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संतों के सेवाकार्य भी तो दिखाए मीडिया-साध्वी ऋतम्भरा,संस्थापक, वात्सल्य ग्राम (वृंदावन)भारत के सन्त समाज के विरुद्ध अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर एक बहुत ही सोचा-समझा और नियोजित षड्यंत्र रचा गया है। कभी कथित हत्या के आरोप, तो कभी काले धन को सफेद करने के आरोप, कभी योग से विश्वभर को निरोगी करने के एक योगी के प्रयासों को झूठा सिद्ध करने एवं उनकी दवाओं में पशुओं की हड्डियां होने संबंधी आरोपों के कुत्सित समाचारों से चारों ओर सनसनी फैली हुई है। बहुत गहराई से विचार करने पर यही सत्य सामने आता है कि यह सब कुछ और नहीं, कोका कोला जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की बोतलों से निकला वह जिन्न है जिसका बाबा रामदेव जी महाराज जैसे परम सन्त ने पर्दाफाश किया है। एक अकेले परम योगी सन्त ने जिस सरलता के साथ पूरे विश्व के सामने कोका कोला के जहर को उजागर किया और उसके बाद जिस प्रकार से कम से कम भारत में उस “कोका कोला बनाम टायलेट क्लीनर” की ब्रिकी को तगड़ा झटका लगा उसके बाद यह तो तय ही था कि भारत के सन्त समाज के विरुद्ध कोई ना कोई साजिश तो रची ही जाएगी।मैं पत्रकारिता जगत का पूर्ण सम्मान करती हूं, लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होने के नाते उसकी अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका भी है। मगर मैं पत्रकार जगत से पूछना चाहती हूं कि जिस सजगता और सक्रियता से आप “स्टिंग आपरेशन” कर रहे हैं, काले और सफेद धन की पड़ताल कर रहे हैं, क्या उतनी ही सजगता के साथ आपके गुप्त कैमरों ने कभी उन दृश्यों को भी अपने “Ïस्टग आपरेशन” में कैद किया है जिनमें भारत के सन्त इस देश के वनवासियों, गिरिवासियों एवं वंचितों के उत्थान के प्रयास करते दिखाई देते हैं? क्या आपके कैमरों की लाइटें कभी वहां भी चमकती हैं जहां सन्तजन अपने सेवाकार्यों की रोशनी से गरीबी एवं विवशता के अंधेरों को मिटाने के भरसक प्रयास कर रहे हैं?मैं पूछना चाहती हूं टेलीविजन चैनलों से कि जिस तरह से आप चौबीसों घण्टे एक ऐसे “स्टिंग आपरेशन” को बार-बार देश को दिखाते रहते हैं जिसकी सत्यता की जांच होना बाकी हो, क्या कभी आपने चौबीसों घण्टे सन्तों के किसी चिकित्सालय में चल रहे नि:शुल्क सेवाकार्यों का प्रसारण देशवासियों को दिखाया? क्या सन्तों के अथक परिश्रम से गढ़े गए वात्सल्य के उन मंदिरों पर आपने अपने कैमरों को केन्द्रित किया जहां दिन रात विशुद्ध सेवाभाव से समाज के उपेक्षित एवं निराश्रित बचपन को सुसंस्कारित दिशा देने के प्रयास किए जा रहे हैं?नहीं…. ऐसा कभी-कभी ही किया करते हैं आप लोग। क्योंकि इसमें कोई सनसनी नहीं होती। कभी यदि यह दिखाया भी गया होगा तो कुछ मिनटों का वृत्तचित्र दिखाकर इतिश्री कर ली गई होगी। मैं मीडिया पर दोषारोपण नहीं कर रही हूं, कुछ कड़वी घटनाओं का स्मरण कर रही हूं कि कैसे सनसनी फैलाने के लिए समाचारों का संकलन और दृश्यों का फिल्मांकन किया जाता है। मुझे आज भी वह भयानक और रोंगटे खड़े कर देने वाला दृश्य स्मरण आता है जब दिल्ली में आरक्षण विरोधी एक छात्र के आत्मदाह करने का दृश्य मैंने टेलीविजन समाचारों में देखा था। स्वयं पर पेट्रोल डालकर धू-धूकर जलता वह छात्र और उसके पीछे दौड़-दौड़कर उस दृश्य को फिल्माते चैनलों के कैमरामेन। कल्पना कीजिए कैसा क्रूरतम दृश्य था कि चार-पांच लोग दौड़कर जलते हुए उस असहाय छात्र को “शूट” कर रहे हैं लेकिन किसी के भी मन में यह दया नहीं आई कि अपने कैमरे रखकर कहीं से बाल्टी भर पानी उड़ेलकर उसकी आग बुझाने का प्रयास किया जाए। मैं पूछना चाहती हूं कि अगर वह छात्र उन छायाकारों में से किसी का बेटा या भाई होता तब भी क्या वह उसे जलता हुआ देखकर केवल तस्वीरें ही उतारता रहता? ऐसी भयावह “एक्सक्लूसिव तस्वीरें” दिखाकर आप देश को कहां ले जाना चाहते हैं?आज विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर भारत के प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों, जिन्हें भारत का सन्त समाज आज भी सहेजे हुए है, को नष्ट करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। हिन्दुओं की सदाशयता का लाभ उठाकर उनके मानबिन्दुओं पर हमला किया जा रहा है। कभी मुस्लिम अथवा ईसाई पंथों पर कोई टिप्पणी करके देखिए, उनके अनुयायी सड़कों पर उतर आएंगे। मैं इलेक्ट्रानिक मीडियाकर्मियों से निवेदन करती हूं कि कभी किसी कटती हुई गाय का भी “स्टिंग आपरेशन” कीजिए और उसे बार-बार अपने चैनलों पर दिखाइए। देश की जनता को बताइये कि यह जो गाय काटी जा रही है उसका देश की अर्थव्यवस्था में कितना बड़ा योगदान था। कभी “स्टिंग आपरेशन” कीजिए उन मदरसों का जहां मजहबी शिक्षा के नाम पर किस तरह से नई पीढ़ी की रगों में नफरत का जहर भरा जा रहा है। उन घनघोर जंगलों और पहाड़ों में जाकर अपने “Ïस्टग आपरेशन” का जौहर दिखाइए जहां भूखे वनवासियों को मुट्ठी भर चावल देकर किस तरह से मतान्तरित किया जा रहा है। कभी अपने अत्याधुनिक कैमरों को सुदूर पूर्वोत्तर भारत के उन सुलगते प्रान्तों की ओर भी घुमाइये जहां अलगाववाद की आग भड़काई जा रही है।मैं निवेदन करना चाहती हूं भारत के पत्रकार जगत से कि आप लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत को भारत बनाये रखने के लिए कटिबद्ध सन्त समाज को जनमानस से काट देने के कैसे कुत्सित और अन्तरराष्ट्रीय प्रयास किए जा रहे हैं। आप उन षड्यंत्रों का पीछा कीजिए जो कोका कोला के जहर को उजागर करने वाले एक सन्त को रास्ते से हटाने के कथित मंसूबे पाले हुए हैं। सारे सन्त समाज की छवि को नकारात्मक बनाया जाना अन्यायपूर्ण है और ऐसे प्रयासों को रोकने का उत्तरदायित्व भी मीडियाकर्मियों का ही है।6
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