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बाड़मेर-जैसलमेर में बाढ़
स्वयंसेवकों ने बांटा दर्द,
बढ़ाए राहत के हाथ
– बाड़मेर से आनंद कुमार गुप्ता
अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार किया स्वयंसेवकों ने
बाढ़ के पानी में डूबा पश्चिमी राजस्थान का एक गांव
जलमग्न गांव में राहत सामग्री बांटते हुए स्वयंसेवक
देश का सबसे सूखा-ग्रस्त रेगिस्तानी क्षेत्र है पश्चिमी राजस्थान, जहां के लोग लगभग सालभर पानी के लिए तरसते हैं। आज इसी क्षेत्र के बाड़मेर और जैसलमेर में हुई 723 मि.मी. वर्षा के कारण आई बाढ़ ने पिछले कई वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया है। झिझनियाली (जैसलमेर) से भाखड़ा पहुंचने वाली रोहली नदी ने नींबला नदी के साथ मिलकर जबरदस्त तबाही मचाई है। लगभग 100 किलोमीटर बहकर आए इस पानी ने कवास, भाखड़ा, चौखला, नींबला, रोहली, भीमड़ा, माडपुरा, बरवाला, चवा, डाबली, शिव, गिराब, मौखाब, मलवा, मूढ़ों की ढाणी, दर्जियों की ढाणी, लालाणियों की ढाणी, भुरटिया समेत 40 गांव और ढाणियों को अपनी चपेट में ले लिया।
गत 21 अगस्त की आधी रात से इस क्षेत्र में बाढ़ का प्रकोप शुरू हुआ। स्थिति बिगड़ती देख अगले दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बायतु तहसील के कार्यवाह श्री गोपाल चौधरी के नेतृत्व में एक दल ने बचाव कार्य शुरू किया। बाढ़ के पानी से बचने के लिए कई लोग रेत के टीले पर शरण लिए हुए थे। इस दल ने उन लोगों तक भोजन के 1500 पैकेट पहुंचाए। स्वंयसेवकों की इस सक्रियता को देखकर स्थानीय प्रशासन भी हरकत में आया। जिला कलक्टर श्री सुबीर कुमार ने तुरंत कार्यवाई करते हुए बाढ़ क्षेत्र में राहत कार्य शुरु करने के लिए सेना, वायु सेना और नौ सेना की मदद मंगाई। सेना के साथ मिलकर बाड़मेर के विभाग प्रचारक श्री निम्बाराम ने हेलीकाप्टर से बाढ़ में फंसे लोगों तक भोजन के 800 पैकेट पहुंचाए। बाड़मेर जिला संघचालक श्री पुखराज गुप्ता ने बताया कि संघ ने बाढ़ राहत कार्य के लिए चार सहायता केंद्र-बाड़मेर, शिव, बायतु एवं गडरा में खोले हैं। उन्होंने जनता से भी बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए अधिक से अधिक मदद सहायता केंद्र तक पहुंचाने की अपील की। राजस्थान के इन बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में स्वयंसेवकों द्वारा अब तक 15,000 भोजन के पैकेट, 1,000 तिरपाल, 3,000 कंबल, कपड़े, बर्तन, पानी की थैलियां और खाद्य सामग्री (गुड़, चने, चाय, चीनी, नमक, मिर्ची, हल्दी, धनिया, आटा, चावल, तेल, शक्कर, पाउडर, दूध, मोमबत्ती, दियासलाई) बांटी जा चुकी है।
रा.स्व.संघ के साथ सेवा भारती, सीमा जन कल्याण समिति, और भारतीय जनता पार्टी भी कंधे से कंधा मिलाकर राहत कार्य में सहयोग कर रही है। स्वयंसेवक आज भी दलदल एवं कीचड़ भरी जगहों पर 2-2 किलोमीटर पैदल चलकर रस्सी के सहारे बाढ़ पीड़ितों तक सहायता पहुंचा रहे हैं। बालोतुरा-बायतु के स्वयंसेवक, जो तैराक थे, नौसेना के साथ मिलकर लावारिस शवों को ढूंढकर उनका अंतिम संस्कार कर रहे हैं। इन व्यवस्थित और सुचारू रूप से चलने वाले राहत कार्य को देखकर कई अन्य स्वयंसेवी संगठन भी आगे आए लेकिन वे वहां तक ही जा पाए जहां तक सड़क थी।
जैसलमेर और बाड़मेर में बाढ़ का बहाव इतना तेज था कि यहां के कई पक्के मकानों के भी नामोनिशान नहीं बचे। सबसे अधिक प्रभावित कवास गांव हुआ जहां अब भी 15-18 फीट पानी जमा है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में करीब 3 लाख लोग प्रभावित हुए हैं जबकि 1 लाख से अधिक पशुधन काल के गाल में समा गए। अब तक ज्ञात-अज्ञात 150 शवों को निकाला जा चुका है, लेकिन सैकड़ों लोग अब भी लापता हैं। उधर इस क्षेत्र में महामारी फैलने की आशंका को देखते हुए प्रशासन ने मृत पशुओं को दफनाने के उपाय शुरू कर दिए है। साथ ही लोगों को चिकित्सीय सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा रही हैं।
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