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धर्म-योद्धा का महाप्रयाणदृढ़ इच्छाशक्ति के पर्यायरास्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं पूर्व धर्म जागरण प्रमुख श्री विश्वनाथ अब हमारे बीच नहीं रहे। गत 24 मई की प्रात: अमृतसर में उनका निधन हो गया। वे 82 वर्ष के थे। उग्रवाद के शुरूआती दौर में पंजाब और वहां से पलायन को मजबूर लोगों के मन में आज भी विश्वनाथ जी की वही छवि अंकित है जो उनके वहां प्रान्त प्रचारक बनकर जाने के बाद बनी थी। बिना किसी भय के वे कार्यकर्ताओं के घर जाते, उनका मनोबल बढ़ाते। इसी का परिणाम था कि लोग पलायन छोड़कर हिम्मत के साथ खड़े हो गए, आतंकवादियों के विरुद्ध मोर्चा संभाल लिया।1926 में अमृतसर जिले के गोर्इंदवाल साहब में जन्मे विश्वनाथ जी जब खालसा कालेज के विद्यार्थी थे तभी उनका रा.स्व.संघ से परिचय हुआ। फिर 1944, “45 और “46 में लगातार प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण उन्होंने प्राप्त किया और आजीवन प्रचारक रहने का व्रत लेकर निकल पड़े राष्ट्र कार्य के लिए। 1945 में ही उन्हें मिंटगुमरी जिले के बांसपत्तन (अब पाकिस्तान में) तहसील में भेजा गया। वह दौर भयानक उथल-पुथल वाला था। कट्टरपंथी तत्व “पाकिस्तान जिन्दाबाद” के नारों के साथ हिन्दुओं पर हमले कर रहे थे। युवा विश्वनाथ ने वहां हिन्दुओं को एकत्रित करने का काम किया।फिर सन् 1947 में देश का विभाजन हुआ। उस समय किसी तरह जान बचाकर कर भारत आ रहे हिन्दू शरणार्थिर्यों की मदद के लिए अन्य स्वयंसेवकों के साथ वे भी जुट गए। विभाजन के बाद उन्होंने लुधियाना, फिरोजपुर और हिसार में जिला प्रचारक का दायित्व निभाया। फिर अमृतसर में विभाग प्रचारक और 1971 में दिल्ली के प्रान्त प्रचारक बने। 1978 में उन्हें प्रान्त प्रचारक के रूप में पुन: पंजाब भेजा गया। इसके बाद उत्तर क्षेत्र के क्षेत्रीय प्रचारक बने। वर्षों तक इस दायित्व को निभाने के बाद उन्हें 2001 में धर्म जागरण मंच का प्रभार सौंपा गया था। मार्च, 2006 तक उन्होंने इस दायित्व को निभाया। 80 वर्ष की अवस्था में भी विश्वनाथ जी यथासंभव प्रवास करते रहे। उनकी वाणी की मिठास सबको सहज आकर्षित करती थी। दो वर्ष पूर्व लखनऊ जाते समय वे अचानक अस्वस्थ हो गए। काफी समय तक दिल्ली रहकर उन्होंने अपनी इच्छाशक्ति के बल से बीमारी पर विजय पाई और फिर अमृतसर आकर स्वास्थ्य लाभ लिया। पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद वे पंजाब के कुछ जिलों में भी गए, जहां कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया। बाद में अधिकांश समय अमृतसर में रहकर कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करते रहे। अस्वस्थ रहते हुए भी दैनिक शाखा में समय से पूर्व पहुंचते थे। विश्वनाथ जी आग्रहपूर्वक कभी स्वयं गीत गाते, पुरानी बातें सुनाते, धर्म जागरण के कार्य की जानकारी देते थे। अभी 17 से 20 मई तक अमृतसर में पंजाब प्रांत के सभी प्रमुख कार्यकर्ताओं की क्रमश: बैठकें हुर्इं, जिसमें श्री दिनेश चंद्र (क्षेत्रीय प्रचारक), श्री सीताराम व्यास (क्षेत्रीय कार्यवाह) तथा प्रांत के सभी वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित थे। उस समय लग रहा था कि अब विश्वनाथ जी काफी स्वस्थ महसूस कर रहे हैं। वे सभी विभाग प्रचारकों एवं कार्यकर्ताओं को अपने पास बुलाते, उनकी पीठ थपथपाते और आशीर्वाद स्वरूप कुछ शब्द बुदबुदाते। पर अचानक 21 मई रात्रि से पुन: स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई। 23 मई दोपहर बाद किडनी ने काम करना बन्द कर दिया। और 24 मई की प्रात: 7 बजकर 35 मिनट पर विश्वनाथ जी इस संसार को छोड़ गए।8
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