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फिर कठघरे में मायाबहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की मुश्किलें दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। ताज गलियारा घोटाले के फिर से खुलने से उनकी परेशानी बढ़ गई है। हालांकि फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि आगामी विधानसभा चुनाव पर इसका क्या असर पड़ेगा, लेकिन इतना तय है कि यह मामला आने वाले दिनों में उनके लिए काफी चुनौतियां पैदा करेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने गत 27 नवम्बर को विवादास्पद ताज धरोहर गलियारा मामले में लखनऊ की विशेष अदालत में मायावती के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही न्यायालय ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो की ओर से इस मामले में 31 दिसम्बर 2004 को सौंपी गई स्थिति रपट को भी खारिज कर दिया।न्यायाधीश एस.बी. सिन्हा, एस.एच. कपाड़िया और डी.के. जैन की खंडपीठ ने अपने फैसले में सीबीआई को निर्देश दिया कि वह ताज घोटाले से संबंधित सभी दस्तावेज विशेष जज के सामने रखे, ताकि इस पर उचित कार्रवाई हो सके। खंडपीठ ने इस बात पर भी कड़ी आपत्ति जाहिर की कि जब जांच दल के सभी सदस्य मायावती के खिलाफ मुकदमा चलाने के पक्ष थे इसके बावजूद सीबीआई के निदेशक को इसे महाधिवक्ता मिलन बनर्जी के पास राय जानने के लिए भेज दिया गया।उल्लेखनीय है कि 4 अगस्त 2002 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव डी.एस. बग्गा की अध्यक्षता में हुई “मिशन मैनेजमेंट” की बैठक में 175 करोड़ रुपए की ताज धरोहर गलियारा परियोजना को मंजूरी दी गई थी। इस परियोजना के तहत ताजमहल, आगरा किला, एत्माउद्दौला स्मारक, चीनी का रोजा और रामबाग जैसे ऐतिहासिक स्मारकों को एक साथ जोड़ा जाना था। अक्तूबर 2002 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती और पर्यावरण मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने इस परियोजना का अनुमोदन किया। 17 नवम्बर 2002 को आगरा में परियोजना पर काम शुरू हो गया। मगर इसके साथ ही इस परियोजना पर सवालिया निशान लगने लगे। परिणामस्वरूम 27 मई 2003 को सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया। 16 जुलाई 2003 को सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की जांच का काम केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंपा। इसके बाद 18 सितम्बर 2003 को सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई से कार्रवाई तेज करने को कहा। इस पर 5 अक्तूबर 2003 को सीबीआई ने मायावती, उनके तत्कालीन प्रधान सचिव पी.एल. पूनिया, पूर्व मुख्य सचिव डी.एस. बग्गा और सात अन्य अभियुक्तों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। इसके चलते 8 अक्तूबर 2003 को सीबीआई ने मायावती के विभिन्न परिसरों पर छापे भी मारे। इस मामले में उस वक्त नया मोड़ आ गया जब महाधिवक्ता मिलन बनर्जी ने इस मुकदमे को बंद करने की सिफारिश की। लेकिन मायावती के खिलाफ मामला बंद करने का प्रयास कामयाब नहीं हो पाया, क्योंकि 14 मार्च 2005 को सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग को इसकी जांच सौंपने का आदेश दिया। 22 अगस्त 2005 को सारे तथ्यों को देखते हुए मायावती और नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत मुकदमा चलाने की सिफारिश की। 13 फरवरी 2006 को मुकदमा बंद करने की सलाह लेने पर सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को फटकार लगाई। इसके बाद 31 जुलाई 2006 को न्यायालय ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा। फिलहाल मामला न्यायालय में है। लेकिन केन्द्रीय सतर्कता आयोग की जांच और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों से साबित हो गया है कि यह राजनीति और नौकरशाही की मिलीभगत तथा भ्रष्टाचार का मामला है। फिरदौस खान15
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