राज्यों से
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उत्तर प्रदेश/ शशि सिंह
चुनाव में मुस्लिमों को
विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों की राजनीति अब चरम सीमा पर है। इस खेल में सपा, बसपा और कांग्रेस पूरी तरह जुटी हुई हैं। पहले आरक्षण का चुग्गा और अब टिकटों के बंटवारे में एक वर्ग विशेष को प्राथमिकता, इस बात का संकेत है कि मुस्लिम वोट की खातिर राजनीतिक दल किस हद तक जा सकते हैं। इस बार इन तीनों दलों ने मुस्लिमों को पहले से अधिक टिकट देकर उपकृत करने की कोशिश की है।
समाजवादी पार्टी अपने को मुस्लिम वोटों की एकमात्र दावेदार बताती रही है। राम जन्मभूमि आंदोलन में कारसेवकों की हत्या कराने के बाद से कट्टरपंथी मुस्लिम वर्ग मुलायम सिंह का प्रशंसक व समर्थक रहा है। वह दो बार सत्ता में इसी वोट बैंक के बल पर रहे हैं। उनकी पार्टी का दावा है कि इस बार भी मुसलमान एकतरफा सपा को वोट करेगा। भारत माता को “डायन” कहने वाले आजम खां ने पार्टी में वापस आने के बाद से जहरीला भाषण देना शुरू कर दिया है। सपा को मुस्लिम वोटों के सामने अपने परम्परागत पिछड़े वोटों की भी चिंता नहीं है। अन्यथा जब कांग्रेस सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण में से 4.5 प्रतिशत आरक्षण पिछड़े मुस्लिमों के देने की घोषणा की तो उसे विरोध करना चाहिए था। लेकिन आजम खां के दबाव और मुस्लिम वोटों के लालच में उसने उसका विरोध करने की बजाय यह कहना शुरू कर दिया कि यह नाकाफी है। सत्ता में आने पर वह मुस्लिम आबादी के हिसाब से आरक्षण की व्यवस्था करेगी। उल्लेखनीय यह भी है कि समाजवादी पार्टी ने 2007 के विधानसभा चुनाव में 70 मुसलमानों को टिकट दिया था। इस बार उसने 80 मुसलमानों को टिकट दिया है। मुलायम का मुस्लिमों के प्रति यह झुकाव सपा को कितना फायदा पहुंचाएगा, यह तो समय बताएगा लेकिन उनकी घातक सोच समाज का बड़ा नुकसान कराएगी, यह तय है। –
जनता के बीच अलोकप्रिय हो चुकी बसपा सरकार को इस समय सबसे अधिक जरूरत मुस्लिम वोटों की ही है। शिक्षा और नौकरियों में मुस्लिमों को आरक्षण का पत्र मुख्यमंत्री मायावती पहले ही प्रधानमंत्री को लिख चुकी हैं। जब कांग्रेस ने अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षण में 4.5 प्रतिशत हिस्सा मुस्लिमों के लिए घोषित किया तो सबसे पहले मायावती ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह काफी नहीं है। यह भी जोड़ा कि उन्हें उनकी आबादी के हिसाब से 18 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए। उन्होंने इसके लिए संविधान संशोधन की भी वकालत की और यहां तक कहा कि उनकी पार्टी इस मामले में केन्द्र सरकार का समर्थन करेगी। अब जब टिकट देने की बारी आयी तो इस बार बसपा ने मुस्लिमों को मुस्लिमों को सर्वाधिक 85 टिकट दिए।
मुस्लिम वोटों के पीछे सोनिया पार्टी मानो पगला-सी गयी है। वैसे भी एक बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यह गैर-जिम्मेदाराना बयान दे चुके हैं कि इस देश के संसाधनों पर सबसे पहला हक मुसलमानों का है। सच्चर कमेटी का गठन कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने ही किया, जिसने मुसलमानों को हर क्षेत्र में प्राथमिकता देने की सिफारिश की है। सोनिया पार्टी की ही आंध्र प्रदेश सरकार मुसलमानों को आरक्षण दे चुकी है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले केन्द्र सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग के कोटे में से 4.5 प्रतिशत आरक्षण मुसलमानों को देने की घोषणा की। इस पर भी मन नहीं माना तो केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने उन्हें 9 प्रतिशत आरक्षण की वकालत की। कांग्रेस के एक महामंत्री दिग्विजय सिंह तो मुस्लिम वोटों के चक्कर में नई दिल्ली की बटला हाउस मुठभेड़ को ही फर्जी बताते घूम रहे हैं, जबकि उसमें दिल्ली पुलिस का एक जांबाज अधिकारी शहीद हो चुका है। यही दिग्विजय सिंह अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को “ओसामाजी” कह चुके हैं। इनकी नजर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और संत समाज “आतंकवाद के पोषक” हैं।
अब देखना है कि उत्तर प्रदेश की वोटों की राजनीति में ये तीनों मुस्लिमपरस्त दल किस तरह उनके वोटों की बोली लगाते हैं और इन्हें कितना फायदा मिलता है। संभव है कि इनमें से किसी एक दल को मुस्लिम वोट बहुतायत में मिल जाएं, लेकिन इस वोट राजनीति से देश व समाज का बड़ा नुकसान होना तय है।द
महाराष्ट्र/ द.वा.आंबुलकर
गोवंश की रक्षा से बचती कांग्रेस सरकार
महाराष्ट्र में जानवरों की सुरक्षा के लिए नियुक्त किये गए पशु सुरक्षा आयुक्त की अध्यक्षता वाली विशेष समिति ने सम्पूर्ण गोवंश (गाय, बैल व सांड) के साथ सभी जानवरों की सुरक्षा के लिए एक विस्तृत रपट दी है, लेकिन इस रपट पर अमल करने के मुद्दे को लेकर राज्य सरकार असमंजस की स्थिति में है। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन सरकार ने 1995 में राज्य विधानसभा में महाराष्ट्र प्राणी सुरक्षा (सुधार) विधेयक मंजूर किया था। जनवरी, 1996 में वह विधेयक राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजा गया, जो अब तक लंबित है। राज्य में सत्ता परिवर्तन होने के बाद और कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस की सरकार के सत्ता में आने के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। विधानसभा एवं विधान परिषद में भाजपा द्वारा समय-समय पर इस मुद्दे को लगातार उठाये जाने के बाद सन् 2006 में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार द्वारा इस विधेयक पर अमल करने के बारे में दोबारा राय पूछने की औपचारिकता निभाई, पर इस मामले में कुछ भी कार्रवाई न होने से मामला जस का तस रहा। फिर एक चाल के तहत सन् 2008 में राज्य सरकार ने राज्य के पशु संवर्धन आयुक्त की अध्यक्षता में एक समिति को महाराष्ट्र में गोवंश सहित सभी जानवरों की सुरक्षा के लिए स्थिति का आकलन कर रपट देने को कहा। पशु संवर्धन आयुक्त द्वारा गोवंश के साथ सभी जानवरों की हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की राय देने के कारण राज्य सरकार अब उलझ गई है।
सरकार को भेजी अपनी रपट में राज्य के पशु संवर्धन आयुक्त ने पूरे विवरण के साथ इस बात पर जोर दिया है कि राज्य में पशु सुरक्षा कानून पर अमल करने से किसी पर, किसी भी प्रकार का विपरीत असर नहीं होगा। रपट में यहां तक कहा गया है कि महाराष्ट्र में गाय एवं गोवंश की हत्या पर प्रतिबंध लगाने से उसका राज्य के किसानों एवं खेती के अलावा चमड़ा उद्योग या उससे संबद्ध किसी भी व्यवसाय पर कोई भी नकारात्मक असर नहीं होगा। रपट में इस बात की ओर भी राज्य सरकार का ध्यानाकर्षण कराया गया है कि एक ओर जहां महाराष्ट्र में गोवंश एवं पशु सुरक्षा कानून पर अमल काफी समय से लंबित है, वहीं गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में इस श्रेणी की पशु हत्या को प्रतिबंधित करने पर वहां की आर्थिक स्थिति पर कोई विपरीत असर नहीं हुआ है। रपट में यह भी कहा गया है कि केन्द्र सरकार की आयात-निर्यात नीति में भी गाय की हत्या कर उसे निर्यात करने को वरीयता न देने के कारण अन्तरराष्ट्रीय व्यापार के परिप्रेक्ष्य में भी उसका कोई विपरीत असर नहीं होगा।
पशु संवर्धन आयुक्त ने अपनी रपट में राज्य सरकार से यह आग्रह भी किया है कि राज्य में जानवरों, खासकर गोवंश की रक्षा तथा संरक्षण के लिए गोसेवा आयोग का गठन किया जाए, गोवंश की रक्षा के लिए पर्याप्त उपाय किये जाएं, गाय तथा गोवंश के जन्म, खरीद तथा बिक्री, यहां तक कि मृत्यु का पंजीकरण अनिवार्य किया जाए, गोवंश की अच्छी परवरिश हेतु घास एवं चारे के लिए खेती को सरकार द्वारा बढ़ावा दिया जाए, राज्य के सिंचाई व कृषि उपज क्षेत्र से 10 प्रतिशत जमीन जानवरों एवं गोवंश के लिए जरूरी चारे की उपज के लिए आवंटित की जाए।
राज्य विधानमंडल द्वारा 16 साल पहले पारित विधेयक को अमल में लाने की राज्य के पशु संवर्धन आयुक्त की इस रपट ने राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने राज्य में गोवंश तथा अन्य जानवरों को कानूनन सुरक्षा प्रदान करने के क्या नतीजे हो सकते हैं तथा ऐसा करने में कितना खर्चा आ सकता है, इन चीजों की जानकारी पाने की चेष्टा कर स्पष्ट कर दिया है कि राजनीतिक कारणों से यह मामला अभी भी लटका रह सकता है। द
केरल/ प्रदीप कुमार
भारतीय विचार केन्द्रम् को मिली
स्वामी विवेकानंद की ऐतिहासिक शैया
भारत इन दिनों स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयन्ती मना रहा है। ऐसे में उनके विचारों की संवाहक प्रतिष्ठित संस्था भारतीय विचार केन्द्रम् (केरल) के लिए यह बहुत सौभाग्य का अवसर है कि उसे ग्रेनाइट पत्थर की बनी वह शैया प्राप्त हुई जिस पर स्वामी विवेकानंद केरल की यात्रा के दौरान सोए थे। 1892 में केरल यात्रा के दौरान ही स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी में समुद्र के बीच स्थित उस शिला पर ध्यानावस्थ रहे, जिस पर आज विवेकानंद शिला स्मारक स्थापित है और जो सम्पूर्ण भारतवासियों और वैश्विक जगत को हिन्दुत्व की ऊर्जा का संदेश दे रहा है। कन्याकुमारी जाते समय सन् 1892 में तिरुअनंतपुरम के एक विद्वान श्री मनमानियम सुन्दरम् पिल्लै के घर पर स्वामी जी ने कुछ समय विश्राम किया था। इस परिवार के वर्तमान प्रमुख श्री पी.एस. रामास्वामी ने भारतीय विचार केन्द्रम के निदेशक व विचारक श्री पी. परमेश्वरन् को उस ऐतिहासिक शैया का अधिकार सौंपते हुए कहा कि अभी तक हमारे परिवार ने इस ऐतिहासिक शैया को सम्मान सहित सुरक्षित रखा। उन ऐतिहासिक दिनों के 111 वर्ष बाद हम इसे विचार केन्द्रम् को इस आशा और विश्वास से सौंप रहे हैं कि यहां आने वाले लोग राष्ट्र जागरण के लिए किए गए स्वामी विवेकानंद के योगदान को स्मरण रखें।
तिरुअनंतपुरम् के बाहरी छोर पर स्थित काराकुलम् से एक भव्य शोभायात्रा के बीच गत 11 जनवरी को यह ऐतिहासिक शैया कन्याकुमारी स्थित भारतीय विचार केन्द्रम् लायी गई। मार्ग में लोगों ने अनेक स्थानों पर पुष्पवर्षा कर स्वामी विवेकानंद के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की।द
भ्रष्ट हैं अच्युतानंदन भी!
वरिष्ठ माकपा नेता और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री श्री वी.एस. अच्युतानंदन सदैव दूसरे राजनेताओं को भ्रष्ट और स्वयं को साफ-सुथरा बताते थे। उनका दावा था कि सब राजनीतिक दलों, यहां तक कि उनकी पार्टी में भी उनके समान ईमानदार और कोई नहीं है। पर उनका दावा तब खोखला सिद्ध हो गया जब केरल के मुख्य सतर्कता निदेशक ने जांच अधिकारियों को इस बात की अनुमति दे दी कि वे कासरगोड़ में 2.33 एकड़ भूमि के अधिग्रहण से जुड़े मामले में पूर्व मुख्यमंत्री की भूमिका की जांच कर सकते हैं। आरोप है कि अपने मुख्यमंत्रित्व काल में अपने सगे-संबंधियों को लाभ पहुंचाने के लिए श्री वी.एस.अच्युतानंदन ने नियमों की अनदेखी कर भूमि का अधिग्रहण करवाया। जांच एजेंसियों ने इस मामले में पूर्व राजस्व मंत्री वी.एस. राजेन्द्रन को सह-आरोपी बनाया है। इनके साथ ही 4 प्रशासनिक अधिकारी (आई.ए.एस.), अच्युतानंदन के निजी सचिव सुरेश और भूमि प्राप्त करने वाले उनके संबंधी टी.के. सोमन को भी इस मामले में आरोपी बनाया गया है। यदि यह आरोप सिद्ध हो जाता है तो अच्युतानंदन को सात साल तक की सजा हो सकती है।
अच्युतानंदन के आरोपी बनते ही सत्तारूढ़ कांग्रेस ने उनसे विपक्ष के नेता पद से त्यागपत्र देने की मांग की है और कहा है कि इसमें सरकार का कुछ लेना-देना नहीं है। जबकि अच्युतानंदन का कहना है कि यह सब कांग्रेस नेतृत्व वाले संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) सरकार की साजिश है। पर आश्चर्यजनक ढंग से केरल के माकपाई इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। द
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