|
अंक-सन्दर्भ 4 सितम्बर, 2011
काठ की हाण्डी दुबारा नहीं चढ़ती
विचारोत्तजक सम्पादकीय व्आन्दोलन पर सेकुलर हमलाव् कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के जनविरोधी चरित्र को पूरी तरह उजागर कर देता है। आजादी के बाद से अब तक यह पहला अवसर है जब 74 वर्षीय गांधीवादी समाजसेवी अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में देश का प्रत्येक वर्ग जाति, मत अथवा धर्म की परवाह किए बिना एक मंच पर खड़ा दिखाई दिया। परन्तु केन्द्र की इस भ्रष्ट एवं सत्तालोलुप सरकार ने अण्णा हजारे की इस देशहितकारी मुहिम में साम्प्रदायिकता व अगड़े-पिछड़ों का भ्रम फैलाकर जनता को गुमराह करने का असफल प्रयास किया।
-आर.सी. गुप्ता
द्वितीय-ए, 201, नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)
द प्रेरणादायक सम्पादकीय के लिए साधुवाद! आज हमें भेदभाव भुलाकर एक होना चाहिए और जो लोग देशहित में कार्य कर रहे हैं, उन्हें तन-मन-धन से सहयोग करना चाहिए। आज घर में बैठने का समय नहीं है, बल्कि बढ़-चढ़ कर देशहित में कार्य करने की आवश्यकता है। यदि हमारे पूर्वजों ने संघर्ष नहीं किया होता तो आज हम स्वतंत्र नहीं रहते।
-लक्ष्मी चन्द
गांव-बांध, डाक-भावगड़ी, तहसील-कसौली, जिला-सोलन-(हि.प्र.)
द कांग्रेसियों ने अण्णा हजारे के आन्दोलन की हवा निकालने के लिए क्या कुछ नहीं किया। किन्तु वे सफल नहीं रहे। पढ़े-लिखे मंत्रियों को यह आभास नहीं था कि पढ़ाई-लिखाई ही सब कुछ नहीं होती, इसमें दिमाग लगाने की भी आवश्यकता होती है। सरकार के मंत्री टकराव की नीति पर नहीं चलते तो अच्छा होता।
-वीरेन्द्र सिंह जरयाल
28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर, दिल्ली-110051
द आज आम आदमी भ्रष्टाचार से त्रस्त है और कालेधन के कारण परेशान है। इसलिए जब कभी भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ आवाज उठती है तब आम आदमी भी उठ खड़ा होता है। जनजागरण की निरन्तरता टूटे नहीं, इसका ध्यान रखना होगा।
-रामचन्द बाबानी
राम क्लाथ स्टोर, स्टेशन मार्ग नसरीराबाद, अजमेर (राजस्थान)
जीवनशैली बदलनी होगी
श्री देवेन्द्र स्वरूप का आलेख व्मैंने इतिहास को अंगड़ाई लेते देखाव् बताता है कि अण्णा को समर्थन पूरे भारत से मिला। देश का आम आदमी भ्रष्टाचार के नासूर से त्रस्त है। भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए केवल सरकारी तंत्र और राजनेताओं की नकेल कसने से कुछ नहीं होगा, बल्कि हमें अपनी जीवनशैली बदलनी होगी।
-मनोहर मंजुल
पिपल्या-बुजुर्ग, पश्चिम निमाड़-451225 (म.प्र.)
द लोकपाल सशक्त ही नहीं, सर्वशक्तिमान चाहिए। किन्तु जो कांग्रेस इस देश को वर्षों से लूट रही है, वह भला सर्वशक्तिमान लोकपाल क्यों नियुक्त करेगी? आने वाला समय ही बताएगा कि देश को लोकपाल मिलेगा या कांग्रेसपाल।
-बी.आर. ठाकुर
सी-115, संगम नगर, इन्दौर (म.प्र.)
करारा जवाब
श्री मनमोहन शर्मा के आलेख व्कांग्रेस की साम्प्रदायिक राजनीतिव् का सार यह है कि आम मुसलमानों ने स्वयंभू मुस्लिम नेताओं की बातों को न मान कर उन्हें करारा जवाब दिया है। भ्रष्टाचार और महंगाई से तो हर वर्ग परेशान है। फिर क्यों कुछ मुस्लिम नेता भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों का बहिष्कार करते हैं?
-हरेन्द्र प्रसाद साहा
नया टोला, कटिहार-854105 (बिहार)
द चर्चा सत्र में श्री राजनाथ सिंह व्सूर्यव् ने अपने लेख व्सुधरो या गद्दी छोड़ोव् में लिखा है कि कांग्रेस को कब यह समझ में आएगा कि काठ की हाण्डी बार-बार नहीं चढ़ती? जब कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन होता है तो कांग्रेस कहती है कि यह सब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का काम है। कांग्रेस जनभावना को नहीं देख पा रही है या जानबूझकर उसकी उपेक्षा कर रही है?
-राममोहन चंद्रवंशी
विट्ठल नगर, टिमरनी, जिला-हरदा-416228 (म.प्र.)
सत्य बाहर आए
पिछले दिनों मंथन स्तम्भ में बड़ा ही न्यायसंगत प्रश्न किया गया है कि व्क्या भारतीय बुद्धिजीवियों का यह ऐतिहासिक दायित्व नहीं है कि वे एकात्म राष्ट्रीय समाज के निर्माण में बाधा डालने वाली प्रवृत्तियों और विचारधारा की सही कारण-मीमांसा करें?व् नेहरू युग से सोनिया युग तक तथाकथित सेकुलरवादी लेखकों द्वारा ऐतिहासिक सत्य को छिपाया जाता रहा है। इसे बाहर लाना आवश्यक है।
-क्षत्रिय देवलाल
उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया, कोडरमा (झारखण्ड)
न्यायालय का लट्ठ
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से दिए अपने भाषण में कहा कि भ्रष्टाचार दूर करने के लिए सरकार के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। प्रधानमंत्री जी शायद यह भूल गए कि उनके हाथ में जादू की छड़ी नहीं कानून का डंडा है जो अगर असरदार ढंग से चलता रहे तो भ्रष्टाचार ज्यादा देर टिक नहीं सकता। लेकिन सरकार यह डंडा तभी चलाती है, जब सिर पर सर्वोच्च न्यायालय का लट्ठ पड़ता है।
-अरुण मित्र
324, राम नगर
दिल्ली-110051
द प्रधानमंत्री का भाषण बहुत ही नीरस था। भाषण में भ्रष्टाचार पर लगाम न लगाने की बात कह कर, भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलने वालों को ही नसीहत दी गई। बाद में इसका जवाब भी लोगों ने दे दिया।
-विष्णु प्रकाश जिंदल
4141, चौकड़ी मोहल्ला नसीराबाद (राज.)
मन्दिरों पर सरकारी कब्जा
हिन्दू धर्म से विमुख रहने वाले नेहरू की सरकार ने 1951 में एक कानून व्द हिन्दू रिलीजियस एंड चैरिटेबल ऐण्डोमेंट एक्टव् बनाया। इस कानून के द्वारा राज्य सरकारों को हिन्दुओं के मन्दिरों का अधिग्रहण कर उन पर और उनकी सम्पत्तियों पर पूर्ण अधिकार करने की अनुमति दी गई। इस कानून के अनुसार राज्य सरकारें मन्दिरों की चल-अचल सम्पत्तियों को बेच कर उस धन का जैसे चाहें, वैसे उपयोग कर सकती हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि यह कानून केवल हिन्दुओं के मन्दिरों के अधिग्रहण के लिए ही बनाया गया। मुस्लिम, ईसाई आदि अन्य मतावलम्बियों के पूजा स्थलों का अधिग्रहण कोई भी सरकार नहीं कर सकती। यह आरोप किसी मन्दिर के अधिकारी ने नहीं लगाया है, बल्कि एक विदेशी लेखक स्टीफन कनाप्प ने अपनी पुस्तक व्क्राइम्स एगेंस्ट इण्डिया एण्ड द नीड टू प्रोटेक्ट एन्सियेंट वैदिक ट्रडीशनव् (भारत के विरुद्ध अपराध और प्राचीन भारतीय संस्कृति को बचाने की आवश्यकता) में लगाया है। यह पुस्तक अमरीका में प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक में उपलब्ध जानकारी से लोगों का मन दु:ख, आक्रोश और क्रोध से भर उठता है।
उदाहरण के लिए देखें कि उपरोक्त कानून के अधीन आन्ध्र प्रदेश में लगभग 43 हजार मन्दिर सरकार के कब्जे में आ चुके हैं और इन मन्दिरों से प्राप्त आय का केवल 18 प्रतिशत धन इन मन्दिरों के उद्देश्यों पर व्यय किया जाता है और शेष 82 प्रतिशत धन अन्य अघोषित कार्यों पर व्यय किया जाता है। इस विषय में विश्वप्रसिद्ध तिरुमाला तिरुपति मन्दिर को भी नहीं बख्शा गया है। कनाप्प के अनुसार इस मन्दिर में प्रतिवर्ष 3100 करोड़ रुपए से अधिक की राशि एकत्रित होती है और स्वयं राज्य सरकार ने इस आरोप से इनकार नहीं किया है कि इसमें से 85 प्रतिशत राशि राज्यकोष में स्थानान्तरित कर दी जाती है, जिसका अधिकतर भाग ऐसे कार्यों में व्यय किया जाता है, जिनका हिन्दू समाज से कोई संबंध नहीं है। क्या ये कार्य ऐसे हैं, जिनके लिए भक्त लोग मन्दिरों में अपनी भेंट चढ़ाते हैं? एक दूसरा आरोप यह है कि आन्ध्र सरकार ने एक गोल्फ कोर्स के निर्माण के लिए कम से कम दस मन्दिरों के ध्वंस की अनुमति दे दी थी। कनाप्प लिखते हैं कि कल्पना करें कि यदि दस मस्जिदें गिरा दी जातीं तो कैसी हायतौबा मचती? कर्नाटक में लगभग 2 लाख मन्दिरों से 79 करोड़ रुपए सरकार ने उगाहे थे, जिनमें से मन्दिरों के रख रखाव के लिए केवल सात करोड़ रुपए दिये गये तथा मुस्लिम मदरसों और हज-सहायता के लिए 59 करोड़ एवं चर्चों के लिए लगभग 13 करोड़ रुपए खर्च किये गये। वे लिखते हैं कि 2 लाख मन्दिरों में से 25 प्रतिशत अर्थात् लगभग 50 हजार मन्दिर धनाभाव के कारण बन्द हो जाएंगे। इसका एक मात्र कारण, जिससे सरकार अपनी लूट जारी रखे हुए है, यह है कि इसे रोकने के लिए हिन्दू जनता दृढ़तापूर्वक खड़ी नहीं हुई है। इसके पश्चात् वे केरल की बात करते हैं, जहां गुरुवायूर मन्दिर के कोष से 45 हिन्दू मन्दिरों के सुधार हेतु धन देने से इनकार करके उसे वहां की सरकार राज्य की दूसरी योजनाओं में व्यय करती है। अयप्पा मन्दिर की बहुत सी भूमि हड़प ली गई है और सबरीमाला के निकट वनक्षेत्र की हजारों एकड़ भूमि पर चर्च द्वारा कब्जा कर लिया गया है।
एक आरोप यह भी है कि केरल की पिछली वामपंथी सरकार एक अध्यादेश द्वारा ट्रावनकोर और कोचीन के स्वयात्तशासी देवास्म बोर्डों को समाप्त कर 1800 हिन्दू मन्दिरों की सीमित स्वतंत्र सत्ता का भी अपहरण करना चाहती थी। लेखक के अनुसार अब तो महाराष्ट्र सरकार भी राज्य के लगभग 4,50,000 मन्दिरों का अधिग्रहण कर उनसे प्राप्त भारी धनराशि से अपने राज्य के दिवालियेपन की स्थिति सुधारना चाहती है। और इन सबसे ऊपर उड़ीसा सरकार जगन्नाथ मंदिर की 70,000 एकड़ से अधिक भूमि को बेचना चाहती है। इस पर राज्य सरकार यह बहाना बनाती है कि प्राप्त भारी धनराशि से वह उड़ीसा के मन्दिरों की आर्थिक दुरावस्था को सुधार सकेगी। जबकि इन मन्दिरों की आर्थिक दुरावस्था किसी और ने नहीं, बल्कि स्वयं सरकार ने ही मन्दिरों की परिसम्पत्तियों के अपने कुप्रबंध द्वारा उत्पन्न की है। वे कहते हैं कि स्वतंत्र और प्रजातांत्रिक दुनिया में कहीं भी, कोई भी सरकार देश के लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करते हुए धार्मिक संस्थाओं का प्रबंधन, नियमन और शोषण नहीं करती, परन्तु भारत में यह सब कुछ हो रहा है।
-प्रो. जयदेव आर्य
249, कादम्बरी अपार्टमेंट, सेक्टर-9, रोहिणी, दिल्ली-110085
टिप्पणियाँ