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उत्तर प्रदेश
शशि सिंह
उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं। इन चुनावों के मद्देनजर मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने प्रदेश के मुसलमानों के सामने अब आरक्षण का चुग्गा फेंका है। मायावती की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की इस राजनीति में यहां का मुसलमान कितना फंसता है यह तो समय ही बताएगा, पर इतना जरूर है कि मायावती ने केन्द्र में सत्तारूढ़ और उत्तर प्रदेश में अपना राजनीतिक वजूद खोज रही कांग्रेस को बैठे-बिठाये एक मुद्दा थमा दिया है। इसीलिए जैसे ही मायावती ने मुसलमानों को आरक्षण देने की वकालत करते हुए केन्द्र सरकार को पत्र लिखा, कांग्रेस ने उसे लपक लिया और कहा- हां, मुसलमानों को आरक्षण देने के हम भी हिमायती हैं, भले ही उसके लिए संविधान में संशोधन ही क्यों न करना पड़े।
मायावती का पत्र
उ.प्र. की मुख्यमंत्री मायावती ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को पत्र भेजकर कहा है कि देश में हर तरह से पिछड़े मुसलमानों को नौकरियों समेत अन्य क्षेत्रों में आरक्षण दिया जाए, चाहे इसके लिए संविधान में संशोधन ही क्यों न करना पड़े। उन्होंने कहा कि संविधान संशोधन के मामले में वह केन्द्र सरकार का साथ देंगी। मुख्यमंत्री ने लिखा कि मुसलमानों की आर्थिक स्थिति में यदि परिवर्तन लाना है तो शिक्षा, सेवा और जीवन के अन्य सभी क्षेत्रों में उन्हें आगे बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। उन्होंने सच्चर कमेटी के सुझावों को लागू करने के साथ ही साम्प्रदायिक हिंसा की रोकथाम और उस पर नियंत्रण की आवश्यकता पर बल दिया।
केन्द्र ने लपका मुद्दा
इधर मायावती का पत्र लिखना था कि उधर केन्द्र ने इस मुद्दे को लपक लिया। मानो केन्द्र सरकार को इस मुद्दे पर किसी के सहयोग की पहले से ही दरकार थी। यह वही केन्द्र सरकार है जिसके प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने कुछ साल पहले कहा था कि इस देश के संसाधनों पर सबसे पहला हक अल्पसंख्यकों का है। अल्पसंख्यक से उनका मतलब मुसलमानों से ही था। तब उनकी काफी तीखी आलोचना हुई थी। उसी केन्द्र सरकार ने हाल ही में सांप्रदायिक व लक्षित हिंसा निरोधी विधेयक का मसौदा भी राष्ट्रीय एकता परिषद में पेश किया, जिसका चौतरफा विरोध हुआ और वह औंधे मुंह गिर पड़ा। यही केन्द्र सरकार अपने द्वारा गठित सच्चर कमेटी की रपट लागू करने के लिए बेताब है। इसीलिए केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि केन्द्र सरकार मुसलमानों के लिए आंध्र प्रदेश की तर्ज पर देशभर में आरक्षण के बारे में सोच रही है। यहां यह बताते चलें कि आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार राज्य की नौकरियों में पांच प्रतिशत आरक्षण मुसलमानों को दे चुकी है।
वोट बैंक के मारे ये बेचारे
चाहे केन्द्र सरकार हो या उ.प्र. की मायावती सरकार, सभी को एकमुश्त मुस्लिम वोटों की दरकार है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव अप्रैल-मई (2012) में संभावित हैं। यहां एक तरफ मायावती को दूसरी बार सत्ता की चाहत है तो 1990 से प्रदेश की राजनीतिक जमीन से बेदखल कांग्रेस 20 साल बाद पुन: पांव जमाने की कोशिश कर रही है। देश में सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले जिलों में से 20 जिले उत्तर प्रदेश में ही हैं। यहां की करीब 100 विधानसभा सीटें तथा 15 से अधिक लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां एकजुट मुस्लिम वोट जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, मेरठ, शाहजहांपुर, बागपत, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, बरेली, बाराबंकी, जेपीनगर, बुलंदशहर आदि जिलों में यह समुदाय निर्णायक स्थिति में है। इधर मुसलमानों के मसीहा कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी मुसलमानों को पार्टी की ओर मोड़ने की मुहिम में जुट गई है। सपा में वापसी के बाद मोहम्मद आजम खां लगातार इसी कोशिश में जुटे हैं।
सच तो यह है
मुसलमानों की हिमायत करने वाली मायावती वस्तुत: मुसलमानों की हितैषी नहीं हैं। उन्होंने तो तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की सरकार (2002) द्वारा बनाए गए उस कानून को ही पलट दिया था जो अति पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने का पक्षधर था। जब राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने आरक्षण के भीतर आरक्षण की नीति बनाई थी। उसमें अन्य पिछड़े वर्गों को मिलने वाले आरक्षण में अति पिछड़े तथा आरक्षण का समुचित लाभ न उठा सकने वाली जातियों के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था थी। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता ह्मदय नारायण दीक्षित कहते हैं कि भाजपा की सरकार ने पिछड़े वर्गों की तीन सूचियां बनवाई थीं। इसमें से तीसरी सूची वालों को सबसे ज्यादा आरक्षण देने की बात कही गई थी। इस तीसरी सूची में 35 अति पिछड़ी मुस्लिम जातियों को शामिल किया गया था। उसमें पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण की गारंटी थी।
उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यकबहुल 21 जिलों में केन्द्र सरकार ने सड़क, पेयजल, स्कूल व औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) की व्यवस्था करवाने के लिए 356 करोड़ रु. दिए लेकिन मायावती सरकार ने उस धन का इस्तेमाल ही नहीं किया। यह धन बीते तीन साल में दिया गया था। मायावती करीब साढ़े चार साल से सत्ता में हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी कहते हैं कि मायावती राज में 40 हजार से अधिक अल्पसंख्यकों पर एससी-एसटी कानून के तहत मुकदमे दर्ज कराए गए हैं। अगर वह मुसलमानों की हितचिंतक हैं तो इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया? अपने का मुसलमानों का रहनुमा बताने वाली सपा का कहना है कि मायावती की मुसलमानों को रिझाने की कोशिश विफल रहेगी। सपा नेता और विधान परिषद में विपक्ष के नेता अहमद हसन तो यहां तक कहते हैं कि मायावती शासन में 33 हजार सिपाहियों की भर्ती हुई, इनमें केवल 650 मुसलमान सिपाहियों की ही भर्ती की गई, जबकि सपा के शासनकाल में पुलिस भर्ती में मुसलमानों की संख्या 14 प्रतिशत थी।
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