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स्व. भानुप्रताप शुक्लराष्ट्रहित समर्पित जीवन-कुप्.सी. सुदर्शनसरसंघचालक, रा.स्व.संघवात्सल्य ग्राम, वृन्दावन में स्व. भानु जी की तेरहवीं सम्पन्न,युगपुरुष स्वामी परमानन्द की अध्यक्षता में आयोजित हुई श्रद्धांजलि सभागत 30 अगस्त को दीदी मां साध्वी ऋतंभरा के वृन्दावन स्थित वात्सल्य ग्राम में स्व. भानु प्रताप शुक्ल की त्रयोदश क्रिया ब्राहृ भोज एवं श्रद्धांजलि सभा के साथ सम्पन्न हुई। श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता युग पुरुष स्वामी परमानंद ने की। श्रद्धांजलि सभा में स्व. भानु जी की वसीयत को भी पढ़ा गया। इस अवसर पर दीदी मां साध्वी ऋतंभरा ने स्व. भानु जी स्मृति में एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना करने की घोषणा की।श्रद्धांजलि सभा में विश्व हिन्दू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल, वरिष्ठ भाजपा नेता डा. मुरली मनोहर जोशी, रा.स्व.संघ के अ.भा. सेवा प्रमुख श्री प्रेमचंद गोयल, आचार्य गिरिराज किशोर, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री प्यारेलाल खण्डेलवाल, विद्या भारती के राष्ट्रीय महामंत्री श्री रघुनाथ शेंडे आदि प्रमुख महानुभावों ने स्व. भानु जी को अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। मुरली मनोहर “कूड़ा”श्रीभानुप्रताप शुक्ल के देहावसान के ठीक आठ दिन पूर्व मैं उनसे मिलने दिल्ली के पुष्पांजलि मेडिकल सेंटर में गया था। वे लेटे हुए थे किन्तु मुझे देखकर उठकर बैठने का प्रयत्न करने लगे, मना करने पर भी सिरहाना ऊपर उठवा लिया और सदा के समान उनकी चिरपरिचित मुस्कान होंठों पर बिखर गई। स्वास्थ्य सम्बंधी प्रारम्भिक पूछताछ के पश्चात मैंने प.पू. गुरुजी पर संकल्पित धारावाहिक के रूप में किए गए प्रथम प्रयास के सम्बंध में एक दिन पूर्व हुए प्रदर्शन की जानकारी देते हुए उन्हें पू. गुरुजी की जन्मशताब्दी पर लिखे गए दो गीत सुनाए- पहला -“यह न मेरा, राष्ट्र का है, राष्ट्रहित ही सब समर्पित” और दूसरा – “त्याग मंत्र की मूर्ति माधव, नमन स्वीकारो हमारा।” दोनों गीत सुनकर वे अत्यन्त भावुक हो उठे और सिसकियां भरते हुए केवल इतना ही कह पाये-“पू. श्रीगुरुजी जन्मशताब्दी में कुछ भी नहीं कर पा रहा हूं।” उनकी आंखों से अविरल अश्रु प्रवाहित होने लगे।देखकर मैं भी भावुक हो उठा। एक अपराध बोध से ग्रस्त हो गया कि अनजाने ही क्यों न हो, मैंने उनकी दुखती रग को छू दिया। वातावरण के भारीपन को हल्का करने के लिए मैंने दो-तीन चुटकुले सुनाए। आस-पास के लोगों के साथ वे भी मुस्करा दिये और बाद में अस्पताल के बाहर उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त कर उनसे विदा ली। पर क्या पता था कि उनके साथ वह मेरी आखिरी भेंट सिद्ध होगी?उनके जीवन का निचोड़ ही उपर्युक्त गीत की पहली पंक्ति है-“यह न मेरा, राष्ट्र का है, राष्ट्रहित ही सब समर्पित”उसी के अनुसार उन्होंने जीवन जिया और स्वातंत्र्य वीर सावरकर की इन पंक्तियों को जीवन में साकार कर दिखायाहे मातृभूमि तुजला मन वाहियेले।वक्तृत्व वाग्विभव ही तुज अर्पियेले।।तूतेचि अर्पिली नवी कविता रसाला।लेखाप्रति विषय तूचि अनन्य झाला।।अर्थात्- “हे मातृभूमि, मेरा मन, मेरा वक्तृत्व, मेरा वैभव सब कुछ तुझे ही समर्पित है। मेरी लेखनी का विषय भी तू ही रही है।”मेरे उस स्नेही, लेखनी के धनी, कुशल पत्रकार और संवेदनशील हृदय के धारक भानुप्रताप जी की स्मृति को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।7
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