों को गैर कांग्रेसी राजनीतिक दलों विशेषतया मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के मत्थे मढ़ने में माहिर कांग्रेस के महामंत्री राहुल गांधी को राजनीति, देश, समाज और राष्ट्रीय समस्याओं की कितनी समझ है? इस सवाल का उत्तर उनके ताजे बयानों में मिलता है? पंजाब की एक चुनावी रैली में राहुल बोले, “यह ठीक है कि मेरी मां इटली से आई हैं परंतु इटली को कौन चला रहा है जानते हैं आप…पंजाब के लोग।” यह बात कहकर राहुल गांधी इटली, पंजाब और सोनिया में क्या तालमेल साबित करना चाहते हैं यह तो वही जानें।
यह ठीक है कि पंजाब के सिख मजदूर और किसान भारी संख्या में इटली में रहते हैं। देखा जाए तो राहुल ने पंजाबियों का उसी तरह अपमान किया है जैसा उन्होंने उत्तर प्रदेश के लोगों का निरादर यह कहकर किया था कि यहां के लोग कब तक पंजाब व महाराष्ट्र में भीख मांगने जाते रहेंगे। और अब तो राहुल ने यह कहकर देश के मुस्लिम वर्ग का अपमान कर दिया है कि उनकी तरक्की के रास्ते में साम्प्रदायिक प्रशासनिक अधिकारी रोड़ा अटकाते हैं। इस तरह कांग्रेसी “युवराज” ने मुस्लिम समुदाय की क्षमता और योग्यता को ही कटघरे में खड़ा करने का अत्यंत घटिया दुस्साहस किया है।
मुख्यधारा में आएं मुसलमान
मुस्लिम समुदाय के थोक मतों को अपनी ओर खींचने की एवज में कांग्रेसी नेताओं ने राजनीतिक शिष्टाचार और चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित आदर्श आचार संहिता का गला घोंटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विशेषतया उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा और बसपा ने मुसलमान मतदाताओं को लावारिस मछलियां समझ लिया है जिन्हें दबोचने के लिए तरह-तरह के जाल बिछाए जा रहे हैं। भाजपा के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने उत्तर प्रदेश के चुनावों के संदर्भ में ठीक ही कहा है “कांग्रेस, सपा व बसपा उत्तर प्रदेश के चुनावों को मुस्लिम गोलबंदी में उलझा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि उ.प्र.की 20 करोड़ आबादी में अल्पसंख्यकों (मुस्लिम समुदाय) के अलावा कोई मतदाता है ही नहीं।”
अब समय आ गया है जब भारतीय मुस्लिम समाज को अपने स्वाभिमान, क्षमता और योग्यता के आधार पर एकजुट होकर उन राजनीतिक दलों की साजिशों और इरादों को विफल कर देना चाहिए जो पिछले 6 दशकों से इस समुदाय को फुटबाल की तरह ठोकरें मारकर चुनावी मैच में अपनी जीत सुरक्षित करने का प्रयास करते रहे हैं। मुस्लिम समाज को धीरे-धीरे ही सही, अब यह समझ में आने लगा है कि कांग्रेस जैसे दल उनके जज्बात भड़काकर चुनावों में उनका इस्तेमाल करते हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे राष्ट्रवादी संगठन उनके शत्रु नहीं अपितु हितैषी हैं। संघ द्वारा प्रतिपादित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अभिन्न अंग हैं भारतीय मुसलमान। वे यहां के विशाल राष्ट्रीय समाज का हिस्सा हैं। वे अल्पसंख्यक न होकर राष्ट्र की मुख्य सामाजिक धारा के प्रवाह में शामिल हैं। मुस्लिम भाई मात्र वोट की वस्तु न बनकर भारत के देशभक्त नागरिक के नाते अपना सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। इसी रास्ते में भारत के सभी समुदायों की भलाई है। द
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