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प्रिय बन्धुओ,सप्रेम जय श्रीराम।ओमप्रकाश जी रा.स्व.संघ के पुराने और डा. हेडगेवार युगीन परम्परा के प्रचारक हैं, जिनके जीवन भर का तप इन दो शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है- ध्येय और आत्मीयता। अकारण अहैतुक आत्मीयता और निर्वैर विनय। जिसने कुछ नहीं किया वह भी, और जिसने बहुत कुछ किया वह भी हिन्दू समाज का घटक है और सभी के साथ जितना भरसक हिन्दू समाज का हितवर्धक कार्य हो सके, वह करते चले जाएं, ऐसा उनका व्यवहार है। और यही सबको उनकी सीख भी। पिछले दिनों त्रिवेन्द्र जी से भेंट हुई, इन दिनों वे उत्तराखण्ड के योग्य और सुधर्मा मंत्री हैं। पाञ्चजन्य से उनके अपनेपन का एक कारण यह भी है कि उन्होंने पाञ्चजन्य से ही लिखना प्रारंभ किया और पाञ्चजन्य के संवाददाता भी रहे। उन्होंने उत्तराखण्ड में खोले जा रहे एक असाधारण गोविज्ञान केन्द्र की जानकारी दी तो मन प्रसन्न हो गया। लेकिन इसके पीछे ओमप्रकाश जी का ही मुख्य संबल रहा है। जो भी हो, जैसा भी हो, जिससे भी गोमाता के हित में जितना बन पड़े करवा लेना, अब इसके सिवा ओमप्रकाश जी कुछ सोचते नहीं। इस अंक में इस गोविज्ञान केन्द्र के बारे में जानकारी पढ़कर आपको भी आनन्द होगा। उम्मीद बस यही की जानी चाहिए कि यह योजना जल्दी ही साकार हो जाएगी और सरकारी फाइलों में ही नहीं रह जाएगी।शेष अगली बारआपका अपनात.वि.7
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