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भारती में भगवाकरण दिखा तो पुस्तक का नाम “रिमझिम” कर दिया-दीनानाथ बत्राराष्ट्रीय संयोजक, शिक्षा बचाओ आंदोलनइस पर एक नजर डालेंकक्षा 1 की पुस्तकरिमझिम -1छ: साल की छोकरीभरकर लाई टोकरीयानी छह साल की बच्ची से आम बेचने की अपेक्षा की जा रही है।हट्टी-कट्टी मोटी तगड़ीमहिला की ऐसी छवि प्रस्तुत करके बालपन पर क्या प्रभाव डालना चाहते हैं?कक्षा 3 की पुस्तकरिमझिम – 3पाठ “सूरज और चांद ऊपर क्यों गए” विज्ञान के सिद्धान्तों के प्रतिकूल।कहानी “मुझको सांप ने काटा” में झाड़ फूंक, टोने-टोटके को बढ़ावा दिया।कक्षा 6 की पुस्तकवसंतपाठ “बचपन” में हिन्दी की बजाय अंग्रेजी, उर्दू का जमकर प्रयोग किया।एकांकी “ऐसे-ऐसे” में बच्चों को स्कूल न जाने के लिए बहाने खोजने का पाठ पढ़ाया गया है।एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा हाल ही में प्रकाशित हिन्दी की पहली, तीसरी और छठी कक्षा की पुस्तकें सारहीन, संस्कारहीन ही नहीं बल्कि ज्ञान, मनोविज्ञान तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी स्तरहीन हैं। पुस्तकों के नाम में भी इस सरकार को “भगवा” झलक मिली तो नाम ही बदल दिया। भीतर के पाठों में कितनी त्रुटियां (प्रूफ की तो खैर बात क्या करें) हैं कि समझ नहीं आता कि बच्चों को शिक्षा दी जा रही है या अपनी मूढ़ता प्रदर्शित की जा रही है। बेसिरपैर के शब्द, बिना अर्थ की बातें, तर्कहीन कथाएं और अंतहीन गलतियां ही एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तकों का सार है। इनके विभिन्न पाठों में जो विडम्बनापूर्ण गलतियां हैं उन पर एक दृष्टि डालनी जरूरी है।पहली कक्षा की पुस्तक रिमझिम-1पहली कक्षा की यह हिन्दी पुस्तक पहली ही नजर में अवैज्ञानिक दिखती है। पहली कक्षा की पुस्तक होने के बावजूद पाठ का प्रारंभ वर्णमाला ज्ञान से करना उचित नहीं समझा गया। पुस्तक में कई जगहों पर बच्चों की कल्पनाशीलता, उनकी क्षमता एवं उनकी सोच को नजरअंदाज किया गया है। बिना अक्षर ज्ञान कराये उनसे अपने शिक्षक/शिक्षिका के नाम लिखने (पृष्ठ-4) की अपेक्षा की जा रही है। यह विडंबना तब और बड़ी हो जाती है जब पृष्ठ संख्या 77 पर उनसे कविता बनाने को कहा जाता है- घंटी बोली …………. उड़ता कपड़ा ………। इस पुस्तक में एक कविता है “आम की टोकरी”। एक अंश देखिए- “छ: साल की छोकरी, भरकर लाई टोकरी।” क्या एक छह साल की बच्ची से आम बेचने की अपेक्षा करनी चाहिए? बच्चों के मनोविज्ञान परयह कविता क्या प्रभाव डालेगी? इसी तरह का एक अन्य उदाहरण हैं कविता “पगड़ी” (पाठ संख्या-10)। “हट्टी-कट्टी मोटी तगड़ी, मलकिन-झगड़ी इतनी झगड़ी… तर गया मैल, और तर गई पगड़ी।” एक महिला की इस तरह की छवि बच्चों के सामने प्रस्तुत करना क्या उचित है? पुस्तक की प्रस्तावना में बच्चों में कल्पनाशीलता विकसित करने की बात कही गई है, लेकिन इस प्रयास में बच्चों की सोचने की क्षमता को नजरअंदाज कर दिया गया। पृष्ठ 78 पर एक अभ्यास है- तुम “पतंग के साथ सैर-सपाटे पर गईं। वहां तुमने क्या-क्या देखा? …।” जिस उम्र के बच्चे से यह अपेक्षा की गई है, वह उसकी कल्पनाशक्ति से परे है। पृष्ठ 123 पर एक कविता है- “पुराने बच्चे”, जिसके शुरु की छह पंक्तियों से स्पष्ट पता चलता है कि यह पुस्तक उन विद्यालयों के लिए है जहां नर्सरी/ प्री नर्सरी की कक्षाएं चलती हैं। पर उन विद्यालयों का क्या होगा जहां कक्षाएं पहली से ही प्रारंभ होती हैं? इस पुस्तक में जीवनमूल्यों तथा संस्कारों की बात करना तो खैर उचित समझा ही नहीं गया, जिसकी बच्चों को बहुत आवश्यकता है। पर वह सामग्री दी गई है जो बाल मनोविज्ञान से मेल नहीं खाती।तीसरी कक्षा की पुस्तक रिमझिम-3तीसरी कक्षा की इस पुस्तक को संस्कृति तथा संस्कार से पूरी तरह अलग रखा गया है, साथ ही इसमें न तो बौद्धिक ज्ञान है और न हीं वैज्ञानिक सोच। पुस्तक का नाम बाल भारती से बदलकर रिमझिम क्यों कर दिया गया, इसका भी कोई कारण समझ में नहीं आता। क्या सिर्फ इसीलिए कि यह नाम भगवाकरण का प्रतीक है? इस पुस्तक में सद्गुणों के विकास के लिए न कविताएं हैं, न कहानियां। “चांद वाली अम्मा” कहानी के माध्यम से आसमान को बच्चे की तरह बेहद शरारती दिखाया गया है। इतना कि एक दिन वह बूढ़ी अम्मा को चांद पर छोड़ आता है। एक बूढ़ी महिला के प्रति अनादर और शरारत की कहानी पढ़ाकर ये बच्चों को क्या सिखाएंगे? यह तो हुई संस्कार की बात, बच्चों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने से भी कैसे मुंह मोड़ा गया है इसका उदाहरण है कहानी “सूरज और चांद ऊपर क्यों गए” इसमें बताया गया है कि सूरज, चांद और पानी तीनों धरती पर ही रहते थे। एक दिन पानी जब सूरज के घर अतिथि बनकर आया तो घर और छत पर पानी भर जाने से सूरज और चांद आसमान में चले गए और वहीं रहने लगे। यह पाठ विज्ञान के सिद्धांतों के प्रतिकूल है। “मुझको सांप ने काटा” कहानी के माध्यम से भी बच्चों में “झाड़-फूंक” का बीज बोया गया है।छठी कक्षा की पुस्तक-वसंतकक्षा 6 की हिन्दी पुस्तक वसंत के पहला पाठ “वह चिड़िया जो” के अभ्यास में पूछा गया है कि कवि ने जिस नीली चिड़िया का नाम नहीं बताया है, उसका नाम क्या होगा? कक्षा 6 के विद्यार्थियों के लिए यह बात समझ से परे होगी। वह न तो सलीम अली की पुस्तक “भारतीय पक्षी देखो” की व्यवस्था कर पाएगा, न ही उतनी ऊंची कल्पना कर सकेगा। “बचपन” पाठ में अंग्रेजी/उर्दू के इतने शब्द दिए गए हैं कि हिन्दी का भाव ही लुप्त-सा हो गया है। इसके अलावा इस पुस्तक में अन्य भाषाओं की कई रचनाओं के अनुवाद दिए गए हैं। इनमें जयंत, विष्णु नार्लीकर, साहिर लुधियानवी, सुंदरा रामास्वामी जैसे मराठी, उर्दू, तमिल के रचनाकारों की रचनाएं शामिल हैं। “ऐसे-ऐसे” एकांकी में बालक को स्कूल न जाने का बहाना सिखाया जा रहा है। जैसे- अगर स्कूल नहीं जाना हो तो पेट में दर्द के नाम पर बिस्तर पर पड़े रहो। पुस्तक के प्रारंभ में नागरिकों के मूल कर्तव्य बताए गए हैं लेकिन इस संबंध में कोई लेख, कविता या कहानी सम्मिलित करना आवश्यक नहीं समझा गया है। कई पाठ बहुत बड़े हो गए हैं। यदि सुभद्रा कुमारी चौहान की इकलौती कविता को छोड़ दें तो संस्कृति, देशभक्ति एवं जीवनमूल्यों को व्यक्त करने वाली कोई रचना नहीं मिलेगी। उसी तरह तुलसीदास का एक सवैया देकर भक्तिकाल के अन्य कवि-सूर, कबीर, रहीम की रचनाओं से मुंह मोड़ लिया गया है। इस पुस्तक में प्रगतिवादी कवि निराला की कोई रचना देना भी उचित नहीं समझा गया है। ये पुस्तकें वस्तुत: बच्चों की क्षमता व उनकी जरूरतों को पूरा नहीं करती हैं।26
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