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केरल

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Nov 2, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Nov 2007 00:00:00

कामरेडों में घमासान-तिरुअनंतपुरम से प्रदीप कुमारकेरल में माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए एक के बाद एक मुसीबतें सामने आ रही हैं और राज्य सचिवालय में उथल-पुथल मची है। कामरेडों में आपसी कलह और गुटबाजी इस हद तक जा पहुंची है कि पार्टी की बैठकों और सरकारी बैठकों में कभी-कभी बात बिगड़ते-बिगड़ते हाथापाई तक पहुंचती दिखायी देती है। माक्र्सवादियों के लिए यह स्थिति गले की फांस जैसी बनती जा रही है जिसे न उगलते बन रहा है न निगलते। मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन और वरिष्ठ माक्र्सवादी नेता पिनरई विजयन के विरोधी खेमों में टकराव इस हद तक जा पहुंचा है कि पार्टी टूट के कगार पर पहुंच गयी है।खेमों की इस लड़ाई में तब एक तीखा आयाम और जुड़ गया जब केरल उच्च न्यायालय ने चार निर्णायक आदेश पिनरई विजयन, एम.ए. बेबी और स्टूडेंट्स फेडरेशन आफ इंडिया (एस.एफ.आई.) के विरुद्ध दिये। इससे बौखलायी माकपा ने केरल उच्च न्यायालय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जनवरी माह के आरंभ में केरल उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी.के. बाली की खंडपीठ ने पिनरई के निकटवर्ती और शिक्षा मंत्री एम.ए.बेबी के उस सेल्फ फाइनेनिंसग कालेज (प्रोफेशनल) एक्ट को अस्वीकार कर दिया, जो बेबी का एक दीर्घकालिक सपना था। केरल के व्यावसायिक कालेजों पर माकपा का नियंत्रण जमाने के लिए यह कानून आपाधापी में अध्यादेश के रूप में लागू कर दिया गया था। मगर ईसाइयों और मुस्लिमों के संगठन इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आये थे। पिनरई की “वानर सेना” कही जाने वाली एस.एफ.आई. ने ईसाई और मुस्लिम संस्थानों पर हमले किये और करोड़ों की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया। उसका इरादा केवल उन्हें घुटने टेकने के लिए राजी करना था। एक महीने पहले ही केरल उच्च न्यायालय ने केरल के शैक्षिक संस्थानों में राजनीति पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह फैसला भी एस.एफ.आई. पर एक गंभीर आघात माना जा रहा था क्योंकि वह अपनी राजनीति और असामाजिक तत्वों के बल पर परिसरों में गुण्डा राज फैला रही थी।जिस समय माकपा-एस.एफ.आई. इन न्यायालयीन आदेशों के प्रभाव का जायजा ले रहे थे उसी समय एक और संकट टूट पड़ा। गत 16 जनवरी को केरल उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी.के. बाली और न्यायमूर्ति जे.बी. कोशी की खंडपीठ ने एक ऐतिहासिक और चौंकाने वाले निर्णय में 375 करोड़ रुपए के एस.एन.सी.-लवलीन घोटाले पर सी.बी.आई. जांच का आदेश दिया। यह घोटाला उस समय हुआ था जब पिनरई विद्युत मंत्री थे और पनियार, सेंगुलम और पल्लीवसल जल विद्युत परियोजनाओं के पुनरोद्धार की यह योजना बनायी गयी थी। यानी पिनरई इस घोटाले में सीधे-सीधे जुड़े हुए थे। ई.के. नयनार सरकार में विद्युत मंत्री के नाते पिनरई विजयन ने 1995 में कनाडा की एक कम्पनी को इस योजना के लिए हरी झंडी दिखायी थी। इसके बाद उमेन चांडी सरकार ने पहले इस पर सतर्कता जांच के आदेश दिये, फिर सी.बी.आई. जांच के। ध्यान देने वाली बात यह है कि केन्द्र सरकार पर माक्र्सवादी हावी हैं अत: पिनरई ने माकपा महासचिव प्रकाश कारत के प्रभाव का उपयोग करते हुए सी.बी.आई. जांच को टलवा दिया था। यह पिनरई का ही असर था कि राज्य सरकार की सलाह मांगने के लिए सी.बी.आई. द्वारा भेजी चिट्ठी का जवाब तक नहीं दिया गया।उच्च न्यायालय ने अपने निर्णायक फैसले में कहा, “यह न्याय का मजाक उड़ाना ही होगा अगर इतने बड़े पैमाने (375 करोड़ रुपए) के घोटाले में केवल निचले स्तर के लोगों को आरोपी मानकर कार्रवायी की जाय। हमारी नजर में तो यह केवल नाम करना ही होगा। साथ ही सरकार संविधान का निरंतर रहने वाला आयाम होती है। एक शासन द्वारा दिये गये जांच के आदेश को दूसरे शासन द्वारा निरस्त नहीं किया जा सकता।”एस.एन.सी.-लवलीन मुद्दे पर आये न्यायालय के इस चुभने वाले आदेश से पिनरई विजयन बौखला गये हैं और इसी बौखलाहट में उन्होंने उच्च न्यायालय और मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। एस.एफ.आई. के कार्यकर्ता और माकपाई गुण्डे आये दिन उच्च न्यायालय के सामने इन आदेशों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। इससे पहले भी माकपा ने न्यायपालिका के विरुद्ध हमला बोला था और न्यायाधीशों के पुतले फूंके थे। यह उस समय की बात है जब भारतीय जनता युवा मोर्चा के नेता जयकृष्णन के हत्यारों को फांसी की सजा सुनायी गयी थी।उच्च न्यायालय के खिलाफ अपने गुस्से को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश में पिनरई विजयन ईसाई हितों के रखवाले का बाना ओढ़ चुके हैं। सितम्बर 2006 में उच्च न्यायालय के आदेश पर पुलिस ने “मूरिंगूर क्रिश्चियन सेंटर” की तलाशी ली थी। उसके खिलाफ मतांतरण, बलात्कार, हत्याओं, मादक पदार्थों और शवों को संदिग्ध रूप से गायब करने की शिकायतें प्राप्त हुयी थीं। पिनरई ने इसी “सेंटर” की आड़ लेकर न्यायाधीशों पर बयानबाजी करनी शुरू की है। 20 जनवरी को इस “सेंटर” का दौरा करते हुए उन्होंने वहां न्यायालय के खिलाफ बयान दिया, उसके आदेश की भत्र्सना की कि बजाय सरकार के जरिये यह सब करने के उसने कैसे पुलिस को उस जगह की जांच करने और सीधे उनको रपट देने को कहा। पिनरई ने आरोप लगाया कि न्यायपालिका के समर्थन से पुलिस ने ज्यादतियां की हैं। उन्होंने त्रिशूर के आर्चबिशप के बयान, कि चर्च माकपा विरोधी नहीं है, को भी उद्धृत किया। इससे पहले पिनरई ने कान्तापुरम मुसलियार के मरकज का भी दौरा किया और घोषित किया कि माकपा इस्लाम विरोधी नहीं है। माकपा महासचिव करात ने भी बिशप पोलोस मार पोलोस स्मृति व्याख्यान दिया था और कहा था कि रा.स्व.संघ के विरुद्ध चर्च माकपा का साथ दे। मगर विडंबना यह है कि कुछ महीने पहले ही पिनरई गुट के कन्नूर के प्रभावी नेता और गृहमंत्री कोडियरी बालकृष्णन ने “सेंटर” पर पुलिस छापामारी को सही ठहराया था।24 जनवरी को एक महत्वपूर्ण फैसले में केरल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के उस निर्णय को भी निरस्त कर दिया कि परियारम मेडिकल कालेज का प्रबंधन एम.वी.राघवन की बजाय राज्य सरकार के हाथों में हो। हुआ यूं था कि राघवन पार्टी से बर्खास्त होने के बाद उसके तीखे आलोचक बन गये थे। सत्ता में लौटने के बाद माकपा ने बदले की भावना पर चलते हुए कालेज प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया, जिसे हाल ही में न्यायालय ने निरस्त किया है। उच्च न्यायालय का निर्णय अच्युतानंदन और पिनरई विजयन के बीच संघर्ष का मुद्दा बन गया है। मुख्यमंत्री अच्युतानंदन ने राष्ट्रपति कलाम को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति बाली की तारीफ की है और उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में प्रोन्नत करने की अनुशंसा की है जबकि इन्हीं न्यायमूर्ति बाली के खिलाफ पिनरई आएदिन जहर उगल रहे हैं। कहते हैं न, दुश्मन का दुश्मन, दोस्त होता है।माकपा राज्य सचिव पिनरई ने एस.एफ.आई. के न्यायालय विरोधी आन्दोलन के साथ कदम मिलाते हुए मूरिंगूर ईसाई “सेंटर” का पत्ता खेलना शुरू कर दिया है। यह ईसाई समुदाय को लुभाने की ही एक चाल है। यह भी उल्लेखनीय है कि स्वपोषित कालेजों के मुद्दे पर अच्युतानंदन के बयानों से ईसाई समाज मुख्यमंत्री से दूरी बनाये हुए है। न्यायालय के खिलाफ बयानबाजी करते हुए पिनरई ने यह खास ध्यान रखा कि “सेंटर” पर छाये संदेह के बादलों का जिक्र किये बिना उसके खिलाफ जांच की भत्र्सना की जाये। उन्होंने कहा कि बजाय पुलिस जांच के उच्च न्यायालय ने जांच दल निर्धारित करके सीधे उसी को रिपोर्ट करने की बात कही है, जो किसी भी तरह उचित नहीं है। इस मामले में न्यायालय का दखल गैर जरुरी था। उन्होंने यह भी कहा कि “सेंटर” के खिलाफ किसी भी तरह की आरोप की जांच पुलिस द्वारा की जानी चाहिए थी। जिस समय वे यह बयान दे रहे थे उस समय उनके साथ माकपा जिला सचिव बेबी जान और चालक्कुड़ी के विधायक बी.डी. देवासिया भी मौजूद थे। न्यायालय के खिलाफ पिनरई का गुस्सा कम्युनिस्टों के दशकों पुराने नारे- बुर्जुवा न्यायालय, हाय हाय- के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। “क्रांति” का रास्ता छोड़कर जब माकपा ने लोकतंत्र के साथ बाद में समझौता किया तो उसने न्यायपालिका को अनमने ढंग से केवल इसीलिए स्वीकार किया था क्योंकि यह लोकतंत्र का एक स्तंभ है।मगर केरल में लगता है कामरेड फिर से न्यायालय विरोधी तेवरों में उतर आए हैं। माकपा, पार्टी के अखबार और चैनलों द्वारा उच्च न्यायालय और मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ प्रसारित तीखे आन्दोलन से बौखलाये राज्य माकपा नेतृत्व का बदसूरत चेहरा फिर से सामने आया है। पार्टी के अखबारों और चैनलों ने मुख्य न्यायाधीश वी.के. बाली पर आरोपों की झड़ी लगा दी है जिससे माकपा नेतृत्व का गुप्त एजेंडा उजागर हो गया है। पिनरई गुट की रणनीति न्यायालय को कठघरे में खड़ा करके यह माहौल बनाने की है कि न्यायालय पूरी तरह भ्रष्ट हो गये हैं। उनकी कोशिश कुछ और नहीं केवल यही सिद्ध करने की है कि स्वपोषित कालेजों के मामले में आये निर्णय की तरह ही एस.एन.सी.- लवलीन मामले में दिया गया फैसला भी धांधली भरा है।हाल ही में पार्टी के मुखपत्र ने उमेन चांडी, कुनहलीकुट्टी और मुख्य न्यायाधीश के बीच “गुप्त बैठक” के बारे में एक खबर प्रकाशित की थी। मगर चांडी ने तुरंत स्पष्टीकरण दिया कि वह न्यायमूर्ति बाली को अपनी पुत्री के विवाह का न्योता देने गये थे। इसी दिन उस अखबार की प्रमुख खबर थी कि मुख्य न्यायाधीश और उनका परिवार स्वपोषित कालेज मामले में निर्णय के दिन नौका विहार के लिए गये थे। रपट में आरोप लगाया गया था कि न्यायमूर्ति बाली ने उस वकील की “सेवायें” स्वीकारी थीं जो इस मामले में प्रबंधकों की ओर से प्रस्तुत हुआ था। लेकिन उसी रपट में आगे कहा गया कि उस नौका विहार का खर्च स्वयं न्यायमूर्ति बाली ने वहन किया था। एक दिन पहले ही पार्टी के प्रभाव वाले समाचार चैनल ने दृश्यों के साथ यह खबर प्रसारित की थी। इस खुलासे के बाद पिनरई के चापलूसों और एस.एफ.आई. के राष्ट्रीय सचिव के.के. रागेश ने नई दिल्ली में घोषणा की कि वे मुख्य न्यायाधीश द्वारा सत्ता के कथित दुरुपयोग के खिलाफ राष्ट्रपति से शिकायत करेंगे। रागेश ने पहले भी मुख्य न्यायाधीश पर स्वपोषित कालेज प्रबंधकों के साथ उनके कथित रिश्तों की बात करके गंभीर आरोप लगाये थे।कुल मिलाकर केरल में माकपा पार्टी और सरकार के बीच चल रहा घमासान एक पूर्व निर्धारित पटकथा के अन्तर्गत मंचित एक नाटक जैसा दिखायी दे रहा है। जब सर्वोच्च न्यायालय ने जयकृष्णन हत्या मामले में माकपा तत्वों को बरी कर दिया था तो यही माकपा नेता उस फैसले की तारीफों के पुल बांध रहे थे।9

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