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नन्दीग्राम का सच!मिट्टी की झोपड़ियों के सामने हरे लहलाते खेत आज वीरान हैं। खेतों की मिट्टी तक अब लाल हो चुकी है। न जाने कितने मासूमों का रक्त इस माटी में मिल गया है। कच्चे झोपड़ों के सामने अहाते में अब बच्चों की धमाचौकड़ी नहीं दिखाई देती। न ही दिखाई देती है चाय और मुरमुरे की दुकानों पर हंसी ठट्ठा करते किसानों के झुण्ड। हाट बजारों में अब रौनक नहीं है। नंदीग्राम में आज शायद ही ऐसा कोई घर हो जिसके भीतर से महिलाओं के विलाप की आवाज न सुनाई दे।14-15 मार्च, 2007 के बाद से नन्दीग्राम का यही दृश्य है। पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले का यह गांव उस दिन बंगाल की माक्र्सवादी सरकार के पिट्ठुओं और खाकी वर्दी वालों के निरंकुश अत्याचार का गवाह बना था। आंसूगैस। लाठियां। गोलियां। क्या-क्या नहीं दागा गया था नन्दीग्राम के मासूम किसानों, महिलाओं, बच्चों पर। एक के बाद एक लोग गोलियों से छलनी होते गए मगर उनका दर्द सुनने वाला कोई नहीं था। उनका दु:ख बांटने वाला कोई नहीं था। उनके बहते खून पर मरहम लगाने वाला कोई नहीं था। अगर कोई था भी तो वह पुलिस की लाठी और बंदूकों के बट के प्रहार झेलकर अधमरा होकर अपनी जान बचाकर भाग निकला था। स्वतंत्र भारत के इतिहास में शासन की ऐसी बर्बरता शायद पहले कभी नहीं देखी गई थी। जलियांवाला बाग! माक्र्सवादी मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के औद्योगिकीकरण के प्रति बढ़ते “प्रेम” ने नन्दीग्राम को उस दिन रणक्षेत्र में बदल दिया था। एक ओर थे अपने खेत, अपनी जमीन, अपने घर बचाने की जीतोड़ कोशिश में असहाय से जुटे किसान और उनके बीवी-बच्चे तो दूसरी तरफ थे खाकी वर्दी में बुद्धदेव सरकार द्वारा भेजे गए पुलिस वाले और कट्टर माक्र्सवादी अपराधी तत्व।अखबारों में इस घटना की जितनी रपटें और तस्वीरें छपीं, उनसे तो उस वीभत्स काण्ड की केवल छोटी सी झलक ही मिली थी। मगर अभी हाल ही में विश्व संवाद केन्द्र, कोलकाता द्वारा बनाई गई एक सीडी से नन्दीग्राम का पूरा सच उजागर हुआ है। “किसानों का क्रंदन” शीर्षक से बनी इस 18 मिनट की सीडी में ऐसे-ऐसे दृश्य संयोजित किए गए हैं जिन्हें देखकर एकबारगी तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। गोली लगने के बाद पेट से बाहर झांकतीं आंतें, गमछे से उन आंतों को भीतर ही रोकने की जद्दोजहद में उलझे मासूम गांव वाले। बांहों को चीरकर निकलती गोली। झोपड़ों से डरे-सहमे गांववालों को खींचकर बाहर निकालते पुलिस वाले और फिर एक-एक आदमी पर छह-छह पुलिस वालों की लाठियां। बदहवास से भागते बच्चे। अपना शील बचाने को इधर-उधर छुपती महिलाएं तो कहीं अपने पति को गोली लगने पर मदद के लिए विलाप करती कोई महिला। किसी को नहीं बख्शा माक्र्सवादी सरकार की पुलिस ने। सीडी पर सब दस्तावेजी साक्ष्यों और चित्रों के साथ संकलित किया गया है। एक लाख रुपए में जनता को कार देने के टाटा के सपने को जिस तरह से पूरा करने में बुद्धदेव भट्टाचार्य जुटे हैं वह आम देशवासी को निश्चित ही आश्चर्य में डालता है। बुद्धदेव ने सिंगूर और नन्दीग्राम की उपजाऊ जमीन पूंजीपतियों के उद्योग-कारखानों के लिए कब्जाने की कोशिश की। और अपनी इस कोशिश में उन्होंने उन्हीं मजदूरों, किसानों यानी सर्वहारा वर्ग का दमन किया है जिनके नाम पर माक्र्सवादी पिछले 30 सालों से कोलकाता की राइटर्स बिÏल्डग में जमे हुए हैं। नन्दीग्राम घटना पर माक्र्सवादी नेता सीताराम येचुरी ने तब संसद के गलियारे में खड़े होकर बहुत गोल-गोल मुंह घुमाकर अंग्रेजी में कहा था कि “यह तो एक आम घटना है। नन्दीग्राम में ऐसा कुछ विशेष नहीं हुआ है”। मगर सच्चाई यह है कि जो कुछ भी वहां हुआ है इतना वीभत्स हुआ है कि जिसके कारण वाममोर्चे के बाकी घटकों ने भी माकपा की तीखी भत्र्सना की। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने संसद में तीव्र विरोध किया। राजग प्रतिनिधिमण्डल जब श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री जार्ज फर्नांडीस और श्रीमती सुषमा स्वराज के नेतृत्व में घटना के तीसरे दिन नन्दीग्राम गया था तब वहां के लोगों ने रो-रोकर अपना दर्द सुनाया था। वहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति की आंखें नम हो उठी थीं और आंखों में माक्र्सवादी सरकार के विरुद्ध गुस्सा साफ देखा जा सकता था। श्री आडवाणी ने नन्दीग्राम को जलियांवाला बाग की संज्ञा दी थी।वि.सं.के., कोलकाता द्वारा बनाई गई इस सीडी में घटना का सिलसिलेवार वास्तविक ब्यौरा है। इस सीडी का अधिक से अधिक प्रसार होना चाहिए ताकि देशवासियों को पता चले कि सर्वहारा की बात करने वाले माक्र्सवादी किस प्रकार का दमनकारी शासन करते हैं। -आलोक गोस्वामी22
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