|
1857 के महासमर की व्यापकता-2ब्रिटिश अनुगामी वामपंथी इतिहासकारडा. सतीश चन्द्र मित्तलकुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में प्राध्यापक रहे डा. सतीश चन्द्र मित्तल द्वारा लिखित इतिहास के विभिन्न आयामों पर “इतिहास दृष्टि” स्तंभ के अंतर्गत 1857 के महासमर की व्यापकता की दूसरी किस्त प्रस्तुत है। -सं.दुर्भाग्य से अधिकतर भारतीय विद्वान भी अंग्रेजों की इस तथ्यहीन मानसिकता के शिकार हुए। उन्होंने बिना किसी खोज के ब्रिटिश कूटनीतिज्ञ विचार को ऐतिहासिक सच मान लिया। यहां यह उल्लेखनीय है कि 1885 में कांग्रेस की स्थापना के प्रेरक ए.ओ. ह्रूम थे, जो 1857 के भयंकर संघर्ष में डिप्टी कमिश्नर होते हुए भी महिला वेश में भाग गये थे, उन्होंने कांग्रेस की स्थापना से पूर्व लगभग 3000 गुप्त दस्तावेजों को पढ़ा था, जिसमें भारत में पुन: एक भयंकर हिंसात्मक विस्फोट की आशंका जताई गई थी। वह कांग्रेस की स्थापना के पश्चात् भी 1906 ई. तक इसके एकमात्र महामंत्री रहे थे। अत: कांग्रेस हमेशा अपने मंचों से देश के क्रांतिकारियों की गतिविधियों की उपेक्षा करती रही। वामपंथी इतिहासकारों ने इस दृष्टि से अपने को ब्रिटिश अनुगामी सिद्ध किया। उन्होंने बिना खोज किये, ब्रिटिश विकृत सोच को मान्यता देते हुए लिखा कि यह क्रांति दक्षिण भारत व पश्चिम भारत के अधिकतर भागों में नहीं फैली। उन्होंने लिखा कि मद्रास, बम्बई, बंगाल तथा पश्चिमी पंजाब की जनता विद्रोहियों से हमदर्दी रखती थी, फिर भी ये प्राय: प्रभावित न थे। इनके अनुसार मद्रास सेना पूर्णत: वफादार रही। आधुनिक खोजों के आधार पर उपरोक्त कथन को खोखला तथाक तर्कहीन कहा जा सकता है। अंग्रेजों द्वारा गढ़ा गया उपरोक्त मिथक पूर्णत: गलत, काल्पनिक तथा तथ्यहीन है।मोटे रूप से यदि इस महासमर का सर्वेक्षण करें तो इसका क्षेत्र त्रिपुरा से लेकर गोवा तक तथा पंजाब से केरल तक विस्तृत रहा। इसकी व्यापकता की जानकारी के लिए कुछ तथ्य इस प्रकार हैं-उत्तरी भारत में विस्तारमहासमर का प्रारंभ 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में मंगल पाण्डे नामक एक देशभक्त सैनिक के चर्बी के प्रयोग से खोले जाने वाले कारतूसों के मना करने पर हुआ। 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई। यह इस महासमर में पहली बलि थी। मेरठ तथा दिल्ली के महा संघर्ष से कलकत्ता, असम, त्रिपुरा में भय व संघर्ष का वातावरण हो गया। चटगांव, ढाका, मदारीगंज, जलपाईगुड़ी में संघर्ष हुआ। जोरहाट में संघर्ष से दीवान मणिराम व पिओली बरुआ को फांसी दी गई। राजधानी कलकत्ता, जिसकी जनसंख्या 6 लाख थी, में भय तथा आतंक छा गया। गृह सचिव सेसिल बीड ने चहुंओर 600 मील तक शांति की बात की, परन्तु मई-अगस्त तक चार महीने ब्रिटिश शासकों तथा यूरोपीय समाज के लिए बड़ी बेचैनी के गुजरे। प्रत्यक्षदर्शी जी.बी. मैलीशन ने 14 जून के आतंकित रविवार का विस्तृत वर्णन किया जबकि कलकत्ता की सड़कों पर पालकियों तथा घोड़ागाड़ियों का जाम लग गया। ब्रिटिश अधिकारी अपनी जेबों में भरी हुई पिस्तौलें लेकर अपने परिवार के साथ भागते दिखाई दिये। बैरकपुर में सैनिक विद्रोह दबाने के लिए बाहर से सेनायें बुलाई गईं। फोर्ट विलियम में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। बिहार में दानापुर, छोटानागपुर, पटना, रांची, आरा, जगदीशपुर, पलामू, सिंहभूम, मानभूम, शहाबाद आदि अनेक स्थान संघर्ष के केन्द्र रहे। पटना में पीर अली व 14 अन्य व्यक्ति शहीद हुए, दानापुर में अंग्रेजों का बड़ा प्रतिरोध हुआ। अंग्रेजों के लिए कठिनतम संघर्ष जगदीशपुर के कुंवर सिंह के साथ हुआ। ब्रिटिश सेनानायक मिलमैन, डेम्स, मार्क, लजर्ड सभी पराजित हुए। परन्तु अन्त में डगलक को सफलता मिली। कुंवर सिंह की एक बांह में गोली लगने के बाद तीन दिन में उनकी मृत्यु हो गई।समर में सर्वाधिक योगदान उत्तर प्रदेश का रहा। क्रांति की शुरुआत मेरठ में 10 मई को हो गई थी। इन्हीं सैनिकों ने दिल्ली जाकर बहादुरशाह जफर को शहंशाह-ए-हिन्दुस्तान घोषित किया था। परन्तु चार मास बाद 20 सितम्बर को अंग्रेज दिल्ली पर पुन: कब्जा कर सके थे। कानपुर, झांसी, रुहेलखण्ड, बरेली, बनारस, इलाहाबाद, बुलन्दशहर, बिजनौर, मुरादाबाद, आगरा, अलीगढ़, सहारनपुर, लखनऊ, बदायूं, आजमगढ़, मिर्जापुर आदि सभी स्थान संघर्ष तथा बलिदान के केन्द्र बन गये थे। अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में भयंकर नर-संहार तथा लूटमार की। उल्लेखनीय है कि मिर्जापुर के भदोही नामक स्थान के मुसई सिंह को 47 वर्ष की जेल हुई तथा उसे मई 1907 में जेल से रिहा किया गया। वर्तमान हरियाणा एक रणस्थल बन गया था। अम्बाला, पानीपत, थानेश्वर, गुड़गांव, सिरसा, हिसार, हांसी, मेवात, अहिरवाल, रोहतक, पलवल, फरीदाबाद, बल्लभगढ़ आदि स्थानों पर भयंकर संघर्ष हुआ। नारनौल में अनेक ब्रिटिश अधिकारी मारे गये। अगले अंक में जारी5
टिप्पणियाँ