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देवेन्द्र कुमार मिश्रासींचकर रक्त से जमीं कौन सा पौधा उगा रहे हो अपने ही घर में कैसी सेंध लगा रहे हो, जीत रहे हो जग को या मिटा रहे हो बैठी हुई डाल पे कुल्हाड़ा चला रहे हो,जीत नहीं हार है वो जिससे जग रो जाये जीत तो वो है कि बैरी भी अपना हो जाये जग को जीतना क्या दिलों को जीत लो युद्ध न हो ऐसा कोई बीज लो23
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