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जम्मू और कर्नाटक की जनता ने छद्म सेकुलर राजनीति को धता बताते हुए यह दो टूक संदेश दे दिया है कि राजनीति की दिशा को राष्ट्रहितोन्मुख बनाने के लिए हिन्दुत्वनिष्ठ समाज का संगठित और जाग्रत होना एक महत्वपूर्ण कारक है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव का परिणाम जहां अलगाववादी-राष्ट्रविरोधी ताकतों के मुंह पर तमाचा है, वहीं जम्मू क्षेत्र की जनता ने यह दिखा दिया है कि राष्ट्रहित और राष्ट्रीय अस्मिता पर आघात करने वाली छद्म सेकुलर राजनीति के घुटने टिकवाए जा सकते हैं और चुनाव के माध्यम से उसे यह सबक सिखाया जा सकता है कि वोट बैंक की आड़ में हिन्दू हितों की अनदेखी अब बर्दाश्त नहीं होगी। अमरनाथ यात्रा पर चोट करने वाली पीडीपी व कांग्रेस की गठजोड़ सरकार के खिलाफ जम्मू क्षेत्र के सभी वर्गों-समुदायों ने एकजुट होकर जो आक्रोश व्यक्त किया था, उस पर इन विधानसभा चुनावों के दौरान जनता ने मुहर लगा दी और हिन्दुत्व विरोधी राजनीतिक ताकतों के पैर उखाड़ दिए। अमरनाथ आंदोलन ने जम्मू क्षेत्र के साथ गत 6 दशकों से हो रहे कुटिल राजनीतिक भेदभाव के विरुद्ध भी जनचेतना जगाई, और अब मतदाता ने यह भी रेखांकित कर दिया है कि घाटी में मुस्लिमपरस्त राजनीति को परवान चढ़ाने के लिए जम्मू व लद्दाख क्षेत्रों के हितों की जो बलि चढ़ाई जाती रही है, सरकारें इससे बाज आएं और जानें कि घाटी के बाहर भी राज्य के इन दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों में जम्मू-कश्मीर राज्य का बड़ा हिस्सा बसता है, इनके विकास और हितों की अनदेखी करना उन्हें भारी पड़ सकता है। लेकिन जनता को सचेत रहना होगा क्योंकि इस बार नया रूप धरकर वे ही अवसरवादी ताकतें फिर सत्तारूढ़ हो रही हैं।उधर कर्नाटक में हुए 8 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनावों में भी कांग्रेस व जनता दल (एस) की सेकुलर राजनीति को मुंह की खानी पड़ी जब सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने 5 क्षेत्रों में विजय दर्ज कर विधानसभा में अपना पूर्ण बहुमत स्थापित कर लिया। पिछले दिनों कर्नाटक में हुई कुछ चर्च विरोधी घटनाओं को इन दलों ने हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के मत्थे मढ़ते हुए भाजपा सरकार के विरुद्ध भी खूब जहर उगला था और सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी साबित करने की कोशिश की थी। छद्म सेकुलर राजनेताओं व वामदलों ने राष्ट्रीय स्तर पर भी इस मुद्दे को खूब उछाला, लेकिन कर्नाटक की जनता ने उस दुष्प्रचार को नकार दिया है, जबकि कांग्रेस चुनाव प्रचार में भाजपा को सबक सिखाने व उसकी सरकार के मात्र कुछ माह के निष्पादन पर फैसला लेने का लगातार आह्वान करती रही। जनता ने न केवल भाजपा सरकार के सुशासन, बल्कि उसकी नीतियों को भी हरी झण्डी दे दी है।जम्मू व कर्नाटक का संदेश वस्तुत: भाजपा के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है कि उसे न केवल इस बात की चिंता करनी पड़ेगी कि उसकी सरकारें जनमानस पर जनोन्मुख, भ्रष्टाचार मुक्त, पारदर्शी व राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों पर प्रखर सुशासन की स्पष्ट छाप छोड़ें, बल्कि सत्ता व वोट की राजनीति से अलिप्त रहकर हिन्दूहितों का संवर्धन करें। जम्मू में 1 से 11 तक पहुंचाकर एक बड़ी जिम्मेदारी भाजपा के कंधों पर डाली गई है कि वह सत्ता स्वार्थों व अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की गलियों में भटकती राजनीति को शुचिता व राष्ट्रहित का संस्कार दे तथा हिन्दुत्व के खिलाफ षड्यंत्र रचने वाली व उसका तिरस्कार करने वाली राजनीति को निष्प्रभावी करे। तभी भाजपा “ए पार्टी विद् ए डिफरेंस” की अपनी अवधारणा को परिपुष्ट कर सकेगी।8
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