राष्ट्रभाषा हिन्दी की प्रासंगिकता और हमारा दायित्व' संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा
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प्रतिनिधि
दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वावधान में गत दिनों हिन्दी पखवाड़े की पूर्व संध्या पर व्राष्ट्रभाषा हिन्दी की प्रासंगिकता और हमारा दायित्वव् विषय पर संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।
सम्मेलन का उद्घाटन दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष डा. योगानन्द शास्त्री तथा विधायक प्रो. जगदीश मुखी ने संयुक्त रूप से किया। अध्यक्षता डा. पूरन चन्द टण्डन ने की, जबकि वक्ता के रूप में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के अध्यक्ष श्री दीनानाथ बत्रा एवं पाचजन्य के संपादक श्री बल्देव भाई शर्मा उपस्थित थे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री दीनानाथ बत्रा ने कहा कि आज का दिन हिन्दी के विलाप का दिन नहीं, बल्कि संकल्प का है। गांधी जी तथा विनोबा भावे जैसे विद्वानों ने कहा था व्यदि बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा दी जाए तो उनका सर्वांगीण विकास संभव हैव्। उन्होंने कहा कि हिन्दी मां की तरह है और मां के रास्ते में जो भी दीवार आए उसे हमें गिराना होगा।
श्री बल्देव भाई शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिन्दी हिन्दुस्थान की धड़कन है और जब किसी व्यक्ति की धड़कन रुक जाती है तो वह मृत हो जाता है। आज हिन्दी की स्थिति ऐसी ही है। उन्होंने कहा कि किसी की झूठन पर कोई राष्ट्र आगे नहीं बढ़ सकता। यदि पूरा राष्ट्र संकल्प के साथ खड़ा हो जाए तो हिन्दी की ऐसी दुर्दशा नहीं देखनी पडेगी। श्री शर्मा ने कहा कि हिन्दी के नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। हिन्दी राजनीति का प्रश्न नहीं, हमारी अस्मिता का प्रश्न है।
कार्यक्रम में श्रीमती इन्दिरा मोहन, श्री कृष्ण मित्र, श्री राजेश जैन चेतन, श्रीमती ऋतु गोयल, श्री जय सिंह आर्य, श्री रामदत्त मिश्र व्अनमोलव्, श्री विनम विनम्र, श्री विनीत पाण्डे, श्री कलाम भारती एवं श्री राधाकांत ने काव्य पाठ किया, जिसे सभी ने सराहा। इस अवसर पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव श्री अतुल कोठारी ने अतिथियों को सम्मेलन में उपस्थित गण्यमान्य नागरिकों की ओर से एक ज्ञापन दिया। समारोह में श्री बाबूराम गुप्ता, श्री गौरी शंकर भारद्वाज, डा. रामशरण गौड़, श्री रामगोपाल शर्मा, श्री अरुण बर्मन, श्री वीरेन्द्र कुमार (पूर्व राजदूत) सहित बड़ी संख्या में हिन्दी प्रेमी, पत्रकार एवं साहित्यकार उपस्थित थे।
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