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उज्जैन प्रकरणकहां ले जाएगी छात्र राजनीति?टी.वी.आर.शेनायप्रकाश करात चुनाव आयोग को “पक्षपाती” कहते हुए उसकी भत्र्सना कर रहे हैं। उधर हर कांग्रेसी भीतर ही भीतर मानता है कि अगर सोनिया गांधी उसकी सुनें तो वह बेचारे मनमोहन सिंह से बेहतर प्रधानमंत्री बन सकता है। भाजपा लोकसभा अध्यक्ष की उनके पूर्वाग्रही विचारों के कारण भत्र्सना करती है और सोमनाथ चटर्जी आगबबूला होते हैं कि अगर उनका मान नहीं रखा गया तो वे इस्तीफा दे देंगे। इस बीच राजद और जद (यू) के सांसदों की आपसी हाथापाई के कारण लोकसभा में हड़कंप मच जाता है।दूर से इन घटनाओं को देखकर मैं यही दुआ मांगने लगा हूं कि भगवान हमारे मौजूदा भ्रष्ट नेताओं को लंबी उम्र दें। क्यों? इसके जवाब में मैं आपके सामने कुछ विकल्पों पर विचार करने का न्योता देता हूं…राजनीति के कुछ बड़े-बड़े नाम छात्र संघों की ही उपज हैं। चमकते नामों में भाजपा के अरुण जेटली, लालू प्रसाद यादव और शरद यादव, प्रकाश करात और सीताराम येचुरी जैसे माक्र्सवादी शामिल हैं। यह आम मान्यता है कि कल के कुछ नेता आज के छात्र संघों में से ही उभरेंगे। ईमानदारी से बताएं, क्या आप बिना कंपकंपाए भविष्य की कल्पना कर सकते हैं? लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर निशि पांडे ने पिछले साल छात्र नेता राम सिंह राणा द्वारा सताए जाने की शिकायत की थी। निशि पांडे ने उसे महिला हास्टल में प्रवेश करने से रोकने की कोशिश की थी। इस साल, समाजवादी पार्टी ने राणा को लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया है।दिल्ली में गत जुलाई में जामिया मिलिया विश्वविद्यालय को छात्रों के कुलपति और प्रोक्टर विरोधी प्रदर्शन के बाद बंद कर दिया गया। एन.एस.यू.आई. के अध्यक्ष नदीम जावेद का उन्हें समर्थन प्राप्त था। जावेद ने उनका मामला मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह के सामने उठाने का वायदा किया था। (विश्वविद्यालय के कुलपति मुशीरुल हसन चूंकि प्रख्यात इतिहासविद् हैं सो उनके वामपंथी दोस्तों का जावेद को कोई समर्थन नहीं मिला।)उज्जैन में प्रोफेसर हरचरन सिंह सब्बरवाल की मृत्यु मारपीट में चोट लगने से हुई, जो कथित तौर पर अ.भा.वि.प. से जुड़े कार्यकर्ताओं ने की थी। अ.भा.वि.प. और भाजपा, दोनों ने इससे इनकार किया है। दोनों ही संगठनों के प्रवक्ताओं ने कहा कि टेलीविजन पर दिखाए दृश्य में विद्यार्थी परिषद के किसी भी कार्यकर्ता को प्रो. सब्बरवाल से मारपीट करते नहीं दिखाया गया है। मुझे इसकी कोई परवाह नहीं, मैंने टेलीविजन पर जो दृश्य देखा, वह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था। मैंने अ.भा.वि.प. के मध्य प्रदेश संगठन मंत्री विमल तोमर को उज्जैन के माधव कालेज के प्रो. एम.एल. नाथ पर चीखते देखा था। मैंने तोमर को वहां मौजूद शिक्षकों से भद्दी जुबान में बोलते देखा, ऐसी भाषा में जिसे टेलीविजन चैनलों ने बीप की आवाज में दबा दिया था। मैंने उसे कुछ ऐसा कहते सुना, “तुमने हमें गुंडा कहा, अब हम तुम्हें सबक सिखाएंगे!” हमें अ.भा.वि.प. मध्य प्रदेश के अध्यक्ष शशिरंजन अकेला को देखने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ जो तीखेपन के साथ अपने शिक्षकों से बहस में उलझे थे।अगर आप प्रो. सब्बरवाल पर हमले की बात को अलग रख भी दें- मैं तो कम से कम इसे अक्षम्य मानता हूं- तो भी विमल तोमर द्वारा दर्शायी उद्दंडता की क्या सफाई दे सकते हैं? अ.भा.वि.प. सदस्यों द्वारा प्रो. सब्बरवाल पर हमले का हो सकता है सबूत न भी हो, पर दूसरे शिक्षकों के विरुद्ध अश्लील व्यवहार का तो काफी सबूत है। केवल इसी वजह से ही उन्हें विश्वविद्यालय से बाहर निकाल देना चाहिए और सभी तरह की राजनीतिक गतिविधियों से भी अलग कर देना चाहिए।वकील इस पर लम्बी चौड़ी बहस कर सकते हैं कि प्रो. सब्बरवाल की मृत्यु “हत्या” थी या “मानववध”। जांचकर्ताओं को यह देखना होगा कि क्या इसमें एन.एस.यू.आई. किसी तरह लिप्त है, क्योंकि कांग्रेस समर्थित यह संगठन भी प्रो. सब्बरवाल से उतना ही नाखुश था। लेकिन अगर राजनीति में किसी तरह का कोई नैतिक आयाम बचा है तो विमल तोमर और शशिरंजन ऐसा माहौल बनाने के दोषी हैं जहां शिक्षकों के विरुद्ध हिंसा पनपती है।मैं रा.स्व.संघ की वेबसाइट से यह उद्धृत कर रहा हूं : “गुरु की भक्तिपूर्ण आराधना हिन्दू सांस्कृतिक परंपरा के अति मार्मिक और उच्च गुणों में से एक है। गुरु शिष्य सम्बंध हमारे हिन्दू धर्म का एक विशिष्ट आयाम है।” रा.स्व.संघ इसे इतनी गंभीरता से लेता है कि इसका एक बड़ा वार्षिक कार्यक्रम है गुरु पूर्णिमा, जब प्रत्येक स्वयंसेवक से गुरु के प्रति कुछ अर्पित किए जाने की अपेक्षा रहती है। मुझे याद है, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे वरिष्ठ नेताओं को मैंने उच्च पदों पर रहते हुए गुरु दक्षिणा में भाग लेते देखा है।ऐसी परम्परा के रहते हुए आखिर विमल तोमर और शशिरंजन को माधव कालेज के गेट पर शिक्षकों का अपमान करते देखे जाने के तुरंत बाद अ.भा.वि.प. से निकाल बाहर क्यों नहीं किया गया? क्या आज गुरु पूर्णिमा का कोई महत्व है या नहीं, क्या यह महज खोखला आयोजन रह गया है? अ.भा.वि.प. का गठन तब हुआ था जब श्री एम.एस. गोलवलकर संघ के सरसंघचालक थे। “एम.” का विस्तार है माधवराव और प्यार और सम्मान स्वरूप उन्हें गुरुजी के रूप में जाना जाता है। कैसी विडम्बना है कि उनके शताब्दी वर्ष में “माधव” कालेज नाम के संस्थान में गुरुओं का अपमान हुआ है। क्या उज्जैन त्रासदी में कोई निर्दोष साबित होगा? अंतिम खबर यही पता लगी थी कि माधव कालेज के प्राचार्य द्वारा दी गई दोषियों की सूची के आधार पर पुलिस ने 20 से ज्यादा एन.एस.यू.आई. सदस्य गिरफ्तार किए हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दिशा किसान संगठन के संजीव जैन ने भी इसी मामले में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया है। क्या भाजपा, कांग्रेस और शरद पवार की राकांपा से जुड़े लोगों के नाम आने के बाद, राजनीतिक दखल का भय बढ़ना निश्चित है। और ये वही लोग हैं जिनके बीच से भारत के भविष्य के नेता निकलेंगे। इस पर गौर करें। मैंने कहीं पढ़ा कि आपराधिक जांच विभाग दल के प्रमुख जी.एस.पी. द्विवेदी ने उज्जैन के महाकाल मंदिर में पूजा के बाद जांच की शुरुआत की थी। मैं समझ सकता हूं कि उनको क्या महसूस हुआ होगा। जब शिक्षा के मंदिरों का माहौल राजनीति इस हद तक खराब कर दे कि छात्र अपने शिक्षकों का अपमान करने लगें, तो भारत की रक्षा केवल भगवान ही कर सकता है। (31-8-2006)27
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