शरीर का मीठा जहर-मधुमेह
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डा. हर्ष वर्धन
एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)
कम मेहनत एवं अधिक से अधिक सुख-सुविधा उपलब्ध कराने की मानसिकता एवं जीवन शैली में व्यापक परिवर्तन के कारण हम प्रतिदिन बीमारियों के नजदीक पहुंचते जा रहे हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जब हमारी दिनचर्या, भोजन, विचार एवं कार्य, हमारे शरीर को संतुलित रख पाने में असमर्थ हो जाते हैं, तब शरीर में कोई न कोई विकार पैदा होना स्वाभाविक है। इनमें आपसी संतुलन ही शरीर की निरोगता का आधार है। मधुमेह, शुगर, डायबिटीज के नाम से जानी जाने वाली बीमारी कुछ परिस्थितियों को छोड़कर आलस्य एवं विलासितापूर्ण जीवन की देन मानी जाती है। किशोर से लेकर वृद्ध तक इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में 346 मिलियन लोग मधुमेह से ग्रसित हैं। वर्ष 2004 में 3.4 मिलियन लोगों की मृत्यु उच्च ब्लड शुगर से हुई। 80 प्रतिशत से अधिक मृत्यु मध्यम एवं कम आय वाले देशों में होती है। भारत के संदर्भ में देखें तो वर्ष 2007 में मधुमेह रोगियों की संख्या लगभग 4.65 करोड़ थी जो वर्ष 2025 तक 8.83 करोड़ हो जाने की संभावना है। आज जिस प्रकार से 'डायबिटीज' के रोगियों की संख्या बढ़ रही है, उससे समूचा चिकित्सा जगत आश्चर्यचकित है। एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ओमरान के अनुसार औद्योगीकरण, शहरीकरण, खान-पान में बदलाव, शारीरिक क्रियाकलाप, व्यसन एवं तनावपूर्ण जीवन से जीवन शैली में व्यापक परिवर्तन हुआ है, जिससे संचारी रोगों व कुपोषण संबंधी बीमारियों के स्थान पर 'डायबिटीज', हृदय रोग एवं कैंसर आदि बीमारियों को सुगमता से आने का आमंत्रण मिला है। एक अध्ययन के अनुसार सन् 1950 से पूर्व संचारी रोगों में प्लेग तथा कॉलरा मुख्य जानलेवा बीमारियां थीं, परन्तु 1950 के बाद असंक्रामक (नॉन कम्यूनिकेबल) प्रमुख जानलेवा बीमारियां डायबिटीज, कैंसर और हृदय रोग हैं।
ऊर्जा की आवश्यकता
हमें अपने शरीर की सभी प्रक्रियाओं को चलाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा ज्यादातर हमें कार्बोहाइड्रेट से प्राप्त होती है और हम कार्बोहाइड्रेट अपने आहार के माध्यम से लेते हैं तो हमारे रक्त में शुगर बढ़ती है। अगर यह मात्रा 100 मिलीलीटर रक्त में 180 मिलीग्राम से ज्यादा बढ़ जाती है तो यह पेशाब के रास्ते शरीर से निकलनी प्रारम्भ हो जाती है। शरीर के प्रमुख अंग 'पैन्क्रियाज' में बीटा सेल के द्वारा इन्सुलिन नाम का एक हारमोन पैदा होता है जो शरीर के लिए शुगर को ऊर्जा के उत्पादन में इस्तेमाल करता है। यह शरीर की कोशिकाओं के द्वारा ग्लूकोज की प्राप्ति को संभव करता है तथा रक्त में शुगर की मात्रा को बढ़ने नहीं देता और इसे सामान्य रखता है। मधुमेह में या तो शरीर पर्याप्त इन्सुलिन नहीं बना पाता या जो इन्सुलिन बनता है वह रक्त के शुगर को कम करने के लिए पर्याप्त गुण नहीं रखता। अगर प्रभावी इन्सुलिन की कमी हो तो रक्त में उपलब्ध शुगर का कोशिकाओं के द्वारा इस्तेमाल नहीं हो पाता तथा फिर से रक्त शुगर बढ़ जाती है। इससे बहुत सारे आवश्यक पोषक तत्वों का शरीर में मेटाबोलिज्म नहीं हो पाता तथा अनेक प्रकार के दुष्प्रभाव पैदा होते हैं। वर्षों तक रक्त में यदि ग्लूकोज का स्तर बढ़ा रहे तो प्रत्येक अंग की छोटी रक्त नलिकायें नष्ट हो जाती हैं, जिसे 'माइक्रो एंजियोपैथी' कहा जाता है। तंत्रिका तंत्र की खराबी को न्यूरोपैथी, गुर्दे की खराबी को 'नेफ्रोपैथी' तथा आंखों की खराबी रेटीनोपैथी कहलाती है। इसके अलावा हृदय पर भी इसका अतिक्रमण होते देर नहीं लगती है। आधुनिक इलाज के द्वारा मरीज अच्छे स्वास्थ्य को रखते हुए बीमारी से जुड़ी तकलीफों से दूर रह सकता है।
मधुमेह के प्रकार–
1. टाइप-1 मधुमेह (इंसुलिन आश्रित)
2. टाइप-2 मधुमेह (इंसुलिन अनाश्रित)
3. एम.आर.डी.एम. मधुमेह (मालन्यूट्रीशन रिलेटेड डायबिटीज मेलाइटस) (कुपोषणजनित)
4. जेस्टेशनल मधुमेह (गर्भावस्था के दौरान)
5. आई.जी.टी. मधुमेह (इम्पेयर्ड ग्लूकोज टॉलरेंस)
6. सेकण्डरी मधुमेह
टाइप-1 मधुमेह साधारणत: बच्चों व युवकों को प्रभावित करती है और इसमें शरीर में बहुत कम या न के बराबर इन्सुलिन पैदा होती है जिसके कारण ऐसे मरीजों को हर रोज इन्सुलिन के इंजेक्शन लगवाने पड़ते हैं। इस बीमारी का प्रकार तेजी से उभरता है। इस बीमारी में इन्सुलिन के इंजेक्शन बंद करने पर तकलीफ बहुत कष्टदायक हो जाती है तथा कई बार जान का खतरा पैदा करने वाली 'कीटोएसिडोसिस' जैसी कठिन परिस्थितियां भी पैदा हो जाती हैं, जिसमें व्यक्ति बेहोश हो जाता है।
टाइप-2 मधुमेह इन्सुलिन पर अनिर्भर होती और ज्यादातर बहुत ज्यादा वजन वाले मोटे लोगों को यह बीमारी होती है। लगभग 90 प्रतिशत मधुमेह के रोगी इसी से पीड़ित हैं। इस प्रकार के रोगियों के शरीर में इन्सुलिन पर्याप्त मात्रा में या अधिक बनती है तथा वह साधारण इन्सुलिन की तरह प्रभावी नही होती है। इस बीमारी के लक्षण धीरे-धीरे प्रारम्भ होते हैं और इस प्रकार की बीमारी में भोजन, व्यायाम तथा मुंह से लेने वाली मधुमेह की दवाइयों के माध्यम से ही शरीर में बढ़ी हुई रक्त शुगर काबू की जा सकती है।
एम.आर.डी.एम. मधुमेह कुपोषणजनित मधुमेह के रूप में जाना जाता है तथा भारत में 15-30 वर्ष के आयु के नवजवानों में पाया जाता है जोकि पतले दुबले होते हैं। इस बीमारी के प्रकार में 'पैन्क्रियाज' पर्याप्त मात्रा में इन्सुलिन पैदा नहीं कर पाता।
'जेस्टेशनल' मधुमेह गर्भावस्था के दौरान पाया जाता है। लगभग 2-3 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में भी कभी-कभी गर्भावस्था से संबंधित मधुमेह प्रकट हो जाता है और इस बीमारी से संबंधित कठिनाइयां गर्भावस्था के दौरान पैदा हो जाती हैं और ऐसी महिलाओं को बच्चा पैदा होने के बाद मधुमेह की बीमारी अपने पूरे स्वरूप में विकसित हो जाती है। इसलिए सभी गर्भवती महिलाओं को रक्त शुगर की जांच अवश्य करवानी चाहिए।
आई.जी.टी. मधुमेह में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते परन्तु ऐसे लोगों में भविष्य में मधुमेह होने की संभावना बनी रहती है। जब अन्य रोगों के साथ मधुमेह हो तो उसे सेकण्डरी मधुमेह कहा जाता है। इसमें अग्नाशय नष्ट हो जाता है और इंसुलिन का स्राव असामान्य हो जाता है।
खतरे के मुख्य कारण
यद्यपि मधुमेह की बीमारी के सही कारणों के बारे में पूरी तरह से नहीं कहा जा सकता है फिर भी वंशानुगत मोटापा, आरामदेह जिंदगी, बढ़ती हुई उम्र इत्यादि मधुमेह के पैदा होने के खतरे के लिए मुख्य कारण हैं। जो लोग बहुत ज्यादा खाते हैं और आरामदेह जिन्दगी व्यतीत करते हैं और फिर मोटापे का शिकार हो जाते हैं उनके शरीर में इन्सुलिन का प्रभाव रक्त शुगर कम करने में क्षीण हो जाता है। ज्यादातर मधुमेह के रोगियों को यह नहीं पता होता है कि वह इस बीमारी के शिकार हैं और किसी साधारण मेडिकल जांच के दौरान ही उन्हें इसके शरीर में विद्यमान होने का पता लगता है। साधारणत: एक स्वस्थ दिखने वाले व्यक्ति को बार-बार संक्रमण होता है तो उसे सबसे पहले मधुमेह की जांच करानी चाहिए। यदि बहुत अधिक प्यास लगना (रात में भी), बहुत अधिक भूख लगना, बहुत बार पेशाब आना, वजन का कम होते जाना, पैरों का सुन्न होना, जल्दी थक जाना तथा कटे हुए घाव के धीरे-धीरे ठीक होने, त्वचा में संक्रमण होने जैसे लक्षण उसके शरीर में हैं तो ऐसे में मधुमेह की तुरन्त जांच के लिए खून व पेशाब की खाली पेट और नाश्ता करने के दो घंटे बाद जांच अवश्य करानी चाहिए। जांच में ज्यादा रक्त शुगर का पता चलते ही तुरन्त चिकित्सक के पास जाना चाहिए। अगर चिकित्सक की सलाह हमने सावधानीपूर्वक पूरी उम्र मानी तो यह निश्चित है कि मधुमेह जैसी खतरनाक बीमारी के कारण भी हमारे जीवन का एक भी दिन कम नहीं हो पाएगा और शरीर के किसी भी अंग को यह नुकसान नहीं पहुंचा पाएगी।
देश के अधिकांश शहरी नागरिक मधुमेह के बारे में काफी जानकारी रखते हैं, परन्तु देश के दूर-दराज इलाकों में स्वास्थ्य जागरूकता एवं सूचना माध्यमों की अपर्याप्तता के कारण इस बीमारी के खतरे से लोग अनभिज्ञ हैं तथा उपरोक्त लक्षणों के परिलक्षित होने पर भी इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। इसलिए मधुमेह की बुनियादी जानकारी उन लोगों तक पहुंचाने की दृष्टि से ही मधुमेह की बुनियादी जानकारी पर चर्चा की गयी है। आगामी लेखों में मधुमेह के विविध पहलुओं पर भी चर्चा की जाएगी। क्रमश:….
(लेखक दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य एवं शिक्षा मंत्री रहे हैं।)
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