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कब तक गिनेंगे?तरुण विजयगिनती करने और करवाने में फर्क होता है। बहुत समय से हिन्दू समाज केवल अपने मृतकों की गिनती करने पर विवश किया जा रहा है। बहुत पीछे न भी जाएं तो मातृभूमि का विभाजन स्वीकार करने के बाद जो खंडित आजादी हमें मिली उस दौर में 10 लाख से अधिक हिन्दुओं की निर्मम हत्या हुई और एक करोड़ से अधिक उजाड़ दिए गए। उसकी भी हमने भली प्रकार गिनती की। बही-खातों की तरह विवरणों के ग्रंथ लिखे। उसके कुछ ही महीने बाद कश्मीर पर कबायलियों के भेष में पाकिस्तान ने हमला किया। दो तिहाई कश्मीर हड़प लिया। पाकिस्तानी दरिंदों ने मुजफ्फराबाद, रावलपिंडी और मीरपुर में हिन्दू स्त्रियों, बच्चों और वृद्धों के साथ जो पैशाचिक बर्बरता का व्यवहार किया वह केवल इस्लामी परम्परा का ही हिस्सा कहा जा सकता है। उसकी भी हमने गिनती की और उस बारे में अनेक पुस्तकें लिखीं। तब 75 हजार से अधिक हिन्दू लुट-पिट कर शरणार्थी के रूप में कश्मीर में आए थे और वे घाटी में ही बसाए गए थे। लेकिन आज तक उन्हें और कश्मीर में जन्मी उनकी दूसरी-तीसरी पीढ़ी को प्रदेश की नागरिकता नहीं दी गई क्योंकि वे हिन्दू हैं और देशभक्त हैं। सरकार चाहे राष्ट्रवादियों की हो या अन्तरराष्ट्रीयतावादियों की, हिन्दू के दु:ख में कमी नहीं आती। फिर “80 के दशक के उत्तराद्र्ध और “90 के प्रारंभ से हिन्दुओं पर इतने भीषण अत्याचार हुए कि उन्हें कश्मीर घाटी से अपना घर, व्यापार, बगीचे और खेत छोड़कर शरणार्थी बनने पर विवश होना पड़ा। उनकी भी हमने गिनती की और उनके दु:ख पर पुस्तकें लिखीं तथा फिल्में बनार्इं।अब हैदराबाद में विस्फोट हुआ है। यह विस्फोट केवल हिन्दुओं को निशाने पर रखकर किया गया, यह बात स्पष्ट है। गोकुल चाट की दुकान विश्व हिन्दू परिषद् कार्यालय के निकट है और वहां ज्यादातर राजस्थानी और गुजराती भोजनानन्द के लिए आते हैं। विस्फोट के बाद यहां भी गिनती की गई, बड़े-बड़े दावे किए गए। जैसे नगर पालिका के पानी और बिजली के बिल की मैली-कुचैली रसीदें होती हैं, वैसे राजनेताओं के बयान-“हम आतंकवाद सहन नहीं करेंगे, यह कायरतापूर्ण हमला है, हमारे शांति प्रयास ऐसे हमलों से रोके नहीं जाएंगे, वगैरह-वगैरह-वगैरह।”आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस.आर. रेड्डी ईसाई मतावलम्बी हैं। वे पिछले प्रदेश चुनावों में नक्सलियों/माओवादियों के साथ दावतें खाते थे। उन्होंने माओवादियों को सरकारी अतिथि गृहों में रुकवाया और उनसे कांग्रेस को जिताने में मदद देने की प्रार्थना की। नक्सलवादियों ने कांग्रेस की सहायता की। कांग्रेस जीत गई। रेड्डी ने सत्ता में आते ही मुसलमानों को नौकरियों तथा राजनीति में भी आरक्षण देने की घोषणा की। ऐसी घोषणा करने वाले वे देश के पहले मुख्यमंत्री बने, हैदराबाद निजामशाही के समय रजाकारों की नफरत भरी हिंसक और साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले राजनीतिक दल मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन तथा उसके नेता ओवैसी के साथ सांठगांठ की। ओवैसी ने अपना एक दैनिक अखबार निकाला जिसके पाकिस्तान प्रेम और हिन्दू विद्वेष से वहां के मध्यमार्गी मुसलमान भी शर्मिंदा हैं। वहां का एक उर्दू दैनिक है सियासत। उसके सम्पादक मलिक को ओवैसी के लोगों ने सड़क पर पीटा और मानवीय मैला उस पर फेंका। लेकिन सरकार ओवैसी का साथ देती रही। अभी कुछ समय पहले तस्लीमा नसरीन का हैदराबाद में कार्यक्रम हुआ तो ओवैसी के लोगों ने ही तस्लीमा पर हमला कर “बहादुरी” दिखाई। तब भी रेड्डी सरकार ने ओवैसी का साथ दिया और तस्लीमा के विरुद्ध ही मुकदमा दर्ज कर दिया।ये घटनाएं तात्कालिक विश्लेषण और प्रथमोपचार की पट्टियों से दूर नहीं होने वालीं। भारतीय राज्य सत्ता की सेकुलर पार्टियां हिन्दू विरोध किंवा मूल भारतीय तत्वों से विद्वेष को सत्ता में टिके रहने और हर चुनाव के बाद फिर सत्ता में आने का मार्ग मानती हैं। राजनीतिक तंत्र देश नहीं वोट और कुर्सी के लिए जी रहा है। पार्टी कोई भी हो, वोट प्राप्त करने के लिए वह देश के शत्रुओं के साथ भी गठबंधन कर सकती है, यह असम में बंगलादेशी घुसपैठियों की बढ़ती राजनीतिक सत्ता से स्पष्ट है। उनको बाहर निकालने के लिए किस पार्टी ने कितना काम किया यह कहने की भी आवश्यकता नहीं है। इसलिए जब तक भारत और भारतीयता के प्रति असंदिग्ध निष्ठा रखने वाला समाज प्रखर संगठित शक्ति के माध्यम से देश पर चोट कर रहे आतंकवादी हमलावरों को अपने खेमे में पराजय का स्वाद चखाते हुए उन्हें अपने हतबल और कायर आतंकवादियों की लाशें गिनने के लिए राजनीतिक सत्ता को सिद्ध नहीं करता तब तक जम्मू, वाराणसी, दिल्ली, गुवाहाटी, इम्फाल, कोयम्बतूर, बंगलौर, गांधीनगर और हैदराबाद होते ही रहेंगे।9
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