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-डा. दयाकृष्ण विजयवर्गीय “विजय”न पूछो जी रहे हैं आज कैसे जन,तपाने शीश तक को लग गया चंदन।छिना ली बुद्ध ने क्या हाथ की लाठी,लगे देखो पड़ोसी तक उठाने फन।नहीं होती चरण में सरसराहट तक,बजे भी शिंजनी चाहे झनन झन झन।करेंगे क्यों न भौतिक द्वंद्व आ घायल,भुला हमने दि
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