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151 मतान्तरित ईसाइयों की घर वापसी-अजय श्रीवास्तवहिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में रहने वाली लज्जा देवी की दर्द भरी दास्तान किसी पत्थर दिल को भी पिघला सकती है। इस वृद्धा की आंखें रोते-रोते रीत चुकी हैं। वह घन्टों शून्य में ताकती रहती हैं। ब्रोन टूमर के कारण मौत से जूझ रहे उनके लाडले युवा पोते को प्रार्थना से “चंगा” करने का झांसा देकर लज्जा देवी और उनके परिवार के करीब 15 सदस्यों को मिशनरियों ने ईसाई बना दिया था। इतना ही नहीं, बीमार पोते राकेश के दम तोड़ने के बाद इस गरीब दलित महिला से कफन-दफन के नाम पर सात हजार रुपए भी ईसाई मिशनरी ऐंठ ले गए।अब लज्जा देवी ही नहीं, धोखा खाए ऐसे सैकड़ों दलित-ईसाई परिवारों का भ्रम टूट चुका है। ये लोग हिन्दू धर्म में वापसी के लिए छटपटा रहे हैं। इसी भावना के कारण लोभ-लालच या गुमराह करके ईसाई बनाए गए 151 लोग गत 28 फरवरी को धार्मिक विधि-विधान से “घर-वापस” लौटे। इनमें लज्जा देवी और उनका पूरा परिवार भी शामिल है। स्वधर्म में वापस लौटने वालों में पास्टर टुलकू राम थे तो शिमला में 40 साल पहले ईसाइयत का प्रचार करने वाले स्व. शकूर मसीह के पुत्र शम्मी डेविड और 50 वर्ष पूर्व ईसाई बन चुके परिवार के अमित कुमार पुत्र स्व. मुरीद जैसे लोग भी थे।अखिल भारतीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष श्री तरसेम भारती ने इन लोगों की घर वापसी का रास्ता तैयार किया और उक्त कार्यक्रम भी इसी संस्था ने आयोजित किया था। स्थानीय विश्व हिन्दू परिषद्, सनातन धर्मसभा, श्री गुरुसिंह सभा, वाल्मीकि सभा, रविदास सभा और जैन सभा ने घर वापसी कार्यक्रम को पूरा सहयोग दिया। दलित समुदाय में सम्मानित श्री भारती का मानना है कि “ये तो प्रदेश में एक शुरुआत है। मतान्तरित लोग अब ईसाई मिशनरियों की ठगी को समझ चुके हैं।”धोखे से मतान्तरित हुए दलित परिवारों की प्रतिनिधि कहानी है लज्जा देवी की। शिमला के कसुम्पटी क्षेत्र में अपने छोटे से घर में उन्होंने पाञ्चजन्य को अपनी दुखद कथा आंसू भरी आंखें लिए सुनाई। लज्जा देवी के अनुसार उनकी पुत्रवधु का देहान्त बहुत पहले हो गया था, तब पोता राकेश बहुत छोटा था। उन्होंने ही अपने पोते को मां का प्यार देकर पाला था। 2003 में राकेश के मस्तिष्क में फैल रहे ब्रोन टूमर का पता चला और वह इलाज के बावजूद कोमा में चला गया। उसी दौरान ईसाई मिशनरियों ने श्रीमती लज्जा देवी से संपर्क किया और ईसा मसीह से प्रार्थना कर राकेश को “चंगा” करने का भरोसा दिलाया। वे लोग पूरे परिवार को चर्च ले गए और कहा कि सभी के ईसाई बन जाने से प्रार्थना जल्दी असर करेगी। लज्जा देवी ने बताया, “ईसाई मिशनरियों ने हमें बहला-फुसला कर अपने वश में कर लिया। हम गरीब लोग हैं। मेरे पति और बेटा गुजर चुके थे। केवल पोता कमाने वाला था। हमने उसकी जान बचाने के लिए दिल पर पत्थर रख कर ईसाई बनना मंजूर कर लिया। पूरा परिवार ईसाई बन गया।”मतान्तरण के कुछ दिन बाद ही राकेश की मृत्यु हो गई। ईसाई मिशनरियों ने उसे दफन करने के लिए गरीब विधवा से 2000 रुपए लिए। उसके बाद कब्रा पक्की करने और उस पर छत बनाने के नाम पर पांच हजार रुपए और ऐंठे। लज्जा देवी ने कहा, “झूठे मिशनरियों ने मुझ दुखियारी को ठग लिया। मेरा पोता भी चला गया। उसकी कब्रा आज तक न तो पक्की हुई और न ही उस पर छत पड़ी। मैं ईसाई बनकर पछता रही हूं। मेरे देवी-देवताओं की मूर्तियां यह कह कर घर से हठार्इं कि ये “मुर्दा देवता” हैं और राकेश को ये ठीक नहीं कर सकते। उन्होंने वे मूर्तियां नाले में फेंक दीं और घर में शीशी में रखे गंगा जल को शौचालय में डाल दिया….।” यह कहते-कहते लज्जा देवी फूट-फूट कर रो पड़ीं। उसके अनुसार ईसाई मिशनरियों ने कहा कि “प्रभु यीशू ही जिन्दा भगवान हैं और वही राकेश को बचाएंगे।” आज लज्जा देवी मानती हैं कि देवी-देवताओं के अपमान की वजह से उसके पोते की मृत्यु हुई और घर के बाकी सदस्य भी बीमार रहने लगे।मतान्तरण का एक उदाहरण पास्टर टुलकू राम भी हैं। आठ वर्ष पूर्व वह ईसाई बने थे। बी.ए. करने के बाद बेरोजगारी और गरीबी के दौर में उन्हें ईसाई मिशनरियों ने झांसा दिया। वह ईसाई मत प्रचारक बन गए। 6,500 रुपए प्रतिमास मिलते थे। लेकिन वह भी घर-वापसी के लिए आतुर थे क्योंकि मन से उन्होंने कभी भी ईसाई मत स्वीकार नहीं किया था।अखिल भारतीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति महासंघ ने श्री तरसेम भारती के नेतृत्व में नाहन, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा, ऊ‚ना और किन्नौर आदि जिलों में भी घर वापसी के लिए काम शुरू कर दिया है।32
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